केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला ने मंगलवार यानी 16 अप्रैल को राजकोट लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया. 22 मार्च को दलित समाज की एक सभा में रूपाला ने कहा था कि अंग्रेजों समेत विदेशी शासकों के शासनकाल के दौरान क्षत्रिय समाज के लोगों की उनसे मिलीभगत रहती थी और न सिर्फ ये लोग उनके साथ उठते-बैठते थे बल्कि अपनी बेटियों की शादियां भी उन महाराजाओं से करा देते थे.
इस बयान के बाद से राजकोट समेत पूरे गुजरात में क्षत्रिय समाज लगातार रूपाला का विरोध करते हुए भाजपा से यह मांग कर रहा था कि उनकी उम्मीदवारी वापस ली जाए और किसी नए उम्मीदवार को उतारा जाए. इसके बावजूद पार्टी ने ऐसा नहीं किया. जबकि भाजपा ने गुजरात की ही दो लोकसभा सीटों - वडोदरा और साबरकांठा पर स्थानीय लोगों का विरोध देखते हुए अपने उम्मीदवार बदले थे.
इसी वजह से रूपाला का विरोध करने वाले लोग ही नहीं बल्कि भाजपा के अंदर भी एक वर्ग ऐसा था जिसे लग रहा था कि उनको बदला जा सकता है. कांग्रेस ने भी पूरी ताकत लगाई कि रूपाला की उम्मीदवारी वापस ले ली जाए. रूपाला के गृह जिले अमरेली के कांग्रेस नेता परेश धनानी ने कहा था कि अगर भाजपा उम्मीदवार नहीं बदलेगी तो वे खुद को चुनाव से दूर रखने का निर्णय बदलेंगे और खुद रूपाला के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. आखिरकार कांग्रेस ने धनानी को उम्मीदवार घोषित कर दिया. 2002 में धनानी तीन बार के विधायक रूपाला को विधानसभा चुनाव में अमरेली से हराकर चर्चा में आए थे.
इन दबावों के बीच अगर भाजपा ने रूपाला की उम्मीदवारी वापस नहीं ली तो इसके पीछे मोटे तौर पर चार वजहें पार्टी के नेता बता रहे हैं. गुजरात के एक वरिष्ठ भाजपा नेता इस बारे में कहते हैं, ''रूपाला के पक्ष में अंकगणित गया. अगर उनको हटाते तो पटेल समाज (रूपाला इसी से आते हैं और इन्हें पाटीदार भी कहा जाता है) के बीच अच्छा संदेश नहीं जाता. क्षत्रिय समाज के लोगों के मुकाबले गुजरात में पाटीदारों की संख्या तकरीबन दोगुनी है. फिर क्षत्रिय समाज में ऐसा नहीं हो सकता कि सिर्फ रूपाला के बयान से आहत होकर लोग नरेंद्र मोदी के लिए वोट न करें. कहीं छिटपुट नाराजगी हुई तो जीत का अंतर थोड़ा कम हो सकता है.''
रूपाला का टिकट नहीं बदले जाने के पक्ष में एक बात यह गई कि वे अपने बयान पर अड़े नहीं रहे बल्कि उन्होंने बार—बार माफी मांगी. नामांकन के दिन रूपाला ने कहा, ''मैं क्षत्रिय समाज से एक अपील करना चाहता हूं. आपका सहयोग भी देश हित में महत्वपूर्ण है. मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप बड़ा दिल दिखाएं और बीजेपी का समर्थन करें.'' रूपाला के बार—बार माफी मांगने से शीर्ष नेतृत्व के बीच यह संदेश गया कि यह बयान किसी योजना के तहत नहीं दिया गया. यही वजह रही कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 18 अप्रैल को खुद कहा कि रूपाला ने दिल से माफी मांगी है. अमित शाह के इस बयान से उन लोगों को झटका लगा है जो इस बात का कयास लगा रहे थे कि नामांकन दाखिल करने के बाद भी रूपाला को नामांकन वापस लेने के लिए पार्टी कह सकती है.
क्षत्रिय समाज के विरोध के बावजूद परशोत्तम रूपाला की उम्मीदवारी बरकरार रखने के पीछे तीसरी वजह उनकी वरिष्ठता रही. 1991 में पहली बार विधायक बने रूपाला गुजरात भाजपा के ढांचे में अभी सबसे पुराने सक्रिय नेता हैं. गुजरात भाजपा के लोग तो ये भी कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं कि रूपाला मुंहफट जरूर हैं लेकिन वे पार्टी और अपने नेता के प्रति समर्पित रहते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि गुजरात में उनका अपना एक जनाधार है. यही वजह है कि भाजपा ने उन्हें गुजरात के अपने स्टार प्रचारकों की सूची में भी जगह दी है.
परशोत्तम रूपाला के पक्ष में चौथी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि राजकोट सीट का समीकरण उनके अनुकूल है. राजकोट लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या तकरीबन 23 लाख है. इनमें सबसे अधिक 5.8 लाख मतदाता रूपाला के पाटीदार समाज से हैं. जबकि राजपूतों की संख्या सिर्फ 1.5 लाख है. राजकोट सीट पर 3.5 कोली और 2.8 लाख मालधारी और 1.8 लाख दलित मतदाता हैं. भाजपा के एक नेता बताते हैं कि पार्टी का आकलन यह रहा कि अगर क्षत्रिय समाज में चुनाव तक नाराजगी बनी रहती है तो भी रूपाला हार तो नहीं सकते, ज्यादा से ज्यादा ये हो सकता है कि उनके जीत के अंतर में 50,000 से 70,000 वोटों की कमी आ जाए.
भाजपा को एक उम्मीद यह भी है कि राजकोट समेत गुजरात में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा होने लगेगी तो क्षत्रिय समाज की सारी नाराजगी खत्म हो जाएगी.