जब सीरियल बम धमाकों ने दिल्ली से छीन ली थी दीवाली की रौनक
दीवाली के ठीक पहले 29 अक्टूबर, 2005 को दिल्ली में हुए इन बम धमाकों के कुछ दिन पहले अमेरिका ने भारत की यात्रा कर रहे अपने नागरिकों को ऐसे किसी आतंकी हमले को लेकर चेतावनी जारी की थी

नई दिल्ली के रोहिणी इलाके स्थित एक स्कूल के पास 20 अक्टूबर को धमाका हुआ. हालांकि इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ मगर आसपास की गाड़ियों के शीशे और सड़कों पर लगे साइनबोर्ड क्षतिग्रस्त हो गए थे. दिल्ली पुलिस का कहना था कि उस स्कूल की एक दीवार पर बम लगा था जिससे यह धमाका हुआ.
देश की राजधानी दिल्ली में दीवाली से कुछ ही दिनों पहले हुए इस धमाके ने 2005 के दिल्ली धमाकों की यादें ताजा कर दीं जिसमें 80 लोग मारे गए थे और करीब 225 लोग घायल हुए थे. इंडिया टुडे मैगजीन के 16 नवंबर, 2005 के अंक में इस धमाके के बारे में कवर स्टोरी छपी थी और संदीप उन्नीथन, आशीष शर्मा और पूजा मेहरा ने इस घटना का विस्तृत ब्यौरा लिखा था.
दिन था 29 अक्टूबर, 2005. ठीक तीन दिनों के बाद 1 नवंबर को दिवाली थी. पूरी दिल्ली के बाजारों में त्योहारों की रौनक साफ़ देखी जा सकती थी. इसी बीच खबर आई कि दिल्ली के पहाड़गंज में बम विस्फोट हो गया है और पूरा इलाका आग की लपटों से घिर गया है. कुछ ही मिनटों में ऐसी ही खबर मशहूर सरोजिनी नगर मार्केट से आई जहां ऐसा ही धमाका हुआ था. इन दोनों जगहों के अलावा तीसरी घटना गोविंदपुरी इलाके से आई मगर डीटीसी बस ड्राइवर और कंडक्टर की सूझबूझ की वजह से वहां ज्यादा क्षति नहीं हुई.
दिल्ली के इन सीरियल बम धमाकों पर इंडिया टुडे मैगजीन की रिपोर्ट में लिखा था, "दिल्ली को तार-तार कर देने वाले एक के बाद एक हुए विस्फोटों, जिनमें 63 से ज्यादा लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए, 1993 में मुंबई बम विस्फोटों के बाद कश्मीर के बाहर यह देश में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला था. वर्ष 2001 में संसद पर हमले या 2000 में लाल किले पर हमले के विपरीत यह राज्य के किसी प्रतीक पर नहीं बल्कि देश के दिल पर सीधा आक्रमण था. आतंकियों का निशाना सत्ता की संस्थाएं नहीं, बल्कि आम लोग थे - सब तरफ बिखरे आम भारतीय." मृतकों और घायलों की संख्या बाद में बढ़कर क्रमशः 80 और 225 दर्ज की गई थी.
दुर्घटना इतनी वीभत्स थी कि रिपोर्ताज में इसका ब्यौरा पढ़कर भी रूह कांप जाती है. इंडिया टुडे मैगजीन की कवर स्टोरी में संदीप उन्नीथन ने लिखा, "मौत लोगों के सामने आई और कई जिंदगियां तबाह हो गईं. जैसे 14 वर्षीय राहुल कोचर की, जो सफदरजंग अस्पताल में चारों ओर अपने गुमशुदा माता-पिता के नाम बुदबुदाते घूमता रहा. या फिर 28 वर्षीया ऋचा पांडे के रिश्तेदारों की, जिन्होंने उसे उसके क्षत-विक्षत शव पर लगे कॉल सेंटर के पहचानपत्र के जरिए पहचाना. या फिर उन तीन परिवारों की जो एक आठ वर्षीय लड़की और तीन वर्षीय लड़के के शव पर अपना-अपना दावा जताते हुए उलझ रहे थे."
त्योहारों के मौसम में दिल्ली के बाजारों में सिर्फ दो तरह के लोगों - विक्रेताओं और खरीदारों के लिए जगह होती है और वहां खाली खड़े होने या घूमने के लिए खास वक्त नहीं होता. ऐसे में आश्चर्य नहीं कि दीवाली से तीन दिन पहले 29 अक्तूबर को पहाड़गंज और सरोजनी नगर में किसी ने भी लावारिस पड़े थैलों पर ध्यान नहीं दिया.
शाम करीब 5.25 बजे पहाड़गंज में पहला थैला फटा और सामने की दुकानें तबाह हो गईं. इस धमाके में 18 लोग तुरंत ही काल के गाल में समा गए. दूसरा थैला सरोजनी नगर में फटा, जिसकी वजह से एक चाट की दुकान पर दो एलपीजी सिलिंडर फट गए और आग भड़क उठी. इंडिया टुडे मैगजीन के लिए फ्रीलांस फोटोग्राफर आनंद मुर्गोड, जो भागते दुकानदारों की भीड़ को चीरते हुए उस जगह पहुंचे जहां आग भड़क उठी थी, ने कहा, "लोग शोलों में लिपटे हुए थे और चारों तरफ शव बिखरे हुए थे."
दिल्ली में खचाखच भरी, अपर्याप्त सार्वजनिक यातायात व्यवस्था की प्रतीक डीटीसी की बस तबाही और मौत का इससे भी बड़ा केंद्र बन सकती थी लेकिन उसके ड्राइवर और कंडक्टर ने अपनी जान की बाजी लगाकर एक बड़ा हादसा टाल दिया. डीटीसी बस में तीन लोगों ने बहादुरी की मिसाल पेश की - एक सतर्क यात्री ने लावारिस थैले को देख चेतावनी दी, ड्राइवर-कंडक्टर बस को कम भीड़ वाली जगह पर ले गए और बस को फौरन खाली करा दिया.
जब पहाड़गंज बाजार जल रहा था तभी डीटीसी की बस कालकाजी मंदिर के पास पहुंची. बेसबॉल टोपी पहने व्यक्ति अपना थैला बस में ही छोड़कर बस से उतर गया. उसके बगल में बैठे एक यात्री ने खतरे की चेतावनी दी. ड्राइवर कुलदीप सिंह और कंडक्टर बुद्ध प्रकाश बस को गोविंदपुरी की एक कम भीड़ वाली जगह पर ले गए, जहां उन्होंने करीब 70 यात्रियों को फौरन गाड़ी से बाहर निकाल दिया. जब उन्होंने सावधानीपूर्वक थैले को खोला तो उसमें तार दिखाई दिए. कुलदीप ने सबसे पहले वही किया जो उसे उस वक्त समझ आया-उसने फौरन उसे बाहर की ओर फेंक दिया. वह थैला हवा में ही फट गया जिससे पास में खड़े पांच लोग घायल हो गए.
इंडिया टुडे की 2005 की रिपोर्ट से पता चलता है कि जैसे ही विस्फोटों की खबर फैली, दिल्ली के दूसरे बाजार धीरे-धीरे खाली होने लगे. खून के धब्बे की तरह शोक और सदमा पसरने लगा. शहर के तीन अस्पतालों के इमरजेंसी कक्षों के बाहर लोगों का हुजूम जुट गया. लोग नम आंखों से अपने प्रियजनों की एक झलक पाने का इंतजार कर रहे थे. सरोजनी नगर में बमों और सिलेंडरों के फटने से लगी आग के कारण शव जल गए थे, जिसकी वजह से उनकी शिनाख्त करना लगभग नामुमकिन हो गया.
संदीप उन्नीथन अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि विस्फोट के दो बड़े स्थल अस्पतालों के करीब थे - पहाड़गंज से लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल नजदीक है और सरोजनी नगर से भी सफदरजंग और एम्स खासे दूर नहीं. अस्पतालों में सूचना मिलने की कमी पर लोगों में कुछ क्षोभ जरूर था लेकिन कई लोगों ने इतने कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करने के लिए अस्पताल के इमरजेंसी सेवाओं की तारीफ की.
इन धमाकों पर गृह मंत्रालय का कहना था कि दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच को विस्फोट से पहले खुफिया जानकारी मुहैया कराई गई थी लेकिन वह उस पर कार्रवाई नहीं कर सकी. संसद पर हमले के बाद से यह स्पेशल यूनिट दिल्ली में सबसे जबरदस्त विस्फोट, और वह भी एक प्रमुख त्योहार से ऐन पहले, को रोकने में नाकाम रही.
इंडिया टुडे की 2005 की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में विस्फोटों से एक पखवाड़े पहले ही अमेरिका ने हैदराबाद, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में हमले की आशंका के मद्देनजर अपने नागरिकों को चेता दिया था.
संदीप ने अपनी रिपोर्ट में बताया, "बड़े पैमाने पर चर्चा के लिए आतंकवादियों की नजर में राष्ट्रीय राजधानी सबसे माकूल लक्ष्य थी. उनका लक्ष्य बहुत आसान था - भीड़ भरे बाजारों में खरीदारी करने वाले निहत्थे मासूम लोग. अधिकतम क्षति पहुंचाने के लिए बमों को खास जगह पर रखा गया - पहाड़गंज में एक व्यस्त चौराहे के बीच में, सरोजनी नगर में खाना बनाने वाले गैस के सिलेंडरों के पास जिससे उसकी तीव्रता और बढ़ गई या गोविंदपुरी में यात्रियों से भरी एक बस में."
पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा ने एक वेबसाइट पर "इस्लामिक इंकलाब महाज" (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी फ्रंट) के नाम से इन घटनाओं की जिम्मेदारी ली. इसने पहले भी इसी नाम से कराची में इसी तरह के हमले किए थे. दिल्ली पुलिस ने बम धमाकों में शामिल संदिग्ध हमलावरों में से एक के तीन स्केच जारी किए.
शुरू में तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह को इन धमाकों का जिम्मेदार माना गया. अदालत ने 2008 में डार के खिलाफ आरोप तय किए, जो विस्फोटों का मास्टरमाइंड था. डार को राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने, साजिश रचने, हथियार इकट्ठा करने, हत्या और हत्या के प्रयास के आरोपों में दोषी ठहराया गया था. दिल्ली पुलिस ने डार के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया, जिसमें उसके कॉल डिटेल का उल्लेख किया गया था, जिससे कथित तौर पर साबित हुआ कि वह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के गुर्गों के संपर्क में था.
तारिक अहमद डार को 11 नवंबर 2005 को कश्मीर से उठाया गया था. डार के दोस्त ने 100 नंबर पर कॉल करके बताया कि उसका अपहरण कर लिया गया है. दिल्ली पुलिस का दावा था कि डार अक्टूबर में दिल्ली में था और कई जगहों पर जाकर टोह ली थी. दिल्ली पुलिस को अबू अल कामा और तारिक अहमद डार की सैटेलाइट फोन पर बातचीत मिली. लेकिन, डार ने कहा कि उसने कामा से वित्तीय सहायता ली थी.
केस चलता रहा, सुनवाई होती रही. मगर नतीजा? 2017 में एक फैसले में ट्रायल कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रीतेश सिंह ने तीनों आरोपियों - तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फाजिली और मोहम्मद रफीक शाह, सभी श्रीनगर के - को इन सभी आरोपों से बरी कर दिया. हालांकि, न्यायाधीश ने डार को यूएपीए के तहत दोषी ठहराया, हालांकि इस अधिनियम के तहत उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया था. लेकिन अदालत ने डार को भी बरी कर दिया, यह कहते हुए कि उनकी सजा मुकदमे के दौरान जेल में बिताए गए समय से मेल खाती है. तीनों आरोपी न्यायिक हिरासत में थे.
उन्हें बरी करते हुए जज ने कहा, "कुल मिलाकर नतीजा यह है कि मोहम्मद रफीक शाह और मोहम्मद हुसैन फाजिली को उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी किया जाता है."