क्या था भारतीय सेना का ऑपरेशन ब्रासटैक्स जिससे बिना युद्ध के ही घबरा गया था पाकिस्तान?

भारत ने पांच लाख सैनिकों की तैनाती से पाकिस्तान को डराया, और ये एक ऐसी जंग बनते-बनते रह गई जिसने इतिहास बदल दिया

ऑपरेशन ब्रासटैक्स (सांकेतिक तस्वीर)
ऑपरेशन ब्रासटैक्स (सांकेतिक तस्वीर)

सर्दियों का मौसम, 1986-87. भारत ने राजस्थान के रेगिस्तान में टैंक और सैनिकों की ऐसी तैनाती की, जैसी शांति के समय में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कभी नहीं देखी गई. ऑपरेशन ब्रासटैक्स ने पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया.

इस सैन्य अभ्यास ने न सिर्फ़ इस्लामाबाद को अपनी रक्षा रणनीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर किया, बल्कि ये सच भी बाहर आया कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं. आज, जब पहलगाम नरसंहार के बाद भारत-पाक तनाव फिर चरम पर है, हम आपको ले चलते हैं उस जंग की कहानी में, जो कभी लड़ी ही नहीं गई.

इंडिया टुडे आर्काइव में आज किस्सा ऑपरेशन ब्रासटैक्स का. कैसे भारत ने पांच लाख सैनिकों की तैनाती से पाकिस्तान को डराया, और कैसे ये एक ऐसी जंग बनते-बनते रह गई, जिसने इतिहास बदल दिया?

बात शुरू होती है 1986 के दिसंबर से, जब भारत ने ऑपरेशन ब्रासटैक्स शुरू किया. ये कोई साधारण सैन्य अभ्यास नहीं था. साल 1987 में इसी ऑपरेशन के बारे में इंडिया टुडे मैगजीन ने कवर स्टोरी छापी थी. 15 फरवरी के अंक में इंद्रजीत बधवार और दिलीप बॉब लिखते हैं कि ये विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा शांतिकालीन सैन्य अभ्यास था.

पांच लाख सैनिक, 10 डिवीज़न, और टैंक-असॉल्ट ब्रिगेड्स राजस्थान के बिकानेर और जैसलमेर के रेगिस्तानों में तैनात थे. भारत-पाक सीमा से महज़ 180 किलोमीटर दूर. पाकिस्तान में हड़कंप मच गया. इस्लामाबाद को लगा कि भारत जंग की तैयारी में है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी मार्च 1987 में लिखा, “ऑपरेशन ब्रासटैक्स दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और विवादास्पद सैन्य अभ्यास था.” पाकिस्तान ने अपनी सेना को फुल अलर्ट पर रखा. सैटेलाइट बेस एक्टिवेट किए गए, गांव खाली कराए गए, और लाहौर के पास पुलों पर विस्फोटक लगाए गए.

अपने चरम पर तब पहुंच गया जब पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़दीर खान ने भारतीय पत्रकार कुलदीप नैयर से कहा, “कोई पाकिस्तान को मिटा नहीं सकता. अगर हमारी हस्ती पर ख़तरा आया, तो हम परमाणु बम का इस्तेमाल करेंगे.”

इंडिया टुडे की इस रिपोर्ट के मुताबिक, खान का बयान पाकिस्तान की परमाणु क्षमता का पहला सार्वजनिक खुलासा था.

मगर ऑपरेशन ब्रासटैक्स की ज़रूरत क्यों पड़ी? इसका जवाब जानने के लिए उस दौर के सियासी और जियो-पॉलिटिकल माहौल को समझना पड़ेगा. 1986 में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद और कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित अशांति चरम पर थी. पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI और सेना इन इलाक़ों में हथियार, पैसे, और ट्रेनिंग के ज़रिए अस्थिरता फैला रही थी. तत्कालीन सैन्य तानाशाह ज़िया-उल-हक़ भारत में “रणनीतिक गहराई” चाहते थे.

दूसरी तरफ, कोल्ड वॉर का दौर था. अमेरिका, जो पाकिस्तान का सहयोगी था, अब इस्लामाबाद के परमाणु कार्यक्रम पर नज़र रख रहा था. भारत, जिसने 1974 में स्माइलिंग बुद्धा परमाणु परीक्षण किया था, अपनी सेना को मॉडर्नाइज़ कर रहा था. ब्रासटैक्स भारत की ताक़त का प्रदर्शन था.

ऑपरेशन ब्रासटैक्स की कमान थी तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी के हाथों में. इंडिया टुडे की 1987 की रिपोर्ट के मुताबिक, सुंदरजी अपनी नई मशीनी युद्ध रणनीति को ज़मीन पर आज़माना चाहते थे. नवंबर 1986 में भारत ने पाकिस्तान को हॉटलाइन पर सूचना दी कि राजस्थान में सैन्य अभ्यास होगा. लेकिन जब टैंक और सैनिक सीमा के पास पहुंचे, तो पाकिस्तान ने इसे जंग की तैयारी समझा.

पाकिस्तान ने भी अपने सैन्य अभ्यास सफ़-ए-शिकन को तेज़ किया. जनवरी 1987 तक दोनों देशों की सेनाएं 400 किलोमीटर लंबी सीमा पर आमने-सामने थीं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से कहें तो एक छोटी सी चिंगारी भी बड़ी जंग छेड़ सकती थी.

लेकिन क्या ब्रासटैक्स सिर्फ़ एक सैन्य अभ्यास था, या इसके पीछे कोई गहरी साज़िश थी? इस सवाल ने इतिहासकारों को बांट दिया है. जनरल सुंदरजी ने इसे “प्योर ट्रेनिंग एक्सरसाइज़” बताया. लेकिन पश्चिमी कमांड के तत्कालीन कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) पीएन हून ने अपनी किताब द अनटोल्ड ट्रुथ (2015) में दावा किया, “ब्रासटैक्स कोई अभ्यास नहीं था. ये पाकिस्तान के साथ चौथी जंग की तैयारी थी. और हैरानी की बात, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इसकी जानकारी नहीं थी.”

वहीं सैन्य विशेषज्ञ रवि रिख्ये ने अपनी किताब वॉर दैट नेवर वॉज़ में लिखा,  “सुंदरजी फील्ड मार्शल बनना चाहते थे, और तत्कालीन जूनियर रक्षा मंत्री अरुण सिंह प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे थे.”

इन दावों ने ब्रासटैक्स को और रहस्यमयी बना दिया. लेकिन एक बात साफ़ थी—इस अभ्यास ने पाकिस्तान को भारत की सैन्य ताक़त का अहसास कराया. इस्लामाबाद को अपनी रणनीति पर दोबारा सोचना पड़ा.

मार्च 1987 में कूटनीतिक हस्तक्षेप से तनाव कम हुआ. भारत और पाकिस्तान ने कश्मीर और राजस्थान से 1,50,000 सैनिक वापस बुलाए. लेकिन भारत ने उसी समय ब्रासटैक्स का अंतिम चरण शुरू किया, जिसमें 1,50,000 सैनिक शामिल थे.

आज, जब पहलगाम नरसंहार के बाद भारत-पाक तनाव फिर बढ़ रहा है, ऑपरेशन ब्रासटैक्स की कहानी हमें याद दिलाती है कि दोनों देशों के बीच जंग का ख़तरा हमेशा मंडराता रहा है. भारत ने सिंधु जल संधि निलंबित कर दी है, और पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द किया है. भारतीय वायुसेना का एक्सरसाइज़ आक्रमण और पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों की उत्तरी सीमा पर तैनाती इस तनाव को और गहरा रही है. लेकिन ब्रासटैक्स ने ये भी दिखाया कि कूटनीति जंग को टाल सकती है. सवाल ये है—क्या आज भी दोनों देश उस रास्ते पर चलेंगे?

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