कनिमोलि 'दूसरी बीवी' की संतान हैं और इस तथ्य ने उनकी जिंदगी को संवारा भी है और बिगाड़ा भी. उनके पिता एम. करुणानिधि के बारे में माना जाता है कि वे तमिल महाकाव्य सिलप्पधिकारम से अभिभूत हैं. यह कण्णगी, उसके पति कोवलन और दूसरी औरत माधवी के बीच प्रेम त्रिकोण की कहानी है. करुणानिधि ने 1964 में कनिमोलि के जन्म से चार साल पहले इस महाकाव्य का एक आधुनिक सिनेमा संस्करण लिखा था और उसका निर्माण किया था.
16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
इस महाकाव्य में समृद्ध व्यवसायी कोवलन एक गणिका माधवी की खातिर अपनी पत्नी कण्णगी को छोड़ देता है. माधवी के साथ झ्गड़ा होने के बाद कोवलन, जो अब गरीब हो चुका है, फिर अपनी पत्नी के पास लौट आता है. जब कोवलन कण्णगी की पायल बेचने की कोशिश करता है, तो उस पर चोरी का आरोप लगता है. राजा उसे मौत की सजा देता है, लेकिन कण्णगी यह साबित कर देती है कि वह पायल उसकी थी. कण्णगी मदुरै शहर को आग के हवाले करके अपने पति की मौत का बदला लेती है.
पहले कण्णगी और बाद में माधवी को छोड़ने को लेकर कोवलन को तो कोई पछतावा नहीं था, लेकिन करुणानिधि अपने जीवन में आई दूसरी महिला रजती अम्माल की खातिर अपनी पत्नी दयालु अम्माल को नहीं छोड़ सके. प्रसूति के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर रजती ने करुणानिधि का पता लिखवाया. तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरै ने करुणानिधि की रजती के साथ दूसरी शादी करवा दी.
कनिमोलि अकव्ली संतान की तरह बड़ी हुई. उनकी सौतेली मां दयालु और उनके सौतेले भाइयों-एम.के. अलागिरी और एम.के. स्टालिन और खुद उनके बीच किसी किस्म का प्रेमभाव नहीं था. करुणानिधि को दो अलग-अलग गृहस्थियां चलानी पड़ती थीं और कनिमोलि उनकी पसंदीदा संतान के तौर पर बड़ी हुई. छोटी उम्र में ही उस बच्ची का साहित्य के प्रति लगाव हो गया और वह कविता लिखने लगी. अपने दौर के विभिन्न लेखकों के साथ उनकी मित्रता हुई. वे राजनीति के प्रति उदासीन रहने के लिए प्रसिद्ध थीं.
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
2 नवंबर 201: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
दोनों परिवारों के बीच पैदा हुए विवाद से कनिमोलि को लाभ भी हुआ और उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. उनकी मां अपनी बेटी के लिए बड़ी भूमिका चाहती थीं. वे चाहती थीं कि कनिमोलि अपने पिता की साहित्यिक उत्तराधिकारी ही नहीं, उनकी राजनैतिक उत्तराधिकारी भी हों. धीरे-धीरे कनिमोलि के इर्दगिर्द एक चौकड़ी जुटने लगी.
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से मशर हुए ए. राजा उनके विश्वासपात्रों में से थे. न तो दयालु का परिवार और न ही करुणानिधि के भानजे दिवंगत मुरसोलि मारन चाहते थे कि कनिमोलि राजनीति में आएं. राजनीति में उनका पदार्पण अलगिरी के साथ तालमेल से हुआ, जो स्टालिन के साथ मैदानी लड़ाई में उलझे हुए थे. जून 2007 में कनिमोलि राज्यसभा में मनोनीत की गईं.
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
जाहिर है, कनिमोलि के दो पक्ष हैं. एक है गर्मजोशी वाली सुसंस्कृत शख्सियत का. दूसरा पक्ष सोच-समझ्कर जोड़तोड़ करने वाली का है. कॉर्पोरेट लॉबिइस्ट नीरा राडिया के साथ उनकी बातचीत के टेप उनका दूसरा पक्ष दर्शाते हैं. जून 2001 में जयललिता सरकार ने उनके पिता को गिरफ्तार किया तो उस मौके के टेलीविजन फुटेज से एक छवि दिमाग में कौंधती रहती है. वे जेल के बाहर सड़क पर अपने पिता के साथ बैठी थीं-संकट की घड़ी में पिता की पसंदीदा संतान पिता के साथ थी. उस समय की एक और तस्वीर-जिसमें वे एक पुलिसवाले के सीने पर घूंसा मार रही हैं, बिसराई जा चुकी है.
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
अब उनकी किस्मत में क्या है? अगर अदालत उन्हें दोषी करार देती है, तो उनके लिए सारे रास्ते बंद हो जाएंगे. अगर वे सजा से बच निकलने में कामयाब हो जाती हैं, तो राजनीति में जगह बनाने के लिए उन्हें संघर्ष करना होगा. न तो अलगिरी, न स्टालिन और न ही मारन बंधु- कलानिधि और दयानिधि-उन्हें राजनैतिक तौर पर शक्तिशाली होने देंगे. उन्हें द्रमुक के एक गुट के रूप में बने रहना होगा. महज 43 वर्ष की कनिमोलि को अभी लंबा रास्ता तय करना है. उन्हें फिर से उठ खड़ा होना होगा. वे पहले भी ऐसा कर चुकी हैं. कवि, राजनेता, कैदी. अब आगे उनकी क्या भूमिका रहेगी? दार्शनिक की?
लेखक तमिल लेखक, आलोचक और रंगमंच की शख्सियत हैं

