जब बेनजीर भी अपने भुट्टो वंश की अकाल मौतों की फेहरिस्त में शामिल हो गईं
पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या उसी लियाकत बाग में हुई, जहां साल 1951 में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई थी

पाकिस्तान के रक्तरंजित राजनैतिक इतिहास को देखें तो कई राजनेताओं ने अपनी जान की कुर्बानी दी है, या देनी पड़ी है. लेकिन बेनजीर भुट्टो का मामला अनूठा लगता है. साल 1988 में किसी इस्लामी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने से पहले अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी चढ़ते देखना, बाद के वर्षों में भाई को अपने हाथों से मिट्टी देना, बावजूद इसके पाकिस्तान में जम्हूरियत कैसे बहाल हो, इसके लिए हमेशा कोशिश में रहना. और आखिर में इसी कोशिश के तहत अपने प्राण गंवा देना. देखा जाए तो बेनजीर की इस कहानी में कई रंग हैं.
लेकिन इस कहानी का अंत 27 दिसंबर, 2007 की उस धुंधलकी शाम को हो गया, जब एक 15 साल के आत्मघाती लड़के ने बेनजीर को गोलियों से छलनी करने के बाद बम से उड़ा दिया. कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ ने सैन्य वर्दी उतार कर नागरिक राष्ट्रपति का चोला पहना था. 6 सालों के बाद देश में चुनाव होने जा रहे थे. एक तरफ पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नवाज शरीफ थे, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की बेनजीर भुट्टो, और केंद्र में थी पाकिस्तान की खूनी सियासत. तो क्या हुआ था 27 दिसंबर, 2007 की उस धुंधलकी शाम को, आइए जानते हैं.
27 दिसंबर, 2007 की वो शाम
शाम के पांच बज रहे होंगे. बेनजीर रावलपिंडी के लियाकत बाग में अपना भाषण खत्म कर बुलेटप्रूफ सफेद टोयोटा लैंडक्रूजर की तरफ बढ़ीं. उस दिन वे पारंपरिक हरे रंग की जगह बैंगनी रंग की पोशाक में थीं, और फैशनेबल चश्मा लगाए थीं. शरीर पर फूल लदे हुए थे. मुस्कराती हुई बेनजीर बख्तरबंद गाड़ी में सवार हुईं. भाषण सुनने के बाद जोश से भरी हुई करीब 50 हजार लोगों की भीड़ ने 'वजीरे-आजम बेनजीर भुट्टो' का नारा लगाते हुए गाड़ी को घेर लिया, सो ड्राइवर को गाड़ी रोकनी पड़ी.
बेनजीर भीड़ की ओर हाथ हिलाने के लिए गाड़ी की छत पर आईं, लेकिन धांय, धांय, धांय...कुल पांच फायर हुए. गोली बेनजीर की छाती और गले में लगी और वे वहीं गिर गईं. इससे पहले कि उनके सुरक्षाकर्मी संभलते, एक जोर का धमाका हुआ. कुछ समय के लिए वहां मातम पसर गया. करीब 10 मिनट तक क्षतिग्रस्त गाड़ी के पास कोई नहीं गया, क्योंकि लोग इस डर से वहां से भाग गए थे कि दूसरा धमाका भी हो सकता है. इसके बाद बेनजीर को पास के कम सुविधाओं वाले रावलपिंडी अस्पताल ले जाया गया, जहां शाम 6 बजकर 16 मिनट पर पीपीपी के एक पदाधिकारी ने उनकी मौत की पुष्टि करते हुए कहा, "मोहतरमा को शहीद कर दिया गया है."
15 साल के आत्मघाती बिलाल ने मारी थी गोली
बेनजीर की हत्या एक 15 साल के लड़के बिलाल ने की थी, जो एक आत्मघाती हमलावर था. पूरी तैयारी के साथ पाकिस्तानी तालिबान की शह पर इस हत्या को अंजाम दिया गया था. इससे पहले 18 अक्टूबर को भी बेनजीर पर जानलेवा हमला किया गया था, जिसमें भुट्टो तो बच निकलीं, लेकिन 150 से ज्यादा लोग मारे गए थे. लेकिन 27 दिसंबर को हुए हमले में भुट्टो सहित 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. पर भुट्टो को निशाना क्यों बनाया जा रहा था?
क्या कहानी पहले से थी शुरू?
साल 1988 में जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं, तो केवल मुल्क में ही नहीं बल्कि इस्लामी देशों में यह पहली बार था कि कोई महिला इस मुकाम तक पहुंची हो. लेकिन कट्टरपंथियों में यह बात नागवार गुजर रही थी कि एक महिला कैसे पुरुषों का स्थान ले सकती है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ीं बेनजीर अमेरिका या पश्चिमी देशों के साथ अच्छे संबंधों की पक्षधर थीं. उन्होंने राजीव गांधी से शांति वार्ता भी की थी. ये सारी बातें पाकिस्तान की उस राजनैतिक परंपरा के विरुद्ध थीं, जिन्हें वहां के आकाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है.
साल 1990 में बेनजीर सत्ता से बाहर हो गईं. 1993 में दोबारा सत्ता में लौटीं, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप में 1996 में सत्ता से बर्खास्त कर दी गईं. 1998 में खुद से देशनिकाला देकर दुबई चली गईं, और दुबई, लंदन रहने के बाद साल 2007 में वतन लौटीं. इस समय तक जनरल परवेज मुशर्रफ ने अपनी सैन्य वर्दी खूंटी पर टांग कर नागरिक राष्ट्रपति का चोगा पहन लिया था. इमरजेंसी हटा ली गई थी, और जनवरी, 2008 में होने वाले चुनाव की तैयारी शुरू कर दी गई थी. इसी सिलसिले में ही 27 दिसंबर को उनकी लियाकत बाग में रैली थी.
भुट्टो वंश के बदकिस्मत सदस्यों की अस्वाभाविक मौतें
बेनजीर भुट्टो के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के पहले लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रधानमंत्री थे. लेकिन उनका भी राजनीतिक करियर समय से पहले ही खत्म हो गया. तत्कालीन जनरल जिया-उल हक के शासनकाल में साल 1979 में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया, जिसे बाद में 'न्यायिक हत्या' करार दिया गया. 1985 में बेनजीर के एक भाई शाहनवाज को रहस्यमय तरीके से जहर दिया गया. साल 1996 में एक और भाई मुर्तजा भुट्टो को एक विवादास्पद पुलिस एनकाउंटर में गोली से उड़ा दिया गया. उस समय प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ही थीं.
निजी सदमों और सत्ता में रहते हुए बार-बार भ्रष्टाचार की अफवाहों के बीच बेनजीर एक अथक नेता थीं. उन्हें इस बात में कोई शंका नहीं थी कि पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र अपरिहार्य है.