लखनऊ से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का खास लगाव था. वह यहां से लगातार पांच बार सांसद चुने गए. लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी के अनुयायी काफी संख्या में हैं. अटल के अनुयायियों की यह इच्छा थी कि अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर कुछ ऐसा कार्य हो जो अनवरत चलता रहे. अटल जी के नाम पर छोटे-छोटे कार्यक्रम तो होते थे लेकिन ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्यक्रम नहीं था जो अटल के अनुयायी इकट्ठा होकर लगातार कर रहे हों. दिसंबर के पहले हफ्ते में अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थकों ने उत्तर प्रदेश सरकार में विधायी एवं न्याय तथा ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभागों के कैबिनेट मंत्री तथा लखनऊ मध्य से विधायक बृजेश पाठक से मिलकर एक फाउंडेशन बनाने की रूपरेखा खींची. इसके बाद 17 दिसंबर को बृजेश पाठक के राजभवन स्थित सरकारी आवास पर एक बैठक हुई. इसमें सभी राज्य कर्मचारी संगठन, सभी व्यापार मंडल, पटरी दुकानदार यूनियन, रिक्शा-टेंपो यूनियन, इंजीनियर्स एसोसिएशन, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, शिक्षक संगठन, वकीलों के संगठन, समाजसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए. इस बैठक में सर्वसम्मति से 'भारत रत्न श्रद्धेय पंडित अटल बिहारी वाजपेयी मेमोरियल फाउंडेशन' नाम से एक संस्था के गठन पर सहमति बनी. इसी नाम से संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया गया.
इसके बाद यह तय हुआ कि इस संस्था के तत्वावधान में 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन लखनऊ में कराया जाए. चूंकि अटल जी कवि थे इसलिए यह निर्णय हुआ कि इनके जन्मदिन पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाए. नवगठित फाउंडेशन से जुड़े लोगों का मत था कि वर्तमान में कुमार विश्वास देश के सबसे लोकप्रिय कवि हैं, ऐसे में पहले कार्यक्रम की शुरुआत इन्हीं से होनी चाहिए. बृजेश पाठक ने कुमार विश्वास से बात की और उन्होंने अटल जी के जन्मदिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के लिए अपनी सहमति दे दी. कवि सम्मेलन को 24-25 दिसंबर की रात में कराने का निर्णय हुआ. इसके लिए पुराने लखनऊ में मौजूद साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर को बुक कर दिया गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहने पर अपनी सहमति दे दी. इसी बीच 21 दिसंबर को यूपी भाजपा के प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह लखनऊ आए. राधा मोहन सिंह ने मुख्यमंत्री आवास पर मंत्री परिषद के सभी सदस्यों के साथ बैठक की. यह तय हुआ कि 24-25 दिसंबर को पूरे प्रदेश में कोई कार्यक्रम नहीं होगा. यह निर्णय हुआ कि अटल जी के जन्मदिवस को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाएगा और सभी मंत्री 25 दिसंबर को बूथ पर रहेंगे.
इस निर्णय के बाद से बृजेश पाठक समेत अटल बिहारी बाजपेयी फाउंडेशन से जुड़े सभी लोग चिंता में पड़ गए क्योंकि 24 दिसंबर की रात को लखनऊ में कवि सम्मेलन के आयोजन से जुड़ी सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी थीं. फाउंडेशन से जुड़े लोगों ने इस बारे में अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सलाह लेने का निर्णय लिया. 23 दिसंबर की दोपहर 12 बजे बृजेश पाठक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने लोकभवन पहुंचे. योगी आदित्यनाथ ने बृजेश पाठक से कहा कि वह 24 दिसंबर को कवि सम्मेलन में समय से पहुंच जाएंगे लेकिन यह शर्त रखी कि बृजेश पाठक भी अपने प्रभारी जिले आंबेडकरनगर में 25 दिसंबर को आयोजित कार्यक्रम में समय पर पहुंच जाएं. मुख्यमंत्री योगी को बृजेश पाठक ने भरोसा दिलाया कि वह आंबेडकर नगर समय से पहले पहुंच जाएंगे. 24 दिसंबर की रात सवा बारह बजे कवि सम्मेलन समाप्त हुआ और बृजेश पाठक कन्वेंशन सेंटर से ही अपने प्रभारी जिले आंबेडकरनगर के लिए निकल पड़े. देर रात साढ़े तीन बजे बृजेश पाठक आंबेडकर नगर पहुंच गए और सुबह यहां आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की.
इससे पहले कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कवि सम्मेलन पूरी तरह सफल रहा. यहां मौजूद मुख्य हॉल तो खचाखच भरा हुआ ही था साथ ही दो अपेक्षाकृत छोटे हॉल जहां पर 70 एमएम स्क्रीन पर कवि सम्मेलन का लाइव प्रसारण हो रहा था वह भी दर्शकों से पूरी तरह भर गया था. जिन दर्शकों को कन्वेंशन सेंटर के भीतर जगह नहीं मिली थी उनके लिए गेट पर एक बड़े ट्रक में एलईडी स्क्रीन के जरिए कवि सम्मेलन का सीधा प्रसारण किया जा रहा था. इसके अलावा लखनऊ शहर के 11 जगहों पर भी एलईडी स्क्रीन के जरिए कवि सम्मेलन लाइव दिखाने की व्यवस्था की गई थी. इस तरह किसी कार्यक्रम को दर्शकों के बीच एलईडी स्क्रीन के जरिए लाइव पहुंचाने का पहला प्रयोग था. अब अगले वर्ष से फाउंडेशन अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर डिग्री और इंटर कालेजों में व्याख्यानमालाओं का आयोजन करने की रूपरेखा बना रहा है. इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की सभी पुस्तकें फाउंडेशन की वेबसाइट पर अपलोड करने की तैयारी हो रही है.
अटल की विरासत को संजोने में लगे बृजेश पाठक प्रदेश के उन चुनिंदा नेताओं में हैं जो छात्र नेताओं की नर्सरी से निकलकर पुष्पित पल्लवित हुए हैं. बृजेश पाठक का जन्म 25 जून, 1964 को हरदोई के मल्लावां कस्बे में गंगारामपुर मोहल्ले में हुआ था. इनके पिता खेतिहर किसान थे. पांचवीं तक की पढ़ाई बृजेश ने गंगारामपुर प्राइमरी पाठशाला में पूरी की. इसके बाद आठवीं कक्षा तक भगवतनगर मोहल्ले में बीएन इंटर कालेज में पढ़े. इनके चाचा उन्नाव के ब्लाक प्रमुख थे. इसलिए हाइस्कूल और इंटर की पढ़ाई करने उन्नाव चले गए. यहां सुभाष इंटरकालेज बांगरमऊ में दाखिला लिया. वर्ष 1980 में इंटरमीडियट की पढ़ाई पूरी करने के बाद बृजेश पाठक लखनऊ आ गए. लखनऊ के विद्यांत हिंदू कॉलेज में बीकॉम प्रथम वर्ष में दाखिला लिया. अगले साल इन्होंने अपना ट्रांसफसर कान्यकुब्ज कॉलेज (केकेसी) में करा दिया. वर्ष 1982 में इन्होंने बीकॉम पाठ्यक्रम पास किया. चार्टेड एकाउंटेट बनने की इच्छा रखते हुए बृजेश पाठक ने “इंस्टीट्यूट आफ कास्ट ऐंड वर्क्स एकाउंट्स ऑफ इंडिया” (आइसीडब्ल्यूए) के लखनऊ चैप्टर में दाखिला लिया. यहां पर इंटरमीडियट तक की शिक्षा ली. चूंकि चार्टेड एकाउंटेट की पढ़ाई में काफी समय लग रहा था इसलिए इनका मन इससे विरक्त हो गया. दोस्तों ने भी बृजेश को सलाह दी कि ऐसी रोजगारपरक शिक्षा ग्रहण की जाए जिससे नौकरी मिलने में आसानी हो.
इसी के तहत बृजेश ने 1984 में लखनऊ विश्वविद्यालय में लॉ पाठ्यक्रम में दाखिला लिया. यह विश्वविद्यालय के बलरामपुर हॉस्टल में रहने लगे. इसी दौरान वर्ष 1986 में इमरजेंसी के बाद पहली बार लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव हुए. चूंकि बृजेश पाठक हरदोई, उन्नाव और आसपास के जिलों लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने आने वाले छात्र-छात्राओं का काफी ख्याल रखते थे. इस वजह से ये इन छात्र-छात्राओं के बीच काफी लोकप्रिय थे. इसी कारण से वर्ष 1986 के छात्रसंघ चुनाव के दौरान चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के बीच बृजेश पाठक का समर्थन पाने की होड़ रही. अगले साल जब वर्ष 1987 में जब लखनऊ विश्वविद्यालय का छात्रसंघ चुनाव आया तो बृजेश ने अपने एक मित्र जिनके पिता उसवक्त न्यायिक सेवा में थे उन्हे विधि प्रतिनिधि का चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया. जब पर्चा दाखिल करने की अंतिम तारीख आई तो पिता के दबाव में आकर बृजेश के मित्र ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया. इसके बाद सभी लोगों ने बृजेश पाठक से विधि प्रतिनिधि का चुनाव लड़ने को कहा. यहीं से इनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई. बृजेश तीन वोट से चुनाव जीते. इसके बाद बृजेश पाठक ने विश्वविद्यालय के विधि पाठ्यक्रम में पढ़ने वाले सभी छात्र-छात्राओं तक संपर्क करने का अभियान शुरू कर दिया. कुछ ही समय में यह विधि छात्र-छात्राओं के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए. वर्ष 1988 में बृजेश पाठक ने लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ा और तीसरे नंबर पर आए. हार के बावजूद बृजेश ने हौसला नहीं छोड़ा वह अगले चुनाव की तैयारी में लग गए और वर्ष 1989 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष पद पर विजयी हुए. इस दौरान दो साल के स्नातक पाठ्यक्रम को तीन साल करने के विरोध में आंदोलन किया. यह जेल गए. इसके बाद बृजेश लगातार छात्र-छात्राओं के बीच लोकप्रिय होते गए. अगले साल 1990 में वे निर्दलीय अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए.
इसके बाद बृजेश पाठक की अध्यक्षता में “उत्तर प्रदेश छात्र संघर्ष समिति” का गठन हुआ. इस समिति में प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ पदाधिकारी शामिल थे. इस प्रकार स्नातक में त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम के विरोध में एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ. इसके बृजेश पाठक की पहचान एक जुझारू नेता की बना दी. बड़ी संख्या में युवाओ का समर्थन मिलने के बाद बृजेश पाठक की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं भी बढ़ीं और इन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू की. यह हरदोई में भाजपा के वरिष्ठ नेता गंगा बख्श सिंह के संपर्क में आए. अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद 1993 के विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने प्रदेश में एक यात्रा निकाली थी. मल्लावां में बृजेश पाठक ने कल्याण सिंह की एक बड़ी सभा का आयोजन करने में बड़ी भूमिका निभाई. बृजेश वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव में मल्लावां विधानसभा सीट से भाजपा का टिकट चाहते थे लेकिन इन्हें निराशा हाथ लगी. वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में भी इन्हें टिकट नहीं मिला. वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में इन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मल्लावां विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और महज 130 वोटों से चुनाव हार गए. इस चुनाव में हुई धांधली के विरोध में बृजेश पाठक ने हाइकोर्ट की शरण ली.
हाइकोर्ट में सुनवाई चल ही रही थी कि वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव आ गया. इसी बीच एक दिन जब बृजेश पाठक अपने गांव मल्लावां में थे इनके घर के लैंडलाइन फोन पर बसपा नेता सतीश मिश्र का फोन आया. मिश्र ने बृजेश से दिल्ली आकर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती से मिलने को कहा. बृजेश मायावती से मिले. मायावती ने बृजेश से बसपा के टिकट पर कन्नौज से चुनाव लड़ रहे अखिलेश यादव के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरने का ऑफर दिया. बृजेश ने अनिच्छा जाहिर की तो मायावती ने कैसरगंज में बेनी प्रसाद वर्मा के खिलाफ लड़ने को कहा. इस पर भी बृजेश राजी नहीं हुए तो मायावती ने उनके सामने पांच और सीटें गिनाईं जिनमें एक सीट उन्नाव भी थी. बृजेश ने उन्नाव पर हामी भरी. मायावती ने 29 फरवरी 2004 को लोकसभा चुनाव के लिए उन्नाव सीट पर बृजेश को बसपा का टिकट थमा दिया. करीब 40 दिन के चुनाव प्रचार में बृजेश चुनाव जीते और उन्नाव से लोकसभा सांसद बने. वर्ष 2009 में यह बसपा के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे. बृजेश ने राज्यसभा सांसद के तौर पर उन्नाव को ही अपना नोडल जिला बनाया. वर्ष 2016 में बृजेश पाठक तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के संपर्क में आए. इन्होंने बसपा छोड़ भाजपा ज्वाइन की. वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लखनऊ मध्य से लड़ा. बृजेश पाठक चुनाव जीते और यूपी में भाजपा सरकार बनने के बाद यह कैबिनेट मंत्री बने.
प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभागों में बेकार के कानूनों को समाप्त करने का एक अभियान शुरू किया था. इस अभियान में बृजेश पाठक की एक बड़ी भूमिका थी. विधायी एवं न्याय विभाग की कमान संभालते ही बृजेश पाठक ने भी विभागों को पत्र भेजकर ऐसे कानूनों की जानकारी मांगी जो निष्प्रयोज्य हो चुके हैं. पाठक ने इन बेकार पड़े कानूनों पर संबंधित विभागों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लिया. इसके बाद विधानसभा में निरसन विधेयक लाकर निष्प्रयोज्य कानूनों को समाप्त किया गया. अबतक करीब 350 कानूनों को समाप्त किया जा चुका है. यह प्रक्रिया अभी भी जारी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर प्रदेश में लागू हुए “उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020” को तैयार करने में भी बृजेश पाठक के विधायी एवं न्याय विभाग की एक बड़ी भूमिका रही. पिछले वर्ष नवंबर में यूपी राज्य विधि आयोग ने लव जिहाद से जुड़ी एक रिपोर्ट सरकार को भेजी थी. इसके बाद गृह विभाग से प्रस्ताव आने के बाद विधायी एवं न्याय विभाग ने देश के अन्य राज्यों में लव जिहाद से जुड़े प्रावधानों के साथ आइपीसी और सीआपीसी का अध्ययन किया. इसके बाद “उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020” का ड्राफ्ट तैयार हुआ.
कोरोना काल में भी बृजेश पाठक ने अपने घर में एक कंट्रोल रूम खोला था जिसमें 24 घंटे लोगों की समस्याएं सुनकर उसका निस्तारण किया जाता था. कंट्रोल रूम के जरिए लोगों को भोजन से लेकर दूध और दवाएं भेजी गईं. कोरोना महामारी के दौरान जरूरतमंदों के लिए बृजेश पाठक ने अपने व्यक्तिगत संसाधन से 500 ट्रक आटा खरीदकर लोगों के बीच वितरित किया. ऐसे लोग जिनके पास पहनने को चप्पलें नहीं थी उन्हें बृजेश पाठक ने चप्पलें बांटीं. बृजेश पाठक का राजभवन स्थित सरकारी मकान जरूरतमंदों के लिए हमेशा खुला रहता है. यह रोज कम से कम एक हजार लोगों से अपने घर पर मिलकर उनकी शिकायतें सुनकर उसका निदान करते हैं. बृजेश पाठक ने यह साबित किया है कि राजनीति में दीर्घकालिक सफलता पाने का कोई शार्टकट नहीं होता इसके लिए जनता के बीच बने रहना पहली और अंतिम शर्त होती है.
***