अगर आप भी वसीयत करने के बारे में सोच रहे हैं तो पहले दूर कर लें इससे जुड़े कन्फ्यूजन!

वसीयत से जुड़ी ऐसी कई उलझनें जिनके फेर में पड़कर लोग गलत वसीयतनामा बना लेते हैं और उनके बाद परिवार को दिक्कतों को सामना करना पड़ता है

सांकेतिक तस्वीर

भारत में वसीयत तैयार करने जैसी बेहद आसान प्रक्रिया को लेकर कई तरह के मिथक कायम रहना काफी हैरान करता है. ऐसे वक्त में जब जिंदगी पहले की तुलना में कहीं ज्यादा अनिश्चित हो गई है, वसीयत के स्पष्ट नियम जानना बेहद जरूरी है. यह सिर्फ वित्तीय सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि परिवारों को बाद में भावनात्मक या कानूनी पचड़ों से बचाने के लिए भी बहुत जरूरी है.

Inheritance Needs Services के संस्थापक रजत दत्ता ने इंडिया टुडे को बताया कि वसीयत को लेकर गलतफहमियां क्यों बरकरार हैं और कैसे उनकी वजह से अक्सर अपने किसी की मौत के बाद परिवारों के लिए उनके बैंक अकाउंट या संपत्ति के बारे में जानकारी जुटाने तक में लाल फीताशाही या ब्यूरोक्रेसी से जूझना पड़ता है. उन्हें उम्मीद है कि इससे पहले बहुत देर हो जाए ज्यादा से ज्यादा भारतीय वसीयत बनाने की अहमियत को समझ सकेंगे :
 
मिथक: वसीयत स्टाम्प पेपर पर होनी जरूरी है.
सच्चाई: वसीयत एक सादे कागज पर भी की जा सकती है.
 
मिथक: वसीयत को पंजीकृत या नोटराइज कराना जरूरी है.
सच्चाई: वसीयत का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है लेकिन अगर ऐसा करा लें तो ज्यादा बेहतर होगा. notarised will में सरकारी अधिकारी एक तरह से दस्तावेजों के गवाह बन जाते हैं, जिससे वह और ज्यादा पुख्ता हो जाती है.
 
मिथक: संयुक्त वसीयतनामा करना सब कुछ परिवार को देने के लिए एक अच्छा विकल्प है.
सच्चाई: पहले वसीयतकर्ता की मौत के साथ Joint will को लागू करना आसान नहीं रहता, जिससे चलते probate petition की जाती हैं जिसमें वसीयत की पुष्टि के लिए कोर्ट की मंजूरी लेनी पड़ती है. इससे जीवित बचे पति या पत्नी के पास नई वसीयत बनाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता क्योंकि बाद में जीवित रहने वाले पति या पत्नी की मौत पर पिछली वसीयत को दोबारा प्रोबेट नहीं किया जा सकता.
 
मिथक: वसीयत सिर्फ संपत्तियों की होती है.
सच्चाई: वसीयत में संपत्तियां और देनदारियां दोनों शामिल होती हैं.
 
मिथक: अगर कोई वसीयत पंजीकृत है तो उसके बाद के सभी वसीयतनामे भी पंजीकृत कराने जरूरी हैं.
सच्चाई: आखिरी वसीयत को वैध माना जाता है, भले ही उसे रजिस्टर्ड न कराया गया हो. लेकिन उसमें ये लिखा होना चाहिए कि पूर्व में पंजीकृत वसीयतनामे की जगह लेगी.
 
मिथक: लाभार्थी निष्पादक (executors) नहीं हो सकते.
सच्चाई: लाभार्थी executors हो सकते हैं.
 
मिथक: गवाह परिवार का कोई सदस्य होना चाहिए.
सच्चाई: गवाह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता जिसे सीधे या परोक्ष रूप से वसीयत से आर्थिक फायदा हो रहा हो.
 
मिथक: वसीयत टैक्स बचाने में मदद कर सकती है.
सच्चाई: वसीयत से वसीयत करने वाले की संपत्ति/धन का बंटवारा होता है और इसका टैक्स बचाने से कोई लेना-देना नहीं है.
 
मिथक: कम पढ़ा-लिखा, अनपढ़ और निरक्षर व्यक्ति वसीयत नहीं बना सकता.
सच्चाई: वसीयत 18 वर्ष से अधिक उम्र का और मानसिक रूप से स्वस्थ कोई भी व्यक्ति बना सकता है. कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति वसीयत बनाने के लिए किसी भरोसेमंद व्यक्ति की मदद ले सकता है. वह व्यक्ति ही वसीयत में लिखी बातें उस भाषा में पढ़कर वसीयतकर्ता को समझाने के लिए जिम्मेदार होगा, जो उसे समझ आती है. इसके अलावा, वसीयत में उस व्यक्ति के नाम और संपर्क की पूरी जानकारी होनी चाहिए. साथ ही ये घोषणा भी करनी होगी कि वसीयत करने वाले को उक्त व्यक्ति पर पूरा भरोसा है और उसने उसे वसीयत की हर लाइन ठीक से समझा दी है.
 
मिथक: डॉक्टर को वसीयत का गवाह होना चाहिए.
सच्चाई: अब इसका पालन नहीं किया जाता क्योंकि डॉक्टरों को बेवजह केस में घसीटा जाता था. अगर वसीयत के साथ डॉक्टर का सर्टिफिकेट लगा हो कि वसीयत करने वाला दिमागी तौर पर ठीक है, तो यह काफी होगा.
 
मिथक: एग्जीक्यूटर की नियुक्ति जरूरी नहीं है.
सच्चाई: वसीयत में एग्जीक्यूटर का नाम होना चाहिए, नहीं तो कोर्ट एक एग्जीक्यूटर नियुक्त करेगा और उसकी फीस एस्टेट को देनी होगी.
 
मिथक: अलग-अलग वित्तीय संपत्तियों के लिए अलग-अलग वसीयत होनी चाहिए.
सच्चाई: आखिरी वसीयत ही वैध मानी जाती है; इसलिए अगर अलग-अलग संपत्ति श्रेणी के लिए दो अलग-अलग वसीयतें की गई हैं तो आखिरी वसीयत को वैध माना जाएगा.
 
मिथक: मैंने विदेश में रहते हुए भारतीय संपत्तियों के लिए अपनी वसीयत बनाई थी तो ये एग्जीक्यूट/वैध नहीं होगी.
सच्चाई: विदेश में हस्ताक्षरित की गई भारतीय संपत्तियों की वसीयत पूरी तरह वैध है, बशर्ते वसीयतकर्ता की उम्र 18 वर्ष से ऊपर हो, वो दिमागी तौर पर स्वस्थ हो और वसीयत पर दस्तखत करते समय उसके संग कोई जबरदस्ती या धोखाधड़ी न की गई हो. इसके अलावा इस पर दो अलग गवाहों के हस्ताक्षर हों.
 
मिथक: मेरी मौत विदेश में हुई और मेरी संपत्तियां और वसीयत भारत में हैं तो विदेश में जारी मृत्य प्रमाणपत्र वैध नहीं होगा.
सच्चाई: जाहिर तौर पर विदेश से मिला मृत्यु प्रमाणपत्र वैध है; बस उसे असली साबित करने के लिए उस शहर विशेष में नोटरी से attestation की जरूरत पड़ेगी, जहां वसीयतकर्ता की मौत हुई हो.
 
मिथक: वसीयत बनाने के लिए मेरी उम्र बहुत कम है.
सच्चाई: क्या किसी को पता है कि मौत कब आएगी? इसलिए वसीयत बनाने की कोई eligible date नहीं होती.
 
मिथक: वसीयत हमेशा के लिए बरकार नहीं रह सकती.
सच्चाई: ये तब तक चल सकती है जब तक लाभार्थी में कोई बदलाव न हो.
 
मिथक: वसीयत को डिजिटली बनाया और हस्ताक्षरित किया जा सकता है.
सच्चाई: वसीयत डिजिटली बनाई तो जा सकती है लेकिन साइन manually ही करने होंगे.
 
मिथक: हाथ से लिखी वसीयत वैध नहीं होती.
सच्चाई: हस्तलिखित वसीयत वैध होती है, भले ही वो किसी भी क्षेत्रीय भाषा में लिखी गई हो. वैधता के लिए इस पर testator और दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर होने चाहिए.
 
मिथक: वसीयत को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती.
सच्चाई: सभी वसीयतों को चुनौती दी जा सकता है.
 
मिथक: अगर गवाह मुझसे पहले मर जाते हैं तो वसीयत अवैध हो जाती है.
सच्चाई: गवाह की मौत से वसीयत रद्द नहीं हो सकती.
 
मिथक: हाल में nomination rules में बदलावों के साथ सब कुछ नॉमिनी को मिल जाएगा.
सच्चाई: नॉमिनी वारिसों के कस्टोडियन होते हैं (अगर कोई वसीयत नहीं है) और लाभार्थी होते हैं (अगर कोई वसीयत है). नॉमिनेशन से वारिस का अधिकार खत्म नहीं हो सकता. हालांकि, वसीयत में लाभार्थ नॉमिनी भी हो सकते हैं.
 
मिथक: भारत में ऑनलाइन वसीयत कानूनी तौर पर वैध नहीं है.
सच्चाई: ऑनलाइन वसीयत वैध हैं क्योंकि इससे वसीयत बनाने की प्रक्रिया और पुख्ता होती है और इसमें ज्यादा लोगों को सेवाएं मिल सकती है. हालांकि, वसीयत को मान्य बनाने के लिए उस पर हाथ से हस्ताक्षर होना जरूरी है.

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