एक अकेले के रसूख की लड़ाई

मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस को उपचुनाव में सभी 27 सीटें जीतनी होंगी, भाजपा का काम नौ सीटें जीतने से चल जाएगा

दांव पर क्या कुछ राजीव गांधी की 76वीं पुण्यतिथि पर 20 अगस्त को भोपाल में उनको श्रद्धांजलि के एक कार्यक्रम में कमलनाथ
दांव पर क्या कुछ राजीव गांधी की 76वीं पुण्यतिथि पर 20 अगस्त को भोपाल में उनको श्रद्धांजलि के एक कार्यक्रम में कमलनाथ

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में श्यामला हिल्स में कमलनाथ के निवास-सह-कार्यालय में प्रवेश करते ही एक बात जो आपको चौंका देती है, वह यह कि हाल ही में सत्ता गंवाने वाले राजनेता के घर में सन्नाटा नहीं पसरा है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री से मिलने के लिए कांग्रेस नेता, सहयोगी और सलाहकारों का दिनभर आना-जाना लगा रहता है. हालांकि चुनाव आयोग ने तारीखों की अभी घोषणा नहीं की है, लेकिन राज्य के 27 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनाव को लेकर खासी गहमागहमी दिखती है. यह चुनाव 74 वर्षीय कमलनाथ के लिए एक बड़ी राजनैतिक परीक्षा साबित होगी क्योंकि इससे तय होगा कि वे सत्ता में लौटेंगे या फिर इस विधानसभा का शेष कार्यकाल भी विपक्ष के नेता के रूप में ही बिताएंगे जो पद उन्होंने हाल ही में ग्रहण किया था.

राज्य में भाजपा सरकार बनाने के लिए मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पार्टी छोड़ने वाले 22 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से उपचुनाव जरूरी हो गए हैं. तीन कांग्रेस विधायकों ने बाद में इस्तीफा दे दिया जबकि दो सीटें विधायकों के निधन से खाली हुई हैं.

अपने दम पर सत्ता में लौटने के लिए कांग्रेस को सभी 27 सीटें जीतनी होंगी. उसके पास अब 230 सदस्यीय विधानसभा में 89 विधायक हैं. भाजपा के 107 विधायक हैं और उसे साधारण बहुमत पाने के लिए सिर्फ नौ सीटों की आवश्यकता है.

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान, कांग्रेस का चुनावी अभियान कमलनाथ और सिंधिया ने संयुक्त रूप से चलाया था, दिग्गज दिग्विजय सिंह ने पर्दे के पीछे से रणनीतियां बनाने और असंतुष्टों को मनाने की जिम्मेदारी उठाई थी. आज कमलनाथ और सिंधिया एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो चुके हैं, सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री और कभी उनके भरोसेमंद सहयोगी रहे दिग्विजय के बीच भी सब ठीक नहीं है. लेकिन कमलनाथ, जो राज्य कांग्रेस प्रमुख हैं, इस चुनौती से बेपरवाह हैं. वे कहते हैं, ''मैंने देश के ज्यादातर राजनेताओं की तुलना में कहीं अधिक चुनाव लड़े और जीते हैं. पार्टी प्रभारी के रूप में मैंने किसी से ज्यादा चुनाव लड़ाए हैं. हमारी लड़ाई भाजपा के संगठन के खिलाफ है.''

उपचुनाव की सीटों में कांग्रेस की संगठनात्मक ताकत बढ़ाने के लिए कमलनाथ अपने गढ़ छिंदवाड़ा के अनुभवों पर दांव लगा रहे हैं, जिसका उन्होंने लोकसभा में नौ बार प्रतिनिधित्व किया है. 'छिंदवाड़ा मॉडल' अपनाते हुए पार्टी ने 27 सीटों में मंडल-स्तरीय प्रभारी नियुक्त किए हैं, जिनमें से प्रत्येक को 10-12 बूथ दिए गए हैं. उनका एक काम मतदाता सूचियों के नामों को सत्यापित करना है. पूर्व विधायकों और मंत्रियों को निर्वाचन क्षेत्र सौंपकर उन्हें बूथ स्तर तक मतदान की निगरानी के लिए कहा गया है. पूरे ढांचे को फिर से तैयार करना पड़ रहा है क्योंकि विधायकों के पार्टी बदलने से जमीनी स्तर के बहुत-से कार्यकर्ताओं की भी निष्ठाएं बदलने का अंदेशा जताया जा रहा है.

पहले की ही तरह कमलनाथ जमीन पर स्थिति का आकलन करने के लिए सर्वेक्षण करा रहे हैं. 27 सीटों पर जीतने में सक्षम उम्मीदवारों की तलाश में मदद और पार्टी की कमजोरियों की पहचान के लिए तीन सर्वेक्षण किए गए हैं. जातिगत गणित का भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण होगा, खासकर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में जहां की 16 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. कांग्रेस को विश्वास है कि ग्वालियर-चंबल में विधायकों के पाला बदलने से जनता उन्हें 'घोर अवसरवादी' के रूप में देख रही है. न केवल इस बात की चर्चा है कि ये विधायक पैसे के लालच में बागी हुए बल्कि उन्होंने भरपूर सौदेबाजी भी की है और इसीलिए सिंधिया के साथ इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों में से 14 को शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में जगह मिली है.


उम्मीदवारों के लिहाज से कांग्रेस फायदे में दिखती है. सौदे के तहत, भाजपा ने कांग्रेस के सभी बागी विधायकों को टिकट देने का वादा किया था. पार्टी के सर्वेक्षण बताते हैं कि कुछ सीटों पर ये उम्मीदवार अलोकप्रिय हैं और हार सकते हैं. दूसरी ओर, कांग्रेस उन उम्मीदवारों को मैदान में उतार सकती है जो जातीय गणित के लिहाज से सबसे उपयुक्त हैं.

विकास के काम पर, कमलनाथ का तर्क है कि उनकी सरकार मात्र 15 महीने चली थी और 2019 के लोकसभा चुनाव के कारण प्रभावी रूप से केवल 12 महीने काम के लिए मिल सके थे. वे कहते हैं, ''मैंने 26 लाख किसानों का ऋण माफ किया था. अभी मैंने और अधिक ऋणों को माफ करने की प्रक्रिया शुरू की ही थी कि मेरी सरकार गिरा दी गई.''  कांग्रेस ने ऋण माफी योजना के 26 लाख लाभार्थियों के आंकड़े पेन ड्राइव में डाले हैं और उन्हें वितरित करने की योजना है. भाजपा के शासन में बिजली दरों में वृद्धि के मुद्दे को भी कांग्रेस उठाएगी. कमलनाथ सरकार ने एक योजना शुरू की थी, जिससे हाशिए पर खड़े तबके को बिजली के बिलों से राहत मिली थी लेकिन भाजपा प्रशासन ने वह योजना बंद कर दी. कांग्रेस की सोशल मीडिया रणनीति सिंधिया और उनके वफादारों के पार्टी से 'विश्वासघात' पर केंद्रित है.

27 में से दस सीटें अनुसूचित जाति के लिए और तीन अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 16 सीटों में से सात आरक्षित हैं. दलित वोट बैंक सुरक्षित करने की कोशिश करते हुए, कांग्रेस सोशल मीडिया पर दलितों के साथ अत्याचार की घटनाओं को उजागर कर रही है.

सिंधिया और भाजपा से मिले राजनैतिक सदमे को कमलनाथ ने कैसे लिया है? इसके जवाब में वे कहते हैं, ''इस छल के कारण मुझे निराशा तो हुई लेकिन मैं क्रोधित नहीं हूं. मैं लोगों के पास जाऊंगा और उनसे पूछूंगा कि आखिर मेरी गलती क्या थी? मेरी सरकार धोखे से क्यों गिराई?'' पार्टी से उपचुनावों में कैसे प्रदर्शन की उम्मीद है, यह पूछे जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं, ''मैं यह नहीं कह सकता कि कांग्रेस कितनी सीटें जीतेगी, लेकिन मुझे ऐसी चार सीटें भी नहीं नजर आतीं जिसे भाजपा आसानी से जीत सकेगी.''

मजबूत प्रचारकों की कमी कांग्रेस की मुख्य परेशानियों में से एक है. भाजपा के पास, चौहान और सिंधिया के रूप में ऐसे नेता हैं जिनके लिए भीड़ जुटती है और वे अभियान को अलग स्तर पर ले जा सकते हैं. इसके विपरीत कमलनाथ सार्वजनिक कार्यक्रमों से बचने के लिए जाने जाते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे आंकड़ों के खेल और निर्वाचन क्षेत्रवार विस्तृत विश्लेषण में बहुत कुशल हैं, लेकिन यह देखते हुए कि चुनावी रैलियां अक्सर मतदाताओं के दिल और दिमाग को बदलने वाली साबित होती हैं, क्या आंकड़ों की उनकी महारत जीत के लिए पर्याप्त होगी?

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