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छत्तीसगढ़ में हालिया मुठभेड़ जिसमें 18 माओवादी मारे गए, सरेंडर प्रक्रिया को धीमा करेगी या तेज?

जब छत्तीसगढ़ में फोर्स का पलड़ा इतना भारी है, तो ऐसे समय में माओवादियों के सरेंडर को लेकर सुरक्षा बलों के बीच ज्यादा उत्साह नहीं है

41 Naxalites surrender in Bijapur; 32 carried Rs 1.19 crore reward
छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों का एक सर्च ऑपरेशन (फाइल फोटो)
अपडेटेड 9 दिसंबर , 2025

छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद (LWE) पहले से ही कमजोर ‌स्थिति में था और अब उसकी कमर टूट गई है. 3 दिसंबर को इसे एक और झटका लगा जब बीजापुर–दंतेवाड़ा की सीमा पर माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ में 18 उग्रवादी मारे गए. इनमें डी.वी.सी.एम. मोडियामी वेला भी शामिल था, जो पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की ‘कंपनी नंबर 2’ का कमांडर था. इस मुठभेड़ में जिला रिजर्व गार्ड (DRG) के तीन जवान भी शहीद हुए.

सुरक्षा बलों को पश्चिम बस्तर डिविजन के माओवादियों की मौजूदगी की जानकारी मिली थी. बताया जा रहा है कि बीजापुर और दंतेवाड़ा की सीमा पर वे बड़े ग्रुप में मौजूद थे. 3 दिसंबर की सुबह करीब 9 बजे बीजापुर से निकली DRG की टीम का सामना माओवादियों से हो गया और जोरदार मुठभेड़ शुरू हो गई.

शहीद हुए तीन DRG जवानों के नाम हैंः मोनू, डुकारू गोंडे और रमेश सोड़ी. उनके दो साथी, जनार्दन कोर्रम और सोमदेव यादव, जख्मी हुए. मोडियामी वेला के साथ मारे गए बाकी 17 माओवादियों की पहचान की जा रही है.
यह मुठभेड़ उस समय सामने आई जब राज्य में एक बड़े माओवादी समूह के सरेंडर की खबरें आ रही थीं. इसी वजह से यह सवाल उठने लगे कि यह ताजा सुरक्षा ऑपरेशन आगे होने वाले सरेंडर को कैसे प्रभावित करेगा. माओवादियों को हथियार छोड़ने के लिए दबाव और बातचीत, दोनों की दोहरी रणनीति अपनाई गई है.

टॉप सूत्रों के मुताबिक, माओवादियों का एक ग्रुप, जिसमें टॉप लीडर तिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवजी, एमएमसी (महाराष्ट्र–मध्य प्रदेश–छत्तीसगढ़) जोन के रामदर, ‘बैटालियन नंबर 1’ के नए कमांडर बताए जा रहे बारसे देवा और पापा राव शामिल हैं, सरेंडर के मूड में नहीं दिखते. लेकिन 18 माओवादियों की मौत वाली इस मुठभेड़ से उनके ऊपर सरेंडर का दबाव और बढ़ सकता है. साथ ही, चूंकि तीन सुरक्षा जवान शहीद हुए और दो घायल हुए, माओवादी इसे अपनी आंशिक "कामयाबी" की तरह पेश कर सकते हैं.

दो हफ्ते पहले, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में माओवादियों के साथ मुठभेड़ में एमपी स्पेशल आर्म्ड फोर्स के एक इंस्पेक्टर की मौत हो गई थी. इसके तुरंत बाद, एमएमसी जोन के माओवादी प्रवक्ता अनंत ने अपने ग्रुप के साथ सरेंडर की पेशकश की. लेकिन उस इंस्पेक्टर की मौत का साया सरेंडर प्रक्रिया पर बना हुआ है. जमीनी स्तर के सुरक्षा कर्मी ऐसे समय में माओवादियों के सरेंडर को लेकर उत्साहित नहीं हैं, जब फोर्स का पलड़ा साफ तौर पर भारी है. हालांकि सूत्रों का कहना है कि पुलिस बिना किसी शर्त के सरेंडर के लिए तैयार है.

3 दिसंबर के ऑपरेशन की जानकारी देते हुए बस्तर के आइजी सुंदरराज पी. ने कहा कि घिर चुके माओवादियों के लिए सरेंडर ही सही विकल्प है. उन्होंने कहा, “मुठभेड़ की तीव्रता बताती है कि माओवादी सरेंडर कर मुख्यधारा में आने को तैयार नहीं थे. लेकिन यह घटना उन कैडरों को प्रभावित नहीं करेगी जो हिंसा छोड़ने का मन बना चुके हैं. जो भी हिंसा छोड़कर ईमानदारी से शांतिपूर्ण और अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहता है, उसके लिए पुनर्वास के दरवाजे खुले हैं. लेकिन जो लोग हिंसा का रास्ता चुनते रहेंगे, उन्हें हमारी तरफ से कड़ा जवाब मिलेगा.”

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