'सय्यारा' की कामयाबी क्या सच में उतनी ही अबूझ है जितनी दिखती है! क्या है इसका 'सीक्रेट' मसाला?
कहानी के नाम पर रत्ती भर भी फ्रेशनेस ना दे सकने वाली 'सय्यारा' का प्रमोशन स्टाइल इतना फ्रेश है कि देश भर के पीआर दफ़्तरों में इसे एक केस स्टडी के तौर पर बरता जा रहा होगा

हाल ही में सिनेमाई पर्दों पर उतरी फिल्म ‘सय्यारा’ (सैयारा नहीं) अनगिनत लोगों के लिए एक अबूझ पहेली बन गई है. इतनी अबूझ कि जिसे जानबूझकर ही कोई समझने को तैयार नहीं है. कोई तो तिलिस्म, कोई तो चमत्कार है इसके पीछे. ऐसे थोड़ी ना...
हमारी आपकी मोबाइल फीड में तैरते दम-आलुओं, कचौड़ियों, समोसों, दही भल्लों और चटनियों को इंस्पेक्टर मातादीन की तरह निरखते वीडियो लॉगर्स दुकानदार से पूछते हैं ‘वो सीक्रेट मसाला तो आप बताएंगे नहीं...’
क्यों बताएं सा’ब?
यहां सवाल ‘क्यों’ का नहीं है अस्ल में. यहां सवाल है ‘कैसे’ का? जब इन्स्पेक्टर मातादीन ने तय ही कर लिया है कि धनिया, पुदीना, लहसुन, मिर्च और नमक की हरी चटनी में ज़रूर ऐसा कोई ‘सीक्रेट’ मसाला है जो बहादुरशाह ज़फ़र के ज़माने से ये कचौड़ी ख़ानदान चुपचाप इस्तेमाल करता आ रहा है, तो कचौड़ी वाला ये कहकर अपनी वक़त क्यों घटाए कि इस सनातनी हरी चटनी में क्या सीक्रेट डाला जा सकता है भाई?
लेकिन दूसरों के मुक़ाबले हचक के तबीयत से बिक रही कचौड़ी और चटनी में कोई सीक्रेट कैसे नहीं हो सकता है? कचौड़ियां तो हर दूसरी गली में बिक रही हैं? उन पर क्यों नहीं टूटते लोग? अबूझ पहेली है तो है ही.
‘कुछ तो होगा ही’... की इसी शास्त्रीय जिज्ञासा ने बहुतों से बहुत किसिम की नकली संघर्ष गाथाएं तैयार करवाईं. सीधी सपाट कहानी के बरक्स ‘दिन में पैदल स्कूल और रात को होटलों में बर्तन मांजने के बाद मिली कामयाबी’ वाली कहानी का अपना स्वाद है.
बहरहाल, सय्यारा फिल्म की कामयाबी का भी ‘सीक्रेट इन्ग्रीडिएंट’ बड़ी सरगर्मी से तलाशा जा रहा है. जब इंडस्ट्री के बड़े-बड़े मातादीन तलाश रहे हों तो ऐसा कैसे हो सकता है कि इंस्पेक्टर मातादीनों के हाथ कुछ भी ना आए. तो ज़रा बारी-बारी समझ लेते हैं कि इश्क़ के बेसन में तले गए और इन्तकाम की हरी चटनी के साथ परोसे गए इस मुजस्समे का ‘सीक्रेट मसाला’ क्या हो सकता है.
रील का चक्कर बाबू भाई !
ये दृश्य देखें. चंडीगढ़ के पॉश इलाके में एक पॉश दफ़्तर. पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री की गर्भनाल कहा जाने वाला ये दफ़्तर कई बरसों से क़रीब हर उस पंजाबी गाने से जुड़ा था जिसे ‘हिट’ या ‘सुपरहिट’ का ख़िताब मिला है. एक मशहूर गायक के ताज़े एल्बम के पहले गाने ने बाज़ार को हिट किया है लेकिन हिट हो कर नहीं दे रहा. कॉन्फ्रेंस रूम में सिंगर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर वगैरह बैठे मार्केटिंग हेड को घूर रहे हैं. मार्केटिंग हेड अपनी असिस्टेंट से काग़ज़ पर काग़ज़ लेकर टीम के सामने आंकड़े पेश करता जा रहा है. अपनी नौकरी बचाने की हर मुमकिन कोशिश जारी है. गाने को हिट करवाने के लिए किए जा रहे सतत प्रयासों की गणना हो रही है.
ठीक तभी !
इतनी देर चुप बैठे ‘पापाजी’ ने सबसे ज़रूरी सवाल पूछा. प्यार से पापाजी कहलाने वाले इन बुज़ुर्ग का कंपनी में आधे से ज़्यादा हिस्सा है और स्मार्ट फोन के ज़माने में भी पापाजी लैंडलाइन का इस्तेमाल करते हैं. उनका सवाल था- ‘रील च तां फड्याई नईं...?’
मतलब, रील में तो पकड़ा ही नहीं. ‘पापाजी’ का कन्सर्न था कि लोगों की रील्स में अब तक गाना क्यों स्पीड नहीं पकड़ सका. क्योंकि उन्हें ‘नव वायरलत्व’ का असर मालूम था इसलिए उन्होंने बिल्कुल नब्ज़ थामने वाला सवाल कर दिया था.
आप पाएंगे कि पिछले कई बरसों में जिस गाने को ‘रीलबाज़ों’ ने अपना लिया, उसे सुपरहिट होने से कोई रोक नहीं पाया. बल्कि गाना ना भी हो तो भी रील्स के सहारे कई बार भूले-बिसरे गीत सामने आकर खड़े हो जाते हैं. पत्थर चटकाकर राजू कलाकार के गाए गाने ‘दिल पे चलाई छुरियां...’ को ही देख लीजिए. आख़िरकार इस रील कर्म की बदौलत ही गाने का री-मिक्स वर्जन बनाकर इस गाने के वायरलत्व का अंतिम संस्कार हुआ.
तो ‘सय्यारा’ की कहानी भी रील्स से शुरू हुई. बिना किसी भड़कीले प्रमोशन के चुपचाप पर्दे पर उतरी सय्यारा के बारे में लोगों को मालूम चला #SaiyaaraCrying से. जब थिएटर में फिल्म देखकर रोते नौजवान जोड़ों की रील्स ने इस हैशटैग के सहारे लोगों के मोबाइल की स्क्रीन पर दस्तक दी. पहले इन रील्स को ‘पर्सनल इमोशन्स’ के नाम पर टाला गया. लेकिन इस शुरुआती बज़ के बाद तो फिल्म देखकर थिएटर में रोने वालों की रील्स की झमाझम बारिश हो गई. कोई पार्टनर का हाथ पकड़े आंसू पोंछ रहा है, कोई स्क्रीन के सामने पार्टनर को उठाकर झूम रहा है, कोई रोते हुए गानों के बोल दोहरा रहा है तो कहीं अकेली लड़की या लड़का फिल्म के एक्टर या एक्ट्रेस को देखकर दहाड़ें मार रहे हैं.
रील्स में फिल्म ने बेतहाशा ज़ोर पकड़ लिया. और यहीं से फिल्म ‘क्रेज़’ बनने की तरफ आगे बढ़ी.
कहानी के नाम पर रत्ती भर भी फ्रेशनेस ना दे सकने वाली इस फिल्म का प्रमोशन स्टाइल इतना फ्रेश है कि देश भर के पीआर दफ़्तरों में इसे एक केस स्टडी के तौर पर बरता जा रहा है. अभी जबकि सय्यारा की आंधी पूरी तरह थमी भी नहीं है.
ये तकनीक है क्या वैसे?
देखिए फिल्म भी एक प्रोडक्ट ही है. सैकड़ों लोगों के एक साथ आने के बाद बन कर कन्ज्यूम किए जाने के लिए तैयार होती है. इस लिहाज से किसी भी प्रोडक्ट की तरह फिल्म के प्रमोशन को भी दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. पहला, प्री-रिलीज प्रमोशन दूसरा, पोस्ट रिलीज प्रमोशन
दूसरे हिस्से की बात बाद में करेंगे, पहले शुरुआत से ही शुरू करते हैं.
इस साल रिलीज हुई फिल्मों का कैलेंडर देखिए. प्रमोशन का एक पैटर्न चल पड़ा है. कद्दावर एक्टर्स की फिल्मों से ठीक पहले उस एक्टर या जिस मुद्दे पर फिल्म आ रही है उसके बारे में चर्चा, शिकायतें, अफवाहें और बतोलेबाज़ी शुरू हो जाती है. एकदम दिल्ली की ‘आर्टिफिशियल रेन’ की तरह. ये बात अलग है कि आर्टिफिशियल रेन यहां बस थ्योरी में है प्रैक्टिकल नहीं. लेकिन अगर होती तो ऐसी ही होती.
फिल्म में मौजूद एक्टर्स के आपसी कनेक्शन (या अफेयर कह लें) की बात अब पुरानी हुई. अब प्रमोशन के लिए किसी स्वनामधन्य ‘अलां फलां सेना’ के आहत हो जाने से बात बन जाती है. सौ पचास रुपए का रवादार ‘अध्यक्ष जी’ मटीरियल आहत होकर लाखों करोड़ों का इनाम घोषित कर देता है. इस तरह इतिहास के मुद्दे पर बनी फिल्मों का वारा न्यारा होता है. ‘देश की मिट्टी’ टाइप फ़िल्में उस घटना पर बहस मुबाहिसों से ज़ोर पकड़ती हैं. अगर किसी घरानेदार नव युवा एक्टर या एक्ट्रेस की आमद होनी है तो बम्बई में थोक के भाव मिल रहे पापराज़ियों की चांदी कटती है. जिम जाने से लेकर सलून तक और पार्टियों से लेकर किसी बुज़ुर्ग के सारे अमरुद खरीद लेने के वीडियो तक, दर्जन भर मोबाइल कैमरे ‘अनचाहे’ तरीके से उनके पीछे लगे रहते हैं.
लेकिन सय्यारा के साथ ऐसा नहीं हुआ.
मोहित सूरी के निर्देशन में जिन दो न्यूकमर्स को पर्दे पर एंट्री लेनी थी, उन अहान पांडे और अनीत पड्डा को आम जनता ने पहली बार सीधा सिनेमा के पर्दे पर ही देखा. इस मामले में आदित्य चोपड़ा ने सरप्राइजिंगली जनता को सरप्राइज ना करना चुना. उन्होंने अहान और अनीत को किसी तरह के किसी प्रमोशन का हिस्सा नहीं बनने दिया. अहान तो एकाधा बार मुम्बइया पापराज़ियों के हत्थे लगे भी, लेकिन अनीत को जनता ने पहली बार देखा ही थिएटर में.
आदित्य चोपड़ा अपनी शर्तों पर बने रहने और कुछ मामलों में ढील ना देने के लिए जाने जाते हैं. पहली नज़र में ये स्टेप डायरेक्टर मोहित सूरी के लिए बेहद रिस्की दिखाई देता है. अगर सांस थाम कर सिनेमा थिएटर में उतरी फिल्म चुपचाप नाकाम हो जाती तो मोहित की बरसों की मेहनत ऐसे पानी में मिलती कि सिनेमा पर नजर रखने वाले भी इससे अनजान ही रह जाते. लेकिन अस्ल में मोहित ने रोमांटिक फ़िल्में साधने का हुनर बहुत बरसों में साधते साधते साधा है और इस बार फ्रेम बाय फ्रेम अपने टार्गेट ऑडीएंस के लिए बनाई गई इस फिल्म का ‘बद-नसीबी’ के अलावा कोई दुश्मन था नहीं. इसलिए मोहित सूरी भी फिल्म के लीड एक्टर्स की तरह चुपचाप होनी का इंतजार कर रहे थे.
ऐतिहासिक तौर पर कामयाब ओटीटी सीरीज पंचायत के लेटेस्ट सीजन के बाद उसमें उप-प्रधान का किरदार निभाने वाले कमाल के अभिनेता ‘फ़ैसल मलिक’ ने इतने इंटरव्यू दिए कि एक समय मोबाइल की फीड में हर दूसरी रील उनके किसी पॉडकास्ट की होती थी.
इससे उलट चोपड़ा कैम्प ने अहान और अनीत को अब तक रहस्य बनाए रखा है. किसी ऐसी धुंधली तस्वीर की तरह, जिसमें देखने वाले को अपना चेहरा दिखाई देता रहे.
अब बात पोस्ट रिलीज प्रमोशन की. थिएटर में बेहोश होते लोग, चीखते, नाचते, कपड़े फाड़ने की हद तक पागलपन का शिकार लोग.
इसमें सबसे पहले ध्यान देने वाली बात ये है कि जो शुरुआती रील्स थिएटर में रोने-गाने वाली आईं थीं, वो किसी मल्टीप्लेक्स या बड़े शहर की नहीं थीं. वो ज़्यादातर सिंगल थिएटर्स से आई थीं. बनारस, रायपुर, पटना जैसे शहरों के सिंगल थिएटर्स में बनाई गई रील्स.
सोशल मीडिया के कुछ इन्स्पेक्टर मातादीनों ने साबित करने की टोन में कहा कि इसके पीछे बहुत भयानक पीआर है और ये साइड एक्टर्स से बनवाई गई रील्स हैं. लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से हुई बातचीत से मिली जानकारी पर भरोसा करें तो हैरानी होती है कि ‘सय्यारा’ के प्रमोशन का काम यशराज फिल्म्स के लिए किसी बाहरी कंपनी ने किया ही नहीं. इसका प्रमोशन यशराज की इन्टर्नल प्रमोशन टीम ने किया जिस पर शुरुआत से आदित्य चोपड़ा की बारीक नज़र रही. अब जब अपनी पढ़ाई के बल पर बच्चा टॉप कर गया है तो बहुत सी कोचिंग वाले उसे ‘अपने यहां का प्रोडक्ट’ बताते नहीं थक रहे.
‘सीक्रेट मसाले’ के बिना कोई जादूई डिश कैसे बन सकती है? इस बनावटी सवाल से पार पाना हो तो ये समझ लें कि आपकी स्वाद कलिकाएं (टेस्ट बड्स) दिमाग़ के उन कोनों तक जुड़े होते हैं जिसके राज़ ख़ुद आपको भी नहीं पता. कच्चे नींबू की गंध आपकी आत्मा पर वो असर कर सकती है जो दुनिया का सबसे महंगा परफ्यूम नहीं कर सकता, बशर्ते आपने अपने प्रेमी के घर के सामने एक नींबू की गाछ के नीचे बरसात की कोई शाम बिताई हो.
क्या भुने हुए नमकीन कॉक्रोच आपके लिए कोई मायने रखते हैं? लेकिन चीन में इन्हीं को खाते हुए जिस बच्चे ने अपनी नानी से कहानियां सुनी हों उसके लिए भुने हुए नमकीन कॉक्रोच के स्वाद का अंदाज़ा कोई इन्स्पेक्टर मातादीन नहीं लगा सकता. मसालों का ‘सीक्रेट’ हमेशा हमारे सामने होता है. बस हम ही सीधी सरल बात मानने को तैयार नहीं होते.