जब वोटिंग की आयु सीमा 21 से घटाकर 18 साल की गई और युवा राजनीति के केंद्र में आए
साल 1988 में 61वें संविधान संशोधन के जरिए वोटिंग के लिए आयु सीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई थी

भारतीय संविधान में समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं. 1950 में लागू होने के अगले ही साल इसमें पहले संशोधन की जरूरत पड़ गई थी. 1976 में जब 42वां संविधान संशोधन हुआ, तो संविधान में व्यापक तौर पर बदलाव हुए. 1988 तक आते-आते इसमें 60 संशोधन हो चुके थे. देश में इस समय राजीव गांधी की सरकार थी. युवाओं को फोकस में लाया जा रहा था.
इस समय तक यह मांग उठनी शुरू हो गई थी कि लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं के लिए मतदाताओं की उम्र सीमा 21 से घटाकर 18 कर दी जाए. इसी सिलसिले में 13 दिसंबर, 1988 को तत्कालीन जल शक्ति मंत्री बी. शंकरानंद ने 62वां संशोधन विधेयक-1988 लोकसभा में पेश किया. इस विधेयक के तहत संविधान के अनुच्छेद 326 में बदलाव किया जाना था.
इस संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत के अलावा आधे राज्यों की सहमति भी आवश्यक थी.
अनुच्छेद-326 में बदलाव क्यों?
संविधान का भाग 15 (अनु. 324 - 329) चुनावों से संबंधित है. इसी के अंतर्गत अनुच्छेद-326 है, जिसमें कहा गया है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे. 1988 से पहले तक व्यस्क मताधिकार के लिए न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष निर्धारित थी. ऐसे में इसमें बदलाव करने के लिए अनु.- 326 में बदलाव करना जरूरी था.
61वां संविधान संशोधन- 1988
13 दिसंबर, 1988 को तब केंद्रीय जल शक्ति मंत्री रहे बी. शंकरानंद ने लोकसभा में एक विधेयक पेश किया. इसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 को संशोधित करने के लिए 62वें संविधान संशोधन विधेयक के तौर पर पेश किया गया था. 14 और 15 दिसंबर को लोकसभा में इस पर चर्चा हुई. 15 दिसंबर को एक सुधार के साथ (क्लॉज 1 में 62 की जगह 61 कर दिया गया) इसे लोकसभा से पास कर दिया गया.
वहीं, राज्यसभा में इस विधेयक पर 16, 19 और 20 दिसंबर को चर्चा हुई, और इसे 20 दिसंबर को राज्यसभा से भी पास कर दिया गया. इस संशोधन के लिए आधे से ज्यादा राज्यों की सहमति भी जरूरी थी, जो बड़ी आसानी से प्राप्त हो गई. इस बिल को कानून बनने के लिए अब राष्ट्रपति की मुहर की जरूरत थी. 28 मार्च, 1989 को राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने भी इस पर सहमति दे दी. अब यह विधेयक कानून बन चुका था, जिसका अर्थ था कि अब 18 वर्ष के लोग भी वोटिंग में भाग ले सकते थे.
श्रेय लेने की होड़
लेकिन मतदान की आयु घटाने का विधेयक पेश करते समय ही बी. शंकरानंद ने इसका श्रेय लेने के इरादे जाहिर कर दिए थे. विपक्ष को भड़काने के मकसद से उन्होंने जानबूझकर कहा कि मतदान की आयु इसलिए घटाई जा रही है, क्योंकि यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई ने इसकी मांग की. यही मुद्दा सारे झगड़े की जड़ बन गया क्योंकि दूसरे दल भी इसका श्रेय ले रहे थे. पश्चिम बंगाल, केरल और आंध्र प्रदेश में स्थानीय चुनावों के लिए पहले ही आयु सीमा घटाई जा चुकी थी. और तो और, जब पश्चिम बंगाल सरकार ने आयु कम करने फैसला लिया तो उस समय केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने इसका विरोध भी किया.
यूथ कांग्रेस ने भी काफी समय तक इसे नजरअंदाज किया था लेकिन जब विधेयक पास हो गया, तो राजीव गांधी को सारा श्रेय देने के लिए संगठन ने दिल्ली में एक रैली भी निकाली. विधेयक पास होने से अचानक सारे दल युवाओं की तरफ आकर्षित हो गए थे. राजीव गांधी एनएसयूआई के सम्मेलन में जा रहे थे, तो वी.पी. सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित कर रहे थे. भाजपा ने भी युवा विधायक गोपीनाथ मुंडे को महाराष्ट्र इकाई का अध्यक्ष बनाया था. वाम पार्टियां भी इसमें पीछे नहीं थी. लेकिन ये पार्टियां युवकों को यूं ही नहीं लुभाने का प्रयास कर रही थीं. दरअसल, यह युवा शक्ति तब राजनैतिक शक्ति में बदल चुकी थी. आइए समझते हैं कैसे?
युवा बने एक बड़ा वोट बैंक
1980 में जहां मतदाताओं की संख्या करीब 35 करोड़ थी, वहीं ये 1984 में बढ़कर 37 करोड़ से ज्यादा हो गई थी. अगले चुनाव तक बढ़कर इसके करीब 40 करोड़ होने का अनुमान था, लेकिन आयु सीमा घटा देने से यह संख्या 44 करोड़ से भी ज्यादा हो जाने वाली थी. 1980 में जब 525 सीटों के लिए लोकसभा चुनाव हुआ तो 177 सीटों पर फैसला 40 हजार से भी कम मतों से हुआ. इनमें से 90 सीटों पर तो 20 हजार से भी कम मतों से फैसला हुआ. ऐसा ही कुछ 1984 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला, जब कुल 513 लोकसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में 76 सीटों पर फैसला 20 हजार से कम मतों से हुआ.
वहीं, आयु सीमा घटा देने से देश की 545 लोकसभा सीटों में से हर सीट पर करीब 86,000 नए मतदाता अब वोट डालने में सक्षम हो गए थे. यानी ये नए मतदाता अब किसी भी पार्टी का वारा-न्यारा कर सकते थे. राजीव गांधी को इन नए मतदाताओं से काफी उम्मीदें थी. 15 दिसंबर को लोकसभा से बिल के पास होने के बाद उन्होंने कहा था, "यह देश के युवाओं में हमारे पूर्ण विश्वास को दिखाता है." कांग्रेस ने तब केवल उत्तर प्रदेश में जिला परिषद, ब्लाक इकाइयों समेत अन्य पदों के लिए इंडियन यूथ कांग्रेस को 600 सीटें दी थीं.
लेकिन राजीव गांधी के ये तमाम प्रयास उन्हें आगामी आम चुनावों में जीत दिलाने में नाकाफी साबित हुए. फिर भी कानून बनने के बाद युवा वर्ग अब राजनीतिक पार्टियों की प्राथमिकताओं में शामिल हो गया था. तब यह उम्मीद की गई थी कि युवा वर्ग जोर-शोर से चुनावों में भाग लेकर देश के निर्माण में हिस्सेदार बनेगा. लेकिन वर्तमान में देखें तो स्थिति थोड़ी चिंताजनक नजर आती है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में हर साल करीब 2 करोड़ युवा 18वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं. लेकिन मतदाता सूची में उनकी प्रविष्टि की दर काफी कम है. 2019 के लोकसभा चुनावों में करीब 10 करोड़ युवा मतदाताओं के जुड़ने की संभावना थी, लेकिन करीब 4 करोड़ युवाओं ने ही मतदान के लिए अपना नाम जुड़वाया. सरकार भी समय-समय पर युवाओं को मतदान की खातिर जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम करवाती रहती है. 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' इसी उद्देश्य से शुरू किया गया प्रोग्राम था, जिसे हर साल 25 जनवरी को मनाया जाता है.