बेस्ट यूनिवर्सिटीः कामयाबी की दौड़ में आगे

समाज की बदलती जरूरतों के मुताबिक अपने को नए स्वरूप और नए पदानुक्रम में तेजी से ढालने में कामयाब यूनिवर्सिटी पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता में भी सबसे अगली कतार में मौजूद.

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देश की बेस्ट यूनिवर्सिटी

आलेख

बाकी दुनिया की तरह पिछला एक साल भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए बेहद मुश्किलजदा और खास रहा. कोविड-19 महामारी ने न केवल शैक्षणिक कैलेंडर चौपट कर दिया, बल्कि छात्रों की पढ़ाई में भी जबरदस्त फासला पैदा किया. टीमलीज के 'कोविड-19 लर्निंग लॉस इन हायर एजुकेशन’ सर्वे ने छात्रों की पढ़ाई-लिखाई का 40 से 60 फीसद के बीच नुक्सान होने का अनुमान लगाया है. यह जी7 देशों में पढ़ाई-लिखाई के अनुमानित नुक्सान से दोगुना है. सर्वे का अनुमान है कि इस फासले को भरने में तीन साल लग सकते हैं.

हर संकट अलबत्ता अवसर की एक खिड़की भी खोलता है. महामारी से पैदा उथल-पुथल ने सरकार, नीति निर्माताओं और अकादमिक क्षेत्र के अगुआओं को शिक्षा देने के नए तरीकों और ढांचों पर विचार करने के लिए बाध्य किया. बुनियादी ढांचे की बहुत-सी अड़चनों के बावजूद वर्चुअल पढ़ाई-लिखाई अचानक आम ढर्रा बन गई.

नंबर 1 यूनिवर्सिटी देश की

छात्र और शिक्षक कक्षा की पढ़ाई से लेकर शोध कार्य तक कम या ज्यादा कामयाबी के साथ डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर करने लगे. जुलाई 2020 में नई शिक्षा नीति (एनईपी) की शुरुआत ने उच्च शिक्षा में और ज्यादा सुधारों के लिए उत्प्रेरक का काम किया. यह नीति देश के विश्वविद्यालयों की बहु-विषयी शिक्षा और शोध केंद्रों के रूप में परिकल्पना करती है जिनका उद्देश्य देश की समस्याओं के सार्थक और स्थानीय समाधान देना हो.

देश के शीर्ष विश्वविद्यालय एनईपी की आकांक्षाओं से मेल खाने वाले लक्ष्यों के अनुरूप माहौल बनाने में तेजी से आगे आए हैं. दिल्ली का जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) कैंपस से स्टार्ट-अप कंपनियां लॉन्च करके अपने शिक्षकों को नवाचारी-उद्यमी बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, वहीं आइआइटी दिल्ली इंजीनियरिंग की पढ़ाई को समाज विज्ञान से जोड़ रहा है.

नेशनल लॉ स्कूल यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया बैंगलोर में जोर छात्रों को वर्चुअल कोर्ट रूम के लिए तैयार करने पर है, क्योंकि वर्चुअल कोर्टरूम महामारी के बाद की दुनिया में भी आम ढर्रा बन सकते हैं. यह हर क्षेत्र की बढ़ती जरूरत बनने लगा है.

कामयाबी की दौड़ में आगे

अलबत्ता, जैसा कि जेएनयू के वाइस-चांसलर एम. जगदीश कुमार कहते हैं, ‘‘देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों में तो महज थोड़े-से छात्र ही पढ़ते हैं, हमारे करीब 60 फीसद विश्वविद्यालय ग्रामीण इलाकों में हैं. ऐसे में उच्च शिक्षा के छात्र देश भर में फैले हुए हैं. राष्ट्र की तरक्की के लिए देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता में एकरूपता लाना बेहद जरूरी है.’’

इसका एक तरीका यह है कि उनके भीतर प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ावा दिया जाए. इंडिया टुडे ग्रुप का बेस्ट यूनिवर्सिटी सर्वे देश के उच्च शिक्षा केंद्रों के बीच स्वस्थ अकादमिक प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा देने और इस तरह उन्हें ज्यादा उत्कृष्टता के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करता है.

पढ़ाई और अपने करियर को सही दिशा देने के इच्छुक छात्र के लिए भी सही विश्वविद्यालय की तलाश बेहद अहम है. देश की अव्वल रिसर्च एजेंसी मार्केटिंग ऐंड डेवलपमेंट रिसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) से कराए जा रहे सालाना सर्वे अपने मजबूत तौर-तरीकों की वजह से भारतीय विश्वविद्यालयों के अकादमिक और बुनियादी ढांचे की स्थिति के बारे में निर्णायक बनकर उभरा है.

कामयाबी की दौड़ में आगे

इसकी अहमियत हर साल बढ़ती जा रही है, क्योंकि इसे लगातार नई जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाता है. संस्थानों को चार धाराओं—सामान्य, चिकित्सा, तकनीकी और कानून—में रैंक दी गई हैं. निजी विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के प्रसार में उत्तरोत्तर ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने लगे हैं, सर्वे में उन्हें सामान्य धारा के तहत अलग से रैंक दी गई. रैकिंग की विश्वसनीयता का अंदाजा इसमें भाग लेने वाले विश्वविद्यालयों की लगातर बढ़ती संख्या से लगाया जा सकता है, जो 2019 में 120 से बढ़कर 2020 में 133 और इस साल 150 हो गए. 

इस साल की रैकिंग से सबसे उत्साहजनक और मार्के की बात यह पता चली कि भारतीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता किसी खास इलाके तक सीमित नहीं है. मसलन, सामान्य श्रेणी के 10 शीर्ष सरकारी विश्वविद्यालयों में से चार उत्तर भारत में हैं, तो निजी क्षेत्र के शीर्ष 10 विश्वविद्यालयों की फेहरिस्त में दक्षिण भारत का दबदबा है. इसी तरह मेडिकल, तकनीकी और कानून के शीर्ष 10 विश्वविद्यालय विभिन्न इलाकों में समान रूप से बंटे हैं.

चिंता की बात अलबत्ता यह है कि सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता में खासा फासला है. सरकारी श्रेणी के शीर्ष 10 सामान्य विश्वविद्यालयों ने 2,000 में से 1,885 से 1,600 के बीच अंक हासिल किए. वहीं निजी विश्वविद्यालयों ने 1,618 से 1,407 के बीच अंक पाए. शीर्ष सरकारी मेडिकल कॉलेजों ने 1,954 अंक प्राप्त किए, तो शीर्ष निजी मेडिकल कॉलेजों ने 1,446 अंक हासिल किए. सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के बीच यह फर्क तकनीकी धारा में भी दिखाई देता है.

इसमें दो राय नहीं कि देश में उच्च शिक्षा में सकल दाखिला दर में सुधार की भारी आवश्यकता है और यही लक्ष्य निश्चित रूप से सर्वोपरि है. सरकार और नई शिक्षा नीति का भी यही सबसे अहम लक्ष्य है. लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि सरकारी संस्थानों और विश्वविद्यालयों का बोझ कम करने के लिए निजी विश्वविद्यालयों को तेजी से बढ़ती छात्र आबादी की जरूरतें पूरी करनी होंगी.

कामयाबी की दौड़ में आगे

लिहाजा, देश के हित में यही है कि सभी संबंधित लोगों और महकमों को निजी क्षेत्र में उच्च शिक्षा को न केवल सस्ता बनाने बल्कि उसकी गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए भी संगठित प्रयास करने होंगे. इंडिया टुडे ग्रुप की विश्वविद्यालयों की रैंकिंग की सीढ़ी पर ऊपर चढ़ने की भी यही कुंजी है

ऐसे हुई विश्वविद्यालयों की रैंकिंग  

उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय महत्व के 135 संस्थानों सहित 1,000 से अधिक विश्वविद्यालय हैं. इनमें देश की बेस्ट यूनिवर्सिटी के चयन में इंडिया टुडे ग्रुप की सालाना रैंकिंग देश के शैक्षणिक कैलेंडर में विशेष अहमियत रखती है. समृद्ध जानकारी और व्यापक डेटा के आधार पर की जाने वाली यह रैंकिंग न केवल विद्यार्थियों के लिए अपने करियर से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेना आसान बनाती है, बल्कि नियोक्ताओं, अभिभावकों, पूर्व छात्रों, नीति निर्माताओं और बहुत से अन्य संबंधित लोगों और महकमों को विश्वविद्यालय की शिक्षा का विस्तृत हालचाल भी प्रदान करती है.

इंडिया टुडे के नॉलेज पार्टनर एमडीआरए के सर्वेक्षण के तरीकों ने कई मील के पत्थर गाड़े हैं. वस्तुनिष्ठ रैंकिंग के दौरान, विश्वविद्यालयों की सबसे व्यापक और संतुलित तुलना प्रदान करने के लिए एमडीआरए ने बहुत सावधानी से 120 से अधिक मापदंड तय किए हैं. कामकाज के संकेतकों को पांच मानदंडों में शामिल किया गया है.

जैसे, 'प्रतिष्ठा और संचालन’, 'अकादमिक और शोध उत्कृष्टता’, ‘बुनियादी ढांचा और रहने का अनुभव’, 'व्यक्तित्व और नेतृत्व विकास’ तथा 'करियर प्रगति और प्लेसमेंट.’ इसके अलावा, कोविड महामारी के लिए विश्वविद्यालयों की तैयारियों का भी आकलन किया गया. रैंकिंग, विश्वविद्यालयों से उपलब्ध कराए गए चालू वर्ष के आंकड़ों के आधार पर की गई. 
इस पूरी प्रक्रिया के चरण इस प्रकार हैं:

डेटाबेस तैयार करना: 750 से अधिक ऐसे विश्वविद्यालयों की सूची तैयार की गई थी जो मापदंडों को पूरा करते थे. मूल्यांकन के लिए चार धाराओं—सामान्य, चिकित्सा, तकनीकी और लॉ के तहत स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों पर विचार किया गया. रैंकिंग के लिए केवल ऐसे विश्वविद्यालयों पर विचार किया गया, जो पूर्णकालिक, इन-क्लास कोर्स की पेशकश करते हैं और 2020 के अंत तक जहां से कम से कम तीन बैच पास होकर निकल चुके हैं.

विशेषज्ञ राय के साथ वेटेज का निर्धारण: अपने क्षेत्रों में समृद्ध अनुभव रखने वाले विशेषज्ञों से संबंधित श्रेणियों के विश्वविद्यालयों के लिए प्रासंगिक मानदंडों और उप-मानदंडों को तैयार करने के लिए विचार-विमर्श किया गया था. संकेतकों का निर्धारण बहुत सावधानी से किया गया था, और उनके सापेक्ष भार तय किए गए. 

वस्तुनिष्ठ सर्वेक्षण: रैंकिंग के लिए योग्य पाए गए विश्वविद्यालयों को एक व्यापक वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली भेजी गई. वस्तुनिष्ठ प्रश्नावली को एमडीआरए और इंडिया टुडे की वेबसाइटों पर भी अपलोड किया गया था. विश्वविद्यालय इस सर्वे में समय रहते भागीदारी दे सकें, इसके बारे में याद दिलाने के लिए कई ई-मेल भेजे गए और टेलीफोन कॉल भी किए गए. 150 से अधिक विश्वविद्यालयों ने निर्धारित समय सीमा के भीतर अपना डेटा, उनकी पुष्टि करने वाले सहायक दस्तावेजों के साथ प्रदान किया. 

वस्तुनिष्ठ आंकड़े की जांच: विश्वविद्यालयों से वस्तुनिष्ठ आंकड़े प्राप्त होने के बाद, सहायक दस्तावेजों की विस्तृत जांच की गई. इन आंकड़ों का हर संभव माध्यम से सत्यापन किया गया. प्रत्येक विश्वविद्यालय को पांच संकेतकों के तहत वस्तुनिष्ठ अंक दिया गया. 

अवधारणात्मक सर्वेक्षण: 30 शहरों में 369 विद्वानों और जानकारों (34 वीसी, 87 डायरेक्ट/ डीन/ रजिस्ट्रार,  248 वरिष्ठ संकाय (प्रोफेसरों और विभागाध्यक्षों) के बीच एक अवधारणात्मक सर्वेक्षण किया गया. प्रमुख शहर इस प्रकार हैं:
 उत्तर: दिल्ली-एनसीआर, लखनऊ, जयपुर, चंडीगढ़
 पश्चिम: मुंबई, पुणे, अहमदाबाद और इंदौर 
 दक्षिण: चेन्नै, बेंगलूरू, हैदराबाद और कोयंबत्तूर 
 पूर्व: कोलकाता, भुवनेश्वर, गुवाहाटी और पटना 

विद्वानों से उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्रों में विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय और जोनल रैंकिंग ली गई और उन्हें क्रमश: 75 प्रतिशत और 25 प्रतिशत वेटेज दिया गया. उन्होंने विश्वविद्यालयों को पांच प्रमुख मापदंडों में  हरेक के लिए 10-पॉइंट रेटिंग स्केल पर भी आकलन किया. 

अंतिम स्कोर: वस्तुनिष्ठ स्कोर की गणना करते समय तय किया गया कि रेटिंग केवल समग्र आंकड़े के आधार पर न हो और इसीलिए डेटा को नॉर्मलाइज किया गया. वस्तुनिष्ठ और अवधारणात्मक सर्वेक्षणों से प्राप्त कुल अंकों को 50:50 के अनुपात में जोड़कर संयुक्त प्राप्तांक निकाला गया. 

शोधकर्ताओं, सांख्यिकीविदों, विश्लेषकों और सर्वेक्षणकर्ताओं की एक बड़ी टीम ने दिसंबर 2020 से जुलाई 2021 तक इस पर काम किया. एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अभिषेक अग्रवाल के नेतृत्व में एमडीआरए कोर टीम में प्रोजेक्ट डायरेक्टर अबनीश झा, सीनियर रिसर्च एग्जीक्यूटिव राजन चौहान, एसिस्टेंट रिसर्च एग्जीक्यूटिव दक्षिता ड्रोलिया और एग्जीक्यूटिव-ईडीपी मनवीर सिंह शामिल थे.

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