लैंगिक समानता, फैक्ट्री और फिल्म यूनिट! 1981 के लेबनान में फिलिस्तीनियों के गुरिल्ला कैंप में इंडिया टुडे को क्या दिखा था?

लेबनान से इंडिया टुडे मैगजीन की 1981 की यह ग्राउंड रिपोर्ट फिलस्तीन-इजराइल संघर्ष का इतिहास बताने में कुछ-कुछ कार्बन डेटिंग जैसी काम करती है

पीएलओ के लड़ाकों के बीच यासिर अराफात /इंडिया टुडे मैगजीन 1981
पीएलओ के लड़ाकों के बीच यासिर अराफात /इंडिया टुडे मैगजीन 1981

अपने कथित आतंकवाद विरोधी अभियान के तहत गजा में भीषण तबाही मचाने के बाद अब इजराइल लेबनान पर लगातार हमले कर रहा है. लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक अब इजराइली हमलों में 1200 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं और 6000 से ज्यादा घायल हैं. हालांकि इजराइल का कहना है कि उसका निशाना केवल 'हिजबुल्लाह' संगठन है ना कि आम नागरिक. वहीं एक अक्टूबर की रात ईरान के इजरायल पर दर्जनों मिसाइलें दागने के बाद इस पूरे इलाके में तनाव चरम पर पहुंच गया है.

इजराइल, फिलिस्तीन, लेबनान और ईरान का यह संघर्ष ताजा नहीं है बल्कि सालों से चला आ रहा है. इस संघर्ष का जिम्मेदार कोई भी हो, खामियाजा इन देशों के आम नागरिकों को ही उठाना पड़ रहा है. ऐसे में लेबनान से इंडिया टुडे मैगजीन की 1981 की एक ग्राउंड रिपोर्ट इजराइल के साथ इन देशों के संघर्ष का इतिहास बताने में कुछ-कुछ कार्बन डेटिंग जैसी काम करती है. इस रिपोर्ट में दाखिल होने से पहले 1981 के कुछ सन्दर्भ जान लेना जरूरी होगा.

जगह है लेबनान. कुछ 33 साल पहले (1948 में) फिलिस्तीन के भूभाग में इजराइल की स्थापना की गई है. फिलिस्तीन मुक्ति सेना यानी पीएलओ (पैलेस्टाइन लिबरेशन आर्गेनाईजेशन) के कुछ लड़ाके बेरूत में हैं और इजिप्ट के राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या का जश्न मना रहे हैं. चिल्ला रहे हैं - "तानाशाह मारा गया." 6 अक्टूबर, 1981 को काइरो में एक मिलिट्री परेड के दौरान अनवर की हत्या कर दी गई थी जिसके बाद से अधिकतर मिडिल-ईस्ट देशों में लोग जश्न मना रहे थे.

हालांकि इसके पीछे की वजह आज भी पुख्ता नहीं है मगर माना जाता है कि सादात के इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिले होने की वजह से इस्लामिक जिहाद के सदस्यों ने उनकी हत्या कर दी थी.

इंडिया टुडे मैगजीन के 15 नवंबर, 1981 के अंक में अशोक रैना बताते हैं, "1964 में अहमद शुकायरी के नेतृत्व में यरुशलम में संगठित होने के बाद से पीएलओ ने एक लंबा सफर तय कर लिया है. एक समय मिडिल-ईस्ट में आतंकवाद के स्रोत कहे जाने वाले पीएलओ ने फिलिस्तीनियों के वैध प्रवक्ता के रूप में स्वीकृति प्राप्त की है."

दक्षिण लेबनान में स्थित गुरिल्ला नेता अबू खालदूम कहते हैं, "इतने सारे देशों में बिखरने की वजह से फिलिस्तीनियों को सामाजिक रूप से एक पहचान नहीं मिल पा रही थी. मगर पीएलओ ने उन्हें शरणार्थियों से एक ऐसा नागरिक बनाने में मदद की जिसके पास अब एक वजह भी है." 1974 में संयुक्त राष्ट्र में पीएलओ के अध्यक्ष यासर अराफात की नाटकीय उपस्थिति के बाद संगठन को मान्यता दी गई और यह सुनिश्चित किया गया कि मिडिल-ईस्ट में कोई भी शांति समझौता केवल फिलिस्तीनी समस्या के समाधान के बाद ही संपन्न हो सकता है.

फिलिस्तीनियों का कहना था कि मिडिल-ईस्ट में किसी भी शांति समझौते में एक अलग मातृभूमि का प्रावधान होना चाहिए. इधर अराफात ने भी सादात को देशद्रोही करार दिया था क्योंकि 1978 में सादात और यहूदियों के बीच हुए कैंप डेविड समझौते में "फिलिस्तीनी समस्या के सभी पहलुओं के समाधान" का केवल अस्पष्ट उल्लेख किया गया था.

अशोक अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, "इसी वजह से पीएलओ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 242 को स्वीकार करने से इनकार करता है, जो इजरायल सहित मध्य पूर्व में सभी राज्यों के शांति से रहने के अधिकारों की गारंटी देता है. प्रस्ताव को स्वीकार करना इजरायल के अस्तित्व के अधिकार की मौन स्वीकृति होगी. लेकिन अराफात की शिकायत है कि प्रस्ताव में फिलिस्तीनियों को शरणार्थी बताया गया है और मातृभूमि के किसी भी अधिकार का कोई उल्लेख नहीं है."

इंडिया टुडे की 1981 की रिपोर्ट से पता चलता है कि ठिकाने की खोज ने पीएलओ को अनियमित गुरिल्लाओं के एक समूह से निर्वासित सरकार में बदल दिया था. लेकिन संगठन की सैन्य इकाई सबसे अधिक सुर्खियों में थी. फिलिस्तीन मुक्ति सेना (पीएलए), 'फतह' आंदोलन और फिलिस्तीन मुक्ति के लिए लोकप्रिय मोर्चा (पीएफएलपी) से लेकर फिलिस्तीन लोकप्रिय संघर्ष मोर्चा (पीपीएसएफ) मशहूर हो चुका था. चालीस लाख निर्वासित फिलिस्तीनियों में से 47,000 पीएलए में समूह बद्ध थे, 12,000 मिलिशिया इकाइयों से संबंधित थे और 35,000 लोग कमांडो की ट्रेनिंग ले चुके थे और दक्षिण लेबनान से ही ऑपरेट करते थे. इनमें से 80 प्रतिशत पर 'फतह' का नियंत्रण रहता था जो सीधा यासिर अराफात के अंतर्गत आता था.

इसी सब के बीच संवाददाता अशोक रैना ने दक्षिण लेबनान में दो प्रशिक्षण शिविरों का बारीकी से निरीक्षण किया, जहां फिलिस्तीनी देशभक्त रंगरूटों को उग्र गुरिल्लाओं में ढाला जाता था. अब इसके आगे उनकी आंखों-देखी :

एक दुबला-पतला युवा बदन ताने हुए एक खेत में खड़ा था, क्षितिज को घूर रहा था. उसके सामने एक आदमी था जिसके हाथ में क्लाश्निकोव राइफल थी. अचानक, राइफल से गोली चल गई, लड़के के पैरों के पास जमीन पर गोलियां लगीं, लेकिन वह बेफिक्र रहा. गोलीबारी बंद होने के बाद, आदमी ने उसकी पीठ थपथपाई.

लेबनान कैंप में हथियार चलाना सीखता एक लड़का/इंडिया टुडे मैगजीन

यह उन कई परीक्षणों में से एक था जिसका सामना लड़का और दर्जन भर रंगरूट आने वाले हफ्तों में सीमा से सिर्फ़ 20 किलोमीटर दूर एक प्रशिक्षण शिविर में करेंगे. 'टी' के आकार वाले इस शिविर में पक्के रास्तों के किनारे बैरक थे और परिधि के चारों ओर विमानों को निशाना बनाने वाली बंदूकें लगी हुई थीं. पास में, भूमध्य सागर लहरा रहा था.

पीएलओ शिविरों में, प्रशिक्षण में कोई लिंग भेद नहीं था. एक छोटी लड़की, मारिव ज़हीर ने बताया, "हम पुरुषों के साथ प्रशिक्षण लेते हैं और एक ही कोर्स पूरा करते हैं; हमें एक साथ लड़ना चाहिए." प्रशिक्षण के बाद, वह और पांच अन्य लड़कियां अपने पुरुष समकक्षों की तरह ही हथियारों से परिचित होंगी, और युद्ध प्रशिक्षण में भाग लेंगी.

इज़रायली सेना भी कभी-कभी इन लड़ाकों की प्रशिक्षण में सहायता ही किया करती थी, क्योंकि शिविर में नियमित रूप से बमबारी होती थी. शिविर कमांडेंट ने टिप्पणी की, "अब वे जानते हैं कि इज़रायली बम क्या कर सकते हैं; अब वे डरते नहीं हैं."

प्रशिक्षण अवधि अलग-अलग थी - मिलिशिया सदस्यों के लिए छह महीने और नियमित पीएलए भर्ती के लिए दो साल. एक बार प्रशिक्षित होने के बाद, वे दक्षिणी लेबनान में अग्रिम चौकियों या मिलिशिया गश्ती में दिग्गजों के साथ शामिल हो सकते थे.

हालांकि, सभी फ़िलिस्तीनी लड़ाके नहीं हैं. पीएलओ का गैर-सैन्य संगठन, 'समेद' (जिसका अर्थ है दृढ़), 41 कार्यशालाओं के साथ युद्ध के प्रयासों का समर्थन करता है, जिसमें 5,500 कर्मचारी जरूरी चीजों जैसे अंडे, साबुन इत्यादि का उत्पादन करते हैं. 'समेद' की सैदा आइदा ने कहा, "इज़रायलियों ने हमारी ज़मीन और संस्कृति चुरा ली है. हम इसे फिर से बनाने की कोशिश कर रहे हैं."

पीएलओ ने छह परियोजनाओं के साथ एक कृषि इकाई भी स्थापित की, जो फ़िलिस्तीनियों को उनकी खेती की जड़ों की याद दिलाती है. अपनी उग्रवादी छवि को कूटनीतिक छवि में ढालने के लिए, पीएलओ ने फ़िलिस्तीनी संघर्ष को डॉक्यूमेंट करने वाली एक फ़िल्म यूनिट भी तैयार की है.

लेकिन एक पीढ़ी पहले खोई हुई मातृभूमि को वापस पाने के लिए पीएलओ के प्रयासों का मूल उन शिविरों में दिखता है, जहां छोटे बच्चों को लगातार बताया जाता है कि उन्हें अपने साथ हुए अन्याय को नहीं भूलना चाहिए. स्कूल के बाद, बच्चे देशभक्ति के गीत गाते हुए दिन भर के लिए अलग हो जाते हैं. एक गीत विशेष रूप से पीएलओ के दृष्टिकोण और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है:

अगर वे मेरे पिता को मार देते हैं, तो मैं दृढ़ रहूंगा;
 
अगर वे मेरे बेटों को मार देते हैं, तो मैं दृढ़ रहूंगा;
 
जब तक मैं अपनी मातृभूमि वापस नहीं जाता, तब तक मैं दृढ़ रहूंगा... दृढ़ रहूंगा.
 
अगर वे मेरा घर तबाह कर देते हैं, तो मैं दृढ़ रहूंगा;
 
अगर वे मेरे पौधे जला देते हैं, तो मैं दृढ़ रहूंगा;
 
जब तक मैं अपनी मातृभूमि वापस नहीं जाता, मैं दृढ़ रहूंगा... दृढ़ रहूंगा.

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