बेसब्र बागी

पायलट के विपरीत, गहलोत ने गांधी परिवार को प्रभावित किया और उसके तथा पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा निर्विवाद है

आसान नहीं राह गहलोत सरकार गिराने की कोशिश के बाद पार्टी में भरोसे के संकट से जूझ रहे पायलट
आसान नहीं राह गहलोत सरकार गिराने की कोशिश के बाद पार्टी में भरोसे के संकट से जूझ रहे पायलट

सचिन पायलट ने 10 अगस्त को समझौता कर लिया. उन्होंने भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुआई वाली अपनी ही पार्टी की राजस्थान सरकार को संकट में डाल दिया था. इस पूरे सियासी ड्रामे में उनके हाथ अगर कुछ आया तो वह था पार्टी में सम्मानजनक वापसी का आश्वासन और राज्य सरकार को लेकर उनकी शिकायत का स्वतंत्र मूल्यांकन. वैसे पायलट के एक बेहद करीबी बागी नेता कहते हैं, ''कोई आश्वासन नहीं मिला. ऐसी कोई बात नहीं हुई थी.'' पर बागियों ने तीन साल से अधिक समय से राज्य के प्रभारी रहे अविनाश पांडे को राजस्थान के दायित्व से मुक्त करा दिया. पांडे अब बिहार चुनावों के लिए पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष हैं तथा उनके, गहलोत और प्रदेश कांग्रेस समिति (पीसीसी) प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा के बीच अहमद पटेल, के.सी. वेणुगोपाल और अजय माकन की तीन सदस्यीय समिति एक सेतु बन गई है.


पीसीसी प्रमुख और उपमुख्यमंत्री के पद से पायलट को बर्खास्त करने के कारण अब गुर्जरों की नाराजगी से बचने के लिए हाइकमान उनसे अच्छा बर्ताव कर रही है. मध्य प्रदेश में उपचुनाव होने हैं और अगर गुर्जर वोटर नाराज रहे तो पार्टी को दो दर्जन सीटों पर नुक्सान हो सकता है. बिहार चुनावों को ध्यान में रखकर किनारे लगाए जा चुके बागियों को भी शांत रखने की कोशिश हो रही है. पार्टी की बिगड़ी छवि को निखारने के लिए प्रदेश के नव नियुक्त कांग्रेस प्रभारी माकन 30 अगस्त को राज्य के दौरे पर आए थे, फिर भी पार्टी पायलट के पुनर्वास की कोई जल्दी नहीं दिखा रही है.


माकन बेशक गहलोत के प्रदर्शन का आकलन कर रहे हैं, पर उन्होंने पायलट के प्रति उस विश्वास को बहाल करने के लिए कुछ खास नहीं किया जो कभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं, मंत्रियों और बागियों समेत अधिकतर विधायकों में होता था. पायलट के साथ खड़े हुए बागियों में से आधे ने समझ लिया कि पायलट के साथ रहने में उनका नुक्सान ही है.


घटनाओं के सिलसिले से पता चलता है कि पायलट के लिए आगे का रास्ता कठिन है. वे बार-बार उन लोगों को असहज कर देते हैं जो गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार का समर्थन कर रहे थे. 28 अगस्त को, जेईई/एनईईटी परीक्षाओं के विरोध में पीसीसी कार्यालय के पास प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए थे, तभी कुछ समर्थकों के साथ पायलट बिन बुलाए वहां पहुंच गए. मुख्य सचेतक महेश जोशी पायलट के आगमन की सूचना मिलने पर मंच छोड़कर चले गए, वहीं पीसीसी प्रमुख ने वहां आना रद्द कर दिया. कार्यक्रम के आयोजक परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने औपचारिकतावश पायलट को बोलने के लिए आमंत्रित तो किया पर पायलट से बमुश्किल ही कुछ बात की. मंत्री पिछले छह वर्षों में पायलट के सबसे करीबी सहयोगी हुआ करते थे, पर जब उन्होंने बगावत में शामिल होने से इनकार कर दिया, तो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक जमीन के सौदे का एक दशक पुराना मामला खोला और उनसे दस घंटे तक पूछताछ की.

बहुत से लोगों का मानना है कि पार्टी के लिए राज्य में फंड का इंतजाम करने वाले लोगों, जिसकी बिहार चुनाव में सख्त जरूरत है, के यहां आयकर और ईडी के छापों में पायलट का हाथ था. यह देखते हुए कि गांधी परिवार के लिए भी पायलट को माफ करना मुश्किल होगा, पायलट विरोधियों को कुरेदने और चर्चा में बने रहने से बाज नहीं आ रहे. 20 अगस्त को राजीव गांधी की जयंती समारोह में भी ऐसा ही हुआ, उन्होंने पीसीसी में आने का वही समय चुना जब गहलोत को वहां आना था. खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर गहलोत नहीं आए.


पायलट को अब भी लगता है कि अगर माकन और कमेटी उनके सुझावों को लें तथा गहलोत सरकार के खिलाफ नकारात्मक फीडबैक देते हुए पायलट को ही 2023 में सत्ता वापसी के लिए बेहतर विकल्प बताएं, तो वे अब भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं. पर गहलोत ने अपनी सरकार बचाकर गांधी परिवार को प्रभावित किया है. साथ ही पार्टी और परिवार के प्रति उनकी निष्ठा निर्विवाद है. पायलट इसमें उनकी बराबरी कभी नहीं कर सकते.


पायलट खुद को चर्चा में रखने की कोशिशें कम करते हुए कुछ वर्षों तक धैर्यपूर्वक काम करें तो वे वापसी कर सकते हैं. पर इसकी उम्मीद कम है. इसलिए, अगर कमेटी गहलोत सरकार को लेकर पायलट की शिकायत गलत पाती है, तो गांधी परिवार को चाहिए कि वह पायलट को केंद्रीय राजनीति में लेकर जाए और कुछ राज्यों का दायित्व सौंप दे जैसा कि माकन के साथ किया गया. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी बिहार और मध्य प्रदेश उपचुनाव के बाद उनकी भूमिका पर पुनर्विचार करेगी. लेकिन क्या वे तब तक इंतजार कर सकेंगे?

Read more!