जब शोएब अख्तर ने बताया कि क्यों वे सचिन को कभी गाली नहीं दे पाए!

नवंबर, 2013 में जब सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को अलविदा कहा तब इंडिया टुडे मैगजीन ने उनके ऊपर एक विशेषांक प्रकाशित किया था और इसमें शोएब अख्तर समेत दुनियाभर के नामी खिलाड़ियों ने 'क्रिकेट का भगवान' कहे जाने वाले इस खिलाड़ी से जुड़े अपने किस्से साझा किए थे

एक मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर और शोएब अख्तर
एक मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर और शोएब अख्तर

"...तेंदुलकर के मामले में अनायास सतर्क हो जाना पड़ता है क्योंकि उन पर कलम चलाते वक्त आप यह सोचकर अपना श्रेष्ठ पेश करने की कोशिश करते हैं कि लोग इसे जरूर पढ़ेंगे, समझेंगे और गंभीरता से विचार करेंगे." यह पंक्ति 29 पुस्तकों के लेखक और खेल पत्रकार गिडियन हेग की है जो उन्होंने 27 नवंबर 2013 के इंडिया टुडे मैगजीन के सचिन विशेषांक के लिए लेख में लिखी थी. 

2024 कई मायनों में खास है मगर इसी साल क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर 51 वर्ष के हो जाएंगे. जब आप उनके बारे में बात करेंगे तो पाएंगे कि लोग उन्हें उनकी 1988 के अपने पहले रणजी मैच के शतक, 2000 के रणजी सेमीफाइनल में नाबाद 233 या किसी दूसरे अंतर्राष्ट्रीय स्कोर के लिए याद नहीं करते. फिर क्यों करते हैं याद? क्यों कहते हैं उन्हें 'गॉड'?

गिडियन हेग अपना अनुभव बयान करते हुए कहते हैं, "मैंने उन पर बहुत लिखा है, फिर भी मुझे हर बार ख़ुशी और संतोष का एहसास होता है. उन्हें खेलते देखना जितना आनंददायक है, उनके बारे में लिखना भी वैसा ही है; मौके-बेमौके उनके बहुआयामी और प्रेरणास्पद अंदाज की तरह." गिडियन जब यह लेख लिख रहे थे, सचिन तेंदुलकर ने अपना 200वां टेस्ट खेलने के बाद 2013 के नवंबर में अपनी रिटायरमेंट की घोषणा कर दी थी. 

27 नवंबर 2013 का इंडिया टुडे मैगजीन का सचिन विशेषांक

सचिन तेंदुलकर का खेल से सेवानिवृत्त होना वाकई में समय को बांटने वाला एक लम्हा था. उनके आखिरी दिनों की फॉर्म किसी से छिपी नहीं है. गिडियन ने काफी बारीकी से सचिन के आखिरी दिनों के बारे में लिखा कि कई मौकों पर उन्हें देख ऐसा लगा कि मरणोपरांत किसी योद्धा को उसकी सैन्य सजधज में घोड़े पर बैठाकर किला भेदने भेज दिया गया हो. इसलिए खेल से उनकी विदाई का दुख तो है मगर एक तरह की राहत भी है क्योंकि अब तेंदुलकर को झेलते नहीं देखना पड़ेगा. 

अपनी आखिरी टेस्ट के लिए जाते हुए सचिन तेंदुलकर/इंडिया टुडे

मगर सचिन का रिटायरमेंट तो बहुत आगे की चीज हो गई. थोड़ा पीछे चलते हैं और जानते हैं कि कैसा था एक भगवान को बनते हुए देखना? 2013 में छपे इंडिया टुडे मैगजीन के सचिन विशेषांक में पत्रकार कुणाल प्रधान एक किस्सा बताते हैं. मुंबई में खेल पत्रकार और बाद में एक अख़बार के संपादक बने सुनील वारियर 13 साल के सचिन का इंटरव्यू ले रहे थे. उन्होंने स्कूल के टूर्नामेंट्स में शानदार प्रदर्शन किया था. वारियर ने लिखा, "सचिन धीमी बल्लेबाजी करना पसंद नहीं करते. वे हमेशा आक्रमण पसंद करते हैं. उनकी एकमात्र महत्वाकांक्षा शतक ठोकना है." लेख ख़त्म करने से पहले उसमें भविष्यवाणी की गई थी, "लगता है, एक और संदीप पाटील तैयार हो रहा है!" 

इंडिया टुडे सचिन विशेषांक 2013/गेट्टी इमेजेज

आप वारियर के शब्दों को पढ़ने के बाद वेस्टइंडीज के महान खिलाड़ी ब्रायन लारा के ये शब्द पढ़िए जो उन्होंने 2013 में सचिन के रिटायरमेंट के बाद इंडिया टुडे से कहे थे - "(अगर सचिन से सीख पाता तो) मैं उनकी तरह शांत चित्त होकर खेलना सीखता." ऐसा लगता है ये बातें दो अलग-अलग व्यक्तियों के बारे में कही गई हैं. मगर यह सचिन थे, जितना ही इनके क्राफ्ट में आप उतरेंगे, खुद को चकित होता पाएंगे. 

सचिन तेंदुलकर - एक ऐसा नाम जो भारतवासियों के जेहन में आर्थिक उदारीकरण के पहले ही बस चुका था. उनके साथ हमने देखा कि बाजार कैसे अपना रास्ता बनाता है, फिर चाहे वह देश में हो या क्रिकेट में. वे सचिन ही थे जिनके दिहाड़ी मजदूरी करने वाले एक फैन अजीत सिंह तंवर को न्यूज़ चैनल्स ने 50,000 रुपए देकर अनुबंधित किया, वह भी सिर्फ इसलिए कि उन्हें सचिन की पारियां मुंह-जबानी याद थीं. 

साल था 1987 और तेज गेंदबाजी सीखने के इच्छुक सचिन को एमआरएफ एकेडमी में डेनिस लिली ने ख़ारिज कर दिया था. अगले ही साल सचिन ने मुंबई के ब्रबोर्न स्टेडियम में भारत के खिलाफ एकदिवसीय प्रैक्टिस मैच में पाकिस्तान के लिए सब्स्टीट्यूट के तौर पर फील्डिंग की और ठीक एक साल बाद उसी टीम के खिलाफ अपना पहला इंटरनेशनल मैच खेला. 1989 में जब सचिन ने टेस्ट में बल्लेबाजी शुरू की तो उन्होंने सुनील गावस्कर से तोहफे में मिले पैड पहन रखे थे. 

1989 में सचिन ने टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया था/इंडिया टुडे मैगजीन

1996 में इंग्लैंड के खिलाफ बर्मिंघम में हुए टेस्ट मैच में भारत भले ही हार गया था मगर इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और कमेंटेटर ज्यॉफरी बॉयकॉट को सचिन की पारी याद रह गई. इंडिया टुडे के सचिन विशेषांक में उन्होंने लिखा, "ऐसी कठिन पारी खेलने के लिए जिस अनुशासन और फोकस की दरकार होती है, उसे लय और आक्रामकता दोनों को साधते हुए अंजाम नहीं दिया जा सकता. लेकिन सचिन ने दोनों का ही यकीनन दुर्लभ प्रदर्शन किया. हम सभी यह देखकर हैरान थे कि उस कहर ढाती गेंदबाजी के आक्रमण के सचिन पूरी निडरता से अकेले ही जूझ रहे थे, जबकि दूसरे छोर से उनके साथी बल्लेबाज 'तू चल मैं आता हूं' की मुद्रा में मैदान छोड़ते जा रहे थे."

ज्यॉफरी आगे थोड़ा तकनीकी चीजों में जाते हैं और बताते हैं कि कैसे अपनी कला में महारत रखने वाले किसी नर्तक की तरह सचिन ने हर बार अपना शॉट खेलने के लिए एकदम माकूल मुद्रा अपनाई है. अगर किसी ने गौर से देखा हो तो उसे पता चल गया होगा कि सचिन के पैर हमेशा दोनों विकेटों की बीच की लाइन में होते हैं. बल्ला हमेशा ऑफ स्टंप की लाइन में होता है और बैकलिफ्ट कुछ इस तरह से होती है जिससे बल्ले को आगे लाकर शॉट खेलने में आसानी हो. वे जिस ताकत से शॉट खेलते हैं, उसकी असली वजह यही है कि वे पूरे संतुलन के साथ शरीर की ताकत लगा पाते हैं.

शॉट खेलते हुए सचिन तेंदुलकर/इंडिया टुडे मैगजीन

गेंद की लंबाई को पढ़ लेने की उनकी काबिलियत, ज्यादा ताकत लगाए बगैर उम्दा ड्राइव, और कट और पुल शॉट खेलने में आसानी सचिन को उनकी ही तरह का अनोखा गॉड पोस्चर  प्रदान करती है. और इसी गॉड पोस्चर से अक्सर गेंदबाजों की रूह कांपती रही. सियालकोट में सचिन की पहली सीरीज के चौथे टेस्ट में उनके चेहरे पर एक बाउंसर फेंकने वाले वकार यूनुस कहते हैं, "1989 के दौरे से पहले भारत के अंडर-19 दौरे के समय पाकिस्तानी टीम ने अजय जडेजा से 16 साल के जिस लड़के के बारे में सुना था, उसने दोबारा अपने ऊपर किसी गेंदबाज को हावी नहीं होने दिया."

2013 के सचिन विशेषांक में अपने लेख में जी.एस. विवेक लिखते हैं, "अगले कुछ वर्षों में जब भारत और पाकिस्तान नियमित रूप से एकदिवसीय मैच खेलने लगे तो पाकिस्तान के ड्रेसिंग रूम में सारी बातचीत का मुद्दा यही होता था कि सचिन को कैसे थामा जाए. वे समझ चुके थे कि अगर उन्हें पहले कुछ ओवरों में आउट नहीं किया तो वे भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं." मगर इसकी वजह क्या थी? 

पाकिस्तान के शोएब अख्तर कहते हैं, वे जानते थे कि उन्हें सचिन को बाकी खिलाड़ियों से अलग रखकर देखना होगा. "मैंने कभी भी सचिन के साथ गाली-गलौज नहीं की. कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं जिन्हें छोड़ देना ही बेहतर रहता है. वे ऐसे खिलाड़ी हैं जो त्यौरियों का जवाब ज्यादा जोर से बल्ला चलाकर देते हैं."

2003 के विश्व कप की बात याद करते हुए शोएब बताते हैं, "मैंने उन्हें यह सोचकर ऑफ स्टंप के बाहर शॉर्ट पिच गेंद फेंकने की कोशिश की कि वे गेंद को पुल करेंगे. लेकिन उन्होंने उसे प्वाइंट के ऊपर से उठाकर छक्का जड़ दिया. इस शॉट ने उन्हें मशहूर कर दिया था."

नेट पर और घरेलू क्रिकेट में सचिन के खिलाफ शायद सबसे ज्यादा गेंदबाजी कर चुके जवागल श्रीनाथ के मुताबिक, सचिन के खिलाफ गेंदबाजी करते समय आपका दिमाग हर वक्त चलते रहना चाहिए. अगर आपने पहले से कोई योजना बनाई है, तो वे उसे कभी कामयाब नहीं होने देंगे. उनके शब्दों में, "सचिन बताते रहते थे, अब यह ऊपर डालेगा या थोड़ा छोटा मारेगा. उनका अंदाजा 90 फीसदी सही होता था."

मगर समय के साथ सबसे अच्छी और सबसे बुरी चीज यही होती है कि वह बीत जाती है. यही सचिन के साथ हुआ. अपना 100वां शतक बनाने के लिए उन्होंने साल भर का समय लिया. नब्बे के दशक में पैदा हुए हम जैसों ने 'नर्वस नाइनटीज' सचिन की परफॉरमेंस के लिए ही पहली बार सुना था. अपने लेख में कुणाल प्रधान लिखते हैं कि रिकॉर्ड बनाने से सचिन को इतना प्रेम रहा है कि कई बार उन पर टीम के हित की अनदेखी करने का भी आरोप लगा. हालांकि फिर भी लोग उन्हें 'भगवान' के ही रूप में याद करते हैं कि क्योंकि ऐसा कम ही होता है जब बुरी यादें हमारी स्मृति में अपनी छाप छोड़ पाती हैं. 

बकौल ज्यॉफरी, किसी के खेल में धीरे-धीरे लगातार गिरावट आना कोई शर्म की बात नहीं है. जैसा कि सचिन के साथ हुआ है. लगातार खेलते रहने की उनकी लालसा को भी समझा जा सकता है. इन तमाम किस्म के उतार-चढ़ावों के बीच ऐसा कभी नहीं लगा कि सचिन खेल का आनंद नहीं उठा रहे हैं. 

सचिन ने भले ही क्रिकेट को अलविदा कह दिया हो मगर क्रिकेट जगत अभी तक अपने भगवान को विदा नहीं कर सका है. क्रिकेटर्स का क्या है, साहिर की शायरी है - फिर और आएंगे नगमों की खिलती कलियां चुनने वाले/ मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले. 

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