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भारत का मकसद इस अभियान के जरिए चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों की जांच-परख करना है. यहां हम यह जानेंगे-समझेंगे कि धरती के अंतरिक्ष में इस सबसे करीबी पड़ोसी तक भारत क्या-क्या सामान भेज रहा है.
इसरो चंद्रयान-3 के साथ एक लैंडर और एक रोवर भेज रहा है. इस मिशन के लिए चंद्रमा की कक्षा में पहले से एक ऑर्बिटर है, जो कुछ साल पहले चंद्रयान-2 के साथ भेजा गया था. यह ऑर्बिटर अभी-भी चंद्रमा के चारों ओर घूम रहा है और उसकी सतह की पड़ताल कर रहा है.
लैंडर-रोवर को स्पेसक्राफ्ट के प्रोपल्शन मॉड्यूल में पैक किया गया है, जो इसे चंद्रमा की कक्षा तक लेकर जाएगा और फिर वहां से इसकी सबसे चुनौतीपूर्ण यात्रा शुरू होगी.
प्रोपल्शन मॉड्यूल का वजन 2,148 किलो है. यह चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर तक ले जाएगा और फिर उससे अलग हो जाएगा. हालांकि इसका एक काम और भी है. इसको स्पेक्ट्रो-पोलैरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (शेप) इन्स्ट्रूमेंट के साथ डिजाइन किया गया है. यह पृथ्वी के स्पेक्ट्रम का विश्लेषण करेगा और उन ग्रहों का डेटा इकट्ठा करेगा, जहां इंसान रह सकता है.
शेप से जो डेटा मिलेगा उसका इस्तेमाल सुदूर के ग्रहों के अध्ययन और एक ऐसा पैमाना बनाने के लिए किया जाएगा जिससे सौरमंडल के बाहर के इन ग्रहों पर इंसान के रहने की संभावना तलाशी जा सके.
महज 26 किलो वजन वाला यह रोवर 50 वॉट बिजली पैदा करेगा. इसके साथ एक अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्टोमीटर और लेजर आधारित स्पेक्ट्रोस्कोपी इन्स्ट्रूमेंट होगा जो लैंडिंग साइट के आसपास की मिट्टी के अवयवों की जांच करेगा और रिगोलिथ (चंद्र चट्टानें और मिट्टी) के खनिज पदार्थों का अध्ययन करेगा.
The rugged airless world has been forever shrouded in mystery and constant intrigue and in a few months, as Chandrayaan-3 touches down on the highly battered surface, India will pull the curtain on those secrets and unravel new mysteries of the only natural satellite we have - the Moon.
Illustration: Vani Gupta/ India Today