जब भारत में पहली बार मुख्यमंत्री रहे किसी नेता की गिरफ्तारी हुई...
जयललिता देश की पहली पूर्व मुख्यमंत्री रहीं जिन्हें घोटाले के आरोप में जेल जाना पड़ा. इसके अलावा वे पहली ऐसी मुख्यमंत्री भी रही हैं जो आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी साबित हुईं

पिछले दो दिन देखें तो दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी सुर्खियों में है. 21 मार्च की रात को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सीएम केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति मामले में गिरफ्तार किया. 22 तारीख को राउज एवेन्यू कोर्ट में उनकी रिमांड पर सुनवाई हुई और अदालत ने उन्हें 28 मार्च तक के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया है.
केजरीवाल पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें पद पर रहते हुए जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार किया है. हालांकि इससे पहले देश के अलग-अलग राज्यों के 5 मुख्यमंत्रियों पर शिकंजा कसा गया, लेकिन अरेस्ट होने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. जे. जयललिता पहली ऐसी 'पूर्व' मुख्यमंत्री थीं जिन्हें रंगीन टीवी भ्रष्टाचार मामले में 1996 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा वे पहली ऐसी सीएम रहीं, जिन्हें 2014 में कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठहराया था.
यहां हम जिस कहानी की बात करने जा रहे हैं वो दिसंबर 1996 की है, जब एआईडीएमके की महासचिव जयललिता जयराम को मुख्यमंत्री पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उस समय तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की सरकार थी, मुख्यमंत्री थे- एम. करुणानिधि. तब इस मामले पर इंडिया टुडे के दो जहीन रिपोर्टर अमरनाथ के. मेनन और जी.सी. शेखर ने विस्तृत रिपोर्ट की थी. आइए उसी रिपोर्ट के हवाले से कहानी से रू-ब-रू होते हैं.
कहानी की शुरुआत में जे. जयललिता का तमिलनाडु की राजनीति में कद के बारे में दोनों संवाददाता लिखते हैं, "राज्य की अस्थिर राजनीति में उनका व्यक्तित्व हमेशा अनूठा रहा है. वे एक पहेली जैसी भी बनी रही हैं. स्वभाव से निरंकुश, तरह-तरह के हमलों से बेपरवाह और पुराचि तलैवि (क्रांतिकारी नेता) के रूप में प्रचारित पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता कानून से ऊपर नजर आती थीं. लेकिन कानून के लंबे हाथ उन तक पहुंच ही गए और उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया."
राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि के इशारे पर 7 दिसंबर, 1996 को जयललिता गिरफ्तार हुईं. लेकिन उनकी इस गिरफ्तारी से दो दिन पहले करुणानिधि ने अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ इसके राजनैतिक नतीजों पर विस्तृत चर्चा की थी. संवाददाता लिखते हैं, "करुणानिधि जानते थे कि जयललिता की गिरफ्तारी से दोनों कड़गम (दलों) के बीच तीखा संघर्ष छिड़ सकता है. अगर जरा भर आभास हुआ कि उनकी सरकार जयललिता को तंग कर रही है तो दांव उल्टा पड़ सकता है. इसलिए करुणानिधि व्यक्तिगत तौर पर चाहते हैं कि जयललिता को जेल में लंबे समय तक न रखा जाए, क्योंकि इससे उनके पक्ष में सहानुभूति लहर उमड़ने की संभावना है."
उधर, यह सब होने से बहुत पहले ही जयललिता अपनी गिरफ्तारी की आशंका के चलते अग्रिम जमानत की अर्जी लेकर मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी थीं पर 6 दिसंबर को दोपहर बाद न्यायाधीश सी. शिवप्पा ने अग्रिम जमानत की उनकी सात अर्जियां खारिज कर दीं. इनमें 8.53 करोड़ रु. के रंगीन टीवी घोटाले से संबंधित अर्जी भी थी और इसी मामले में बाद में उन्हें गिरफ्तार किया गया.
जयललिता की गिरफ्तारी के वक्त रिपोर्टर कैसे मुस्तैदी और बारीकी से घटनाक्रमों पर ध्यान रख रहे थे इसकी बानगी उनकी लेखनी में देखने को मिलती है. जयललिता के पोएस गार्डन स्थित आलीशान बंगले पर पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने पहुंची थी. संवाददाता लिखते हैं, "जयललिता ने नहाने के बाद कत्थई रंग की साड़ी और उसी रंग का लबादा पहना, हीरे की बालियां निकालकर नकली बालियां पहनीं, पूजा-अर्चना की, अटैची तैयार की और फिर नाश्ता किया. अंतत: वे निकलकर पोर्च में आईं और कार्यकर्ताओं से "नालै नमधे (कल हमारा है)" कहकर गाड़ी में बैठ गईं. सिटी मजिस्ट्रेट ए. राममूर्ति के आवास पर मद्रास सेंट्रल जेल की कैदी नं 2529 की हैसियत से मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए जाने से पहले वे वहां एक ओर कोने में खड़ी रहीं."
संवाददाता लिखते हैं कि जयललिता जब गिरफ्तार हुईं तो उनके समर्थकों द्वारा राज्य परिवहन की कुछेक बसों को आग लगाने और एक व्यक्ति द्वारा आत्महत्या जैसी छिटपुट घटनाएं जरूर सामने आईं. लेकिन जैसा कि पहले कहा जा रहा था कि "अम्मा गिरफ्तार हुईं तो सड़कों पर खून बहेगा," ऐसा कुछ नहीं हुआ. जयललिता को प्यार से उनके समर्थक अम्मा कहते थे.
रंगीन टीवी मामले में जयललिता के खिलाफ अपराध शाखा ने जो सबूत जुटाए थे, उनके मुताबिक दिसंबर 1995 में जयललिता ने टीवी सेट खरीद संबंधी फाइल मंगाई और हर सेट का मूल्य 14,500 रु. तय कर दिया, जो बाजार दर से ऊंचा था. संवाददाता लिखते हैं कि इस बात के मद्देनजर कि यह आदेश ग्राम पंचायतों में 45,302 टीवी सेटों को वितरित करने के लिए था, जांच अधिकारी कहते हैं कि इस पर आसानी से अच्छी-खासी छूट हासिल कर सकती थी.
तत्कालीन मुख्यमंत्री का तर्क था कि कम समय के भीतर चूंकि बड़ी संख्या में टीवी सेट लगाए जाने हैं और उसके बाद उनकी सर्विसिंग भी की जानी है, इसलिए अधिक मूल्य आवश्यक है. उनके तत्कालीन वित्त सचिव ने बढ़ाए गए मूल्य को लेकर आपत्ति की थी पर उनकी असहमति की टिप्पणी संबंधित फाइल से हटा दी गई.
बहरहाल, जयललिता की गिरफ्तारी के बाद उनके आवास पर छापे भी पड़े. और इन सब दृश्यों को करुणानिधि के भतीजे मुरासोली मारन के परिवार के टीवी चैनल सन टीवी की बदौलत प्रसारित भी किया गया. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, "जयललिता के चेन्नई और हैदराबाद स्थित आवास पर छापों में कई बेशकीमती चीजें और संपत्ति से संबंधित दस्तावेज मिले जिनका मूल्य (तब) करीब 58 करोड़ रु. था. इनमें 30 किलो सोने (400 जोड़ी सोने की चूड़ियां) और 500 किलो चांदी के गहने, 100 से ज्यादा कलाई घड़ियां, 150 दुर्लभ और कीमती नग शामिल हैं. इसके अलावा 10 हजार साड़ियों और 250 जोड़ी विदेशी जूतों का संग्रह भी मिला."
सन टीवी के प्रसारण की बदौलत आम लोगों ने देखा कि पूर्व मुख्यमंत्री के यहां जेवरात और अन्य आभूषणों का कितना बड़ा भंडार था. संवाददाता लिखते हैं, "उसके बाद तो उनकी (जयललिता की गिरफ्तारी) इस दशा पर आंसू टपकाने वाले चंद लोग ही थे. एक तमिल साप्ताहिक के जनमत सर्वेक्षण को संकेत माने तो लोगों की राय कुछ इस तरह थी, "वे इसी लायक थीं." पांच साल तक वे ऐसी सरकार की मुखिया रहीं जिसे 'लूटो और ले जाओ' वाली सरकार कहना ज्यादा मुनासिब होगा और उसका एकमात्र मकसद अम्मा के विस्तृत परिवार - जिसमें विवादास्पद शशिकला नटराजन और उनके रिश्तेदार शामिल थे - को आगे बढ़ाना था."
1991 में जब जयललिता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने कथित तौर पर अपने मुख्यमंत्रित्व काल 1991-96 के दौरान महज एक रु. वेतन लिया. वे राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से थीं. लेकिन जब डीएमके सत्ता में आई तो उन पर 15.52 करोड़ रु की 100 संपत्तियां बनाने के आरोप लगे. रंगीन टीवी खरीद में गबन के आरोप लगे. आय छुपाने के आरोप लगे. गिरफ्तारी के बाद जब उनके आवास पर छापे पड़े तो करोड़ों के जेवरात-आभूषण सामने आए. जयललिता, उनकी सखी शशिकला और गोद लिए बेटे सुधाकरन पर इन पांच सालों में 34 करोड़ रु. की अचल संपत्ति बनाने के आरोप लगे. तब इन्हीं सब बातों को सवालों के घेरे में लाते हुए एक वरिष्ठ नौकरशाह ने इसी रिपोर्ट में टिप्पणी की थी, "1991 तक शशिकला की कोई औकात नहीं थी और जयललिता हर महीने एक रुपया वेतन लेती थीं. तो फिर यह सारी संपत्ति कहां से आई?"
शायद यही वजह रही कि डीएमके के सत्ता में आने के तत्काल बाद पूर्व मंत्रियों, शशिकला और उनके दो संबंधियों की गिरफ्तारी से अन्ना द्रमुक शासन के दौरान भ्रष्टाचार के सनसनीखेज मामलों का खुलासा हुआ. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में आगे जिक्र है, "पूछताछ के दौरान जब शशिकला ने जयललिता पर सीधे कोई आरोप नहीं लगाया और फिर जब जयललिता ने ऐसा जाहिर किया कि उन्हें शशिकला से कोई मतलब नहीं है, तो करुणानिधि ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ही असल सरगना हैं, शशिकला तो अनियंत्रित भ्रष्टाचार के इस खेल में सिर्फ मोहरा थीं."
करुणानिधि सियासत के कितने धुरंधर खिलाड़ी थे उसकी झलक यहां देखने को मिलती है. संवाददाताओं के लिखे के मुताबिक, "जयललिता और शशिकला के बीच मनमुटाव पैदा करने के लिए उन्होंने भावनात्मक स्वर में कहा, पिछड़े वर्ग की एक तमिल महिला किसी और की हरकतों के चलते जेल के सींखचों के पीछे है."
करुणानिधि इसके जरिए यह संदेश देना चाहते थे कि शशिकला, ब्राह्मण और मूल रूप से कर्नाटक की जयललिता के कुचक्रों का शिकार हुई हैं. वर्षों पहले जब करुणानिधि एम. जी. रामचंद्रन से अलग हुए थे तब भी उन्होंने यही हथकंडा अपनाकर तमिल भावनाओं को उभारना चाहा था कि एमजीआर मलयाली हैं.
इसके अलावा करुणानिधि ने अपनी सरकार बनते ही सबसे पहले अधिकारियों को जयललिता के मंत्रिमंडल के उन विश्वस्त साथियों के पीछे लगाया, जिन पर जनता की कल्याण योजनाओं में से धन बनाने का प्रथमदृष्टया मामला साबित हो. संवाददाता लिखते हैं, "दबाव पड़ा तो इनमें से कुछ जयललिता का विरोध करने लगे और उन्होंने पूर्व मंत्री एस. मुत्तुस्वामी के नेतृत्व में अन्ना द्रमुक में विरोधी गुट बना लिया. दूसरे चरण में डीएमके की चुनावी सहयोग तमिल मानिला कांग्रेस के सदस्य और केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने शशिकला के खिलाफ चल रहे मामलों में जांच की गति बढ़ाकर मामला आसान कर दिया."
हालांकि उस समय जयललिता के खिलाफ राज्य और केंद्रीय एजेंसियों ने छह और मामले दर्ज कर रखे थे लेकिन करुणानिधि सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए टीवी घोटाले को चुना. अधिकारियों के मुताबिक, क्योंकि सौदे में आरोपी की व्यक्तिगत भागीदारी के सबूत उपलब्ध थे.
रिपोर्ट में संवाददाता लिखते हैं, "इन तथ्यों के चलते कि शशिकला ने अपने सारे लेन-देन में जयललिता के पोएस गार्डेन का पता दे रखा था, इन दोनों के कम-से-कम तीन संयुक्त खाते हैं और वे कई कंपनियों के साझेदार भी हैं. इससे वो सूत्र स्पष्ट हो गया जिसकी करुणानिधि को तलाश थी और वो ये कि शशिकला जयललिता की कमाई का आवरण हैं."
उस समय करुणानिधि के लिए जयललिता की गिरफ्तारी राजनैतिक जरूरत थी, जिसे संयोगवश न्यायिक अनुमति मिल गई. पिछले विधानसभा चुनाव में अपने पार्टी के घोषणा पत्र में उन्होंने शपथ ली थी कि वे जयललिता और उनके साथियों की संपत्ति कुर्क कर जांच कराएंगे और दोषियों को सजा मिलेगी. इसके अलावा करुणानिधि इसलिए भी जयललिता पर दबाव बना रहे थे कि इससे वे अपने बेटे (चेन्नई के तत्कालीन मेयर) एम. के. स्टालिन को भावी मुख्यमंत्री बनाने के लिए आधार तैयार करना चाहते थे.
जयललिता के बारे में देखें तो दिल्ली में एक के बाद दूसरे प्रधानमंत्री और सरकार ने भी उनकी मदद की. इंडिया टुडे की रिपोर्ट में इस हवाले से लिखा गया है, "1989 में डीएमके विधायकों ने जब सदन में उन पर हमला किया तो राजीव गांधी उनकी मदद को दौड़े आए थे जबकि चंद्रशेखर ने उनके कहने पर 1991 में करुणानिधि की डीएमके सरकार को बर्खास्त कर दिया था. पी. वी. नरसिम्हा राव का मानना था कि वे कोई भी गलत काम नहीं कर सकतीं. यहां तक कि जब जयललिता ने आक्रोश में आकर शिकायत की कि करुणानिधि ने उन्हें सुरक्षाविहीन कर दिया है तो एच.डी. देवेगौड़ा ने उनके राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की सुरक्षा बहाल कर दी."
बहरहाल, जयललिता और उनके दो साथियों को रंगीन टीवी घोटाले मामले में साल 2000 में चेन्नई की एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया. जयललिता इसके बाद भी राज्य की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन विवादों और घोटालों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. साल 2014 में आय से अधिक संपत्ति मामले में वे दोषी साबित हुईं. और इस तरह वे पहली ऐसी मुख्यमंत्री हुईं जिन्हें इस मामले में सजा हुई.