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बेलगावी सीमा विवाद: वह जिला जिस पर महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों दावा करते हैं

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद फिर उभर आया है. लेकिन यह विवाद आखिर है क्या?

इस विवाद की जड़ में है, राज्य पुनर्गठन कानून, 1956. यह भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के लिए बनाया गया था. भारत की आजादी के समय बेलगावी बॉम्बे प्रांत का हिस्सा हुआ करता था और इसमें कर्नाटक के कुछ और इलाके भी शामिल थे. लेकिन राज्य पुनर्गठन कानून लागू होने के बाद बेलगावी (पहले इसे बेलगाम कहा जाता था) कर्नाटक का हिस्सा बन गया.

एक मई, 1960 को महाराष्ट्र ने बेलगावी, कारवाड़ और निपानी सहित 865 गांवों पर दावा करते हुए कहा कि वे राज्य का हिस्सा होने चाहिए, लेकिन तत्कालीन कर्नाटक सरकार ने साफ कर दिया कि उसका कोई भी हिस्सा महाराष्ट्र को नहीं दिया जाएगा. 

विवाद सुलझाने के लिए केंद्र सरकार ने 25 अक्टूबर 1966 को महाजन आयोग का गठन कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने बेलगावी पर महाराष्ट्र के दावे को खारिज तो किया ही, साथ में सिफारिश भी की कि जट्ट, अक्कलकोट और शोलापुर सहित 247 गांव कर्नाटक में शामिल किए जाने चाहिए और निपानी, खानपुर व नंदागड़ महाराष्ट्र के हिस्से आने चाहिए. हालांकि महाराष्ट्र ने इन सिफारिशों का जमकर विरोध किया. 1970 में आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश की गई लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हुई.  

महाराष्ट्र सरकार ने 2004 में राज्य पुनर्गठन कानून को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी. याचिका में कर्नाटक के पांच जिलों सहित 865 गांवों को महाराष्ट्र में शामिल किए जाने की मांग की गई थी. इस विवाद ने बेलगाम, जो कि पहले बॉम्बे प्रांत का हिस्सा था, में महाराष्ट्र एकीकरण समिति को जन्म दिया. कर्नाटक ने बेलगाम का नाम बदलकर बेलगावी कर दिया और जिले में विधानसभा की दूसरी इमारत बना दी. 

इस विवाद को सुलझाने के लिए कोई भी राजनीतिक पार्टी गंभीर कोशिश करती दिखाई नहीं देती. हालांकि यह मुद्दा हर बार उनके घोषणापत्र में जरूर दिखाई देता है.

कर्नाटक संविधान के अनुच्छेद-3 का हवाला देते हुए कहता है कि सिर्फ संसद ही राज्यों की सीमा पर कोई फैसला कर सकती है, सुप्रीम कोर्ट नहीं. दूसरी तरफ महाराष्ट्र अनुच्छेद-131 का हवाला देता है और दावा करता है कि जब केंद्र सरकार और राज्य सरकारें विवाद में शामिल हों तो मामले का निबटारा सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है.

2010 में केंद्र ने कहा था कि राज्य पुनर्गठन कानून, 1956 और बॉम्बे पुनर्गठन विधेयक, 1960 बनाते वक्त संसद और केंद्र सरकार, दोनों ने सभी पहलुओं का ध्यान रखा था.  

बीते साल 10 दिसंबर को भाजपा के महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावंकुले ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद मामले को तुरत-फुरत सुनना चाहिए और फैसला देना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से दोनों राज्यों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. 

 

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Credits

प्रोड्यूसर: राका मुखर्जी

क्रिएटिव: राहुल गुप्ता