उत्तराखंड की भुवन चंद्र खंडूरी सरकार गंगा में चल रहे खनन के मामले में सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का नाम सामने आने से सवालों के घेरे में है.
पहले सरकार खनन को कानूनी और वैध साबित करने में जुटी हुई थी लेकिन कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट का नाम सामने आने के बाद जब विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने खनन के विरोध में चल रहे मातृ सदन के आंदोलन का समर्थन शुरू किया तो सरकार ने आनन-फानन में खनन रोक दिया.
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
यही नहीं, सरकार ने खनन से गंगा को हुए नुक्सान के आकलन के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र भी लिख दिया है.
यह विवाद एक माह पहले तब शुरू हुआ जब प्रदेश भर की नदियों में खनन को मंजूरी देने के साथ राज्य सरकार ने हरिद्वार में भी बिशनपुर कुंडी और भोगपुर में खनन के पट्टे जारी कर दिए.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
हालांकि सरकार के इस कदम से नाराज मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद लगातार सरकार को गंगा में खनन बंद करने की चेतावनी दे रहे थे, लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी.
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
विरोध में स्वामी शिवानंद ने 25 नवंबर से आमरण अनशन शुरू कर दिया. मातृ सदन के ही एक संत निगमानंद की 13 जून को 68 दिनों के आमरण अनशन के बाद मौत हो गई थी. तब यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंजा था, लेकिन कुछ महीने की चुप्पी के बाद सरकार ने फिर खनन शुरू करवा दिया.
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मातृ सदन पर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ''मातृ सदन अपनी मांगों को लगातार बढ़ा रहा है. पहले उन्होंने केवल कुंभक्षेत्र को खनन मुक्त करने की मांग की थी, जिसे मान लिया गया. लेकिन अब वे पूरे हरिद्वार में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग कर रहे हैं, जो संभव नहीं है.''
इससे पहले 2 दिसंबर को राज्य के राजस्व मंत्री भट्ट ने खनन व्यवसायियों को समर्थन करने का ऐलान किया था. मातृ सदन ने राजस्व मंत्री भट्ट पर खनन माफियाओं से मिले होने का आरोप लगाया था, जिसके विरोध में भट्ट ने इस्तीफे की धमकी दी.
उन्होंने जांच की बात नहीं की क्योंकि यह जग जाहिर है कि राजस्व मंत्री हरिद्वार के निकट श्यामपुर में चल रहे एक स्टोन क्रशर में हिस्सेदार हैं और यह हिस्सेदारी उनके पुत्र एवं पुत्रवधू के नाम है.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
वर्तमान में हरिद्वार जिले में 41 स्टोन क्रशर संचालित हो रहे हैं, जिनमें से 22 पूरी तरह से गंगा से हो रहे खनन पर निर्भर हैं. सरकार ने अपने ताजा शासनादेश में गंगा में खनन को प्रतिबंधित करते हुए विशनपुर कुंडी और भोगपुर में खनन को प्रतिबंधित कर दिया है.
गंगा में होने वाले अवैध खनन की स्थिति यह है कि गंगा के आसपास स्थित 22 स्टोन क्रशरों को 8,000 घनमीटर प्रति दिन की उप-खनिज की निकासी के पट्टे जारी किए गए हैं जबकि इन क्रशरों की प्रति दिन क्षमता 7,58,200 घनमीटर क्रशिंग की है.
ऐसे में सवाल यह है कि सैकड़ों गुना अधिक उप-खनिज इन क्रशरों में कहां से आ रहा है. साफ है कि वैध खनन की आड़ में अवैध खनन का काम धड़ल्ले से होता है.
प्रदेश सरकार तब तक शिवानंद के आंदोलन को अनदेखा करती रही, जब तक कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस मामले में शिवानंद के समर्थन में नहीं उतर आया.
टिहरी गढ़वाल के सांसद विजय बहुगुणा और पौड़ी गढ़वाल के सांसद सतपाल महाराज ने जब इस मुद्दे को दिल्ली से लेकर देहरादून तक उठाया, तब सरकार ने 5 दिसंबर की रात गंगा को खनन मुक्त करने का आदेश पारित किया.
इस फैसले के पीछे एक कारण यह भी है कि सरकार चुनाव की दहलीज पर खड़े होकर इस मुद्दे का राजनैतिक लाभ किसी दल को नहीं दे सकती.
खनन के खिलाफ जारी इस लड़ाई को जहां कुछ संगठनों का खुला समर्थन मिल रहा है वहीं पद्मश्री अवधेश कौशल इसे खनन के खिलाफ लड़ाई को चेहरा चमकाने की कवायद करार देकर खारिज करते हैं.
कौशल का कहना है कि पर्यावरण की चिंता अपनी जगह ठीक है, लेकिन विकास की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता. मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद कहते हैं कि हम गंगा की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं.
मातृ सदन के ही एक संत ब्रह्मचारी दयानंद का कहना है कि हरिद्वार में चलने वाले 41 में से अधिकांश क्रशर अवैध खनन के सहारे चलते हैं, लेकिन प्रशासन इस ओर आंख मूदें रहता है.
दूसरी ओर कैबिनेट मंत्री भट्ट ने क्रशर चलाने और मातृ सदन का उत्पीड़न करने संबंधी आरोपों से इनकार किया. उनका कहना है, ''क्रशर में मेरी कोई भूमिका नहीं है. उसे मेरा बेटा चलाता था, जो अब किराए पर दे दिया है.''
फिलहाल सरकार ने गंगा के लिए चल रहे इस आंदोलन को राजनैतिक मुद्दा बनने से पहले ही शांत करा दिया लेकिन सरकार इस मामले में कोई सर्वमान्य नीति बनाने के पक्ष में अब भी नहीं दिख रही.