महाराष्ट्र के सातारा में जब हुआ हाथरस जैसा हादसा, पहाड़ी से गिरने लगे लोग और हो गई 300 की मौत
हाथरस में नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ की वजह से 121 लोगों की मौत हो गई. ऐसा ही हादसा क़रीब दो दशक पहले महाराष्ट्र के सातारा में मांढर देवी मंदिर में हुआ था

"कुछ लोग कहते हैं इस देश में लोग रहते हैं
मुझे लगता है, इस देश में सिर्फ़ एक संख्या भर रहती है
यह जुलाई 2024 है और संख्या है 121."
त्रिभुवन की कविता ‘इस देश में संख्या ही तो रहती है’ की शुरुआती 3 लाइनें हैं ये. जिसकी तीसरी लाइन हमने बदल दी. क्योंकि जुलाई 2024 ही है और हमारे सामने हाथरस का हादसा है. 2 जुलाई का दिन, हाथरस का फुलरई गांव और एक धार्मिक जुटान, जहां नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा का सत्संग चल रहा था. मीडिया रपटों में दावा है कि सत्संग सुनने के लिए ढाई लाख लोग पहुंच गए थे. जबकि अनुमति 80 हज़ार लोगों की थी. कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मची और 121 लोगों की मौत हो गई. आंकड़े की पुष्टि 3 जुलाई की सुबह प्रशासन ने की है.
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2 जुलाई की देर रात पुलिस ने 22 लोगों के खिलाफ इस मामले में मुकदमा दर्ज किया है. इसमें कार्यक्रम के मुख्य आयोजक देव प्रकाश मधुकर का नाम है. बाकी 21 लोग अज्ञात हैं. FIR से नारायण साकार हरि का नाम नदारद है जो कि यहां सत्संग करने पहुंचे थे.
लेकिन ये अपनी तरह का पहला मामला नहीं है. और ये उम्मीद किस बिनाह पर की जाए कि ये आख़िरी मामला बन जाएगा? लेकिन इंडिया टुडे मैगज़ीन के 7 फरवरी, 2005 के अंक में झांकेंगे तो पता चलेगा कि क़रीब दो दशक पहले महाराष्ट्र का सातारा जिला ऐसे ही एक हादसे से कांप उठा था.
सातारा जिले में एक तालुका है वाई. इसी की एक पहाड़ी पर मांढर देवी का प्रख्यात मंदिर है. हर साल जनवरी के महीने में बड़ी संख्या में लोग मांढर देवी की यात्रा पर जाते है. और ये यात्रा करीब 15 दिनों तक चलती है. मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी चढ़ना पड़ता है. इसके लिए पहाड़ी पर ही 120 सीढ़ियां बनाई गई हैं. सीढ़ियों के दोनों तरफ पूजा के सामान की दुकानें हैं. मान्यता है कि इस जनवरी वाली यात्रा में शामिल होने वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
2005 का साल था. और पहला ही महीना यानी जनवरी. रिवाज़ के मुताबिक़ ये यात्रा शुरू हुई और 25 जनवरी के दिन करीब 3 लाख भक्त यात्रा में शामिल होने पहुंचे. इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी थे. इंडिया टुडे मैगज़ीन के 7 फरवरी, 2005 के अंक में छपी रिपोर्ट में परीक्षित जोशी लिखते हैं, "हर साल की तरह दर्शनार्थियों की खासी भीड़ जुटी. अपने हाथों में नारियल और देवी की तस्वीर लिए लोग दर्शन के लिए कतार में लगे थे, तभी अचानक भगदड़ मच गई. जिसमें कम से कम 257 लोगों की कुचलकर मौत हो गई."
अस्पतालों में भर्ती घायल लोग दम तोड़ते रहे और भगदड़ में हुई मौत के आंकड़े बाद के दिनों तक बदलते रहे. BBC मराठी ने अपनी रिपोर्ट में मौत का आंकड़ा 300 बताया तो Indian Express की रिपोर्ट 340 लोगों की मौत दर्ज करता है.
लेकिन ये सवाल है कि आख़िर देवी की मंदिर में भगदड़ मची कैसे? परीक्षित जोशी की रिपोर्ट में ज़िक्र मिलता है, "कुछ लोगों का कहना है कि शॉर्ट सर्किट के बाद बिजली के ट्रांसफॉर्मर में धमाका होने से भगदड़ मची, वहीं कुछ अन्य के मुताबिक़ सीढ़ियों पर नारियल फोड़ने और सीढ़ी के नजदीक दीपमाल में तेल चढ़ाने की वजह से चिकनाई हो गई थी, इन्हीं सीढ़ियों पर कुछ महिलाएं और बच्चे फिसले, जिसके बाद भगदड़ मच गई."
हाथरस भगदड़ जैसा हाल जब महाराष्ट्र के मांढ़र देवी मंदिर में हुआ, 300 लोगों की मौत
हादसे की एक वजह ये बताई गई कि 25 जनवरी की दोपहर को देवी की पालकी निकलने के बाद नारियल फोड़ने के लिए भीड़ उमड़ी तो लोग फिसलकर गिर पड़े. इस आपाधापी में दुकानों में लगी बिजली का तार सीढ़ियों पर जा गिरा जो नारियल फोड़ने की वजह से गीली थीं. इससे सीढ़ी पर मौजूद लोगों को बिजली के झटके लगने लगे और वे जान बचाने को भागे तभी भगदड़ शुरू हो गई.
हादसे में बच गए बाबा साहेब टेमकर नाम के एक शख्स का बयान मिलता है, "मैं मांढर देवी की शरण में आया था ताकि कैंसर से पीड़ित मेरी पत्नी ठीक हो जाए, लेकिन भगदड़ में उसकी मौत हो गई. शायद ईश्वर की यही इच्छा थी."
हादसे के बाद पसरे भय ने इसे और भयानक बना दिया. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि देवी की स्तुति में हो रहे मंत्रोच्चार की जगह जल्दी ही चीख-पुकार सुनाई देने लगी. भगदड़ में अपने परिजनों की लाशें उठाने को बेचैन लोगों को पुलिस ने रोका तो उन्होंने रास्ते में मौजूद पूजा सामग्री की दुकानों में तोड़फोड़ शुरू कर दी और आग लगा दी. दुकानों में रखे करीब 50 सिलेंडरों में आग लगने से विस्फोट होने लगे और आग तेजी से फैलती गई.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट में एक दुकानदार के हवाले से लिखा गया कि, "युवकों के एक समूह ने हम पर हमला कर दिया और दुकानों में आग लगा दी." कुछ अन्य लोगों ने बताया कि, भगदड़ मचते ही दुकानदारों को अपने सामान की चिंता सताने लगी और उन्होंने लोगों को दुकानों से दूर रखने के लिए उन पर नारियल बरसाने शुरू कर दिए.
इस हादसे के लिए अव्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया और आरोप लगे जिला प्रशासन पर. आरोप ये कि मंदिर में व्यवस्था बनाए रखने के लिए बमुश्किल 150 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे. हालांकि पुलिस के अधिकारियों ने दावा किया था कि मंदिर में 250 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे.
प्रशासन के दावों से इतर बदइंतजामी की गवाही इस बात से मिलती है कि आग पर काबू पाने के लिए फायर ब्रिगेड की गाड़ियां तक उस जगह नहीं थीं. करीब 85 किमी दूर स्थित पुणे से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां मंगवानी पड़ी. बचाव कार्यों में इस वजह से भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि मंदिर की ओर जाना वाला रास्ता काफी मुश्किल था.
नहीं सीखते सबक:
सातारा के मांढर देवी मंदिर में हुआ हादसा ऐसी भगदड़ का पहला उदाहरण नहीं है. इतिहास पर नज़र दौड़ाएंगे तो ऐसी कई घटनाएं मिल जाएंगी. 1954 में इलाहाबाद जो कि अब प्रयागराज हो चुका है, में कुंभ मेला के दौरान भगदड़ मची थी. आजादी के बाद ये पहला कुंभ मेला था. गार्डियन और Indian Express की रिपोर्ट में इस हादसे में मृतकों की संख्या 800 दर्ज है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स 300 का भी आंकड़ा देते हैं.
3 अगस्त, 2006 को हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ में लगभग 150 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और 400 से अधिक घायल हुए. 30 सितंबर, 2008 को नवरात्रि उत्सव के दौरान राजस्थान के जोधपुर में पहाड़ी पर स्थित चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 120 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. 14 जनवरी, 2011 को केरल के सबरीमाला मंदिर में भगदड़ में 106 तीर्थयात्रियों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हुए. 13 अक्टूबर, 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया में रतनगढ़ हिंदू मंदिर के पास भगदड़ में 89 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए.
साल दर साल ऐसे हादसे किसी त्रासदी की तरह हमारे सामने आते हैं. लेकिन पब्लिक से लेकर प्रशासन तक सबक नहीं सीखती. हादसे होते हैं, अख़बारों के पन्ने से लेकर टीवी की स्क्रिन तक पर कुछ जगह और कुछ वक़्त तक बने रहते हैं और फिर उसे भुला दिया जाता है. ना किसी की जिम्मेदारी तय होती है और ना ही ये तय करने की जुगत होती है कि कभी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो.