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झारखंड में IAS, IPS अधिकारी, उनके परिवार, सब कैसे फंस रहे भ्रष्टाचार में?

अलग राज्य बनने के बाद से कहा जाता रहा है कि झारखंड IAS, IPS अधिकारियों के लिए ऐशगाह है

निलंबित आईएएस अधिकारी विनय चौबे की पत्नी स्वप्ना संचिता से पूछताछ के लिए उनके घर पहुंची ACB
निलंबित आईएएस अधिकारी विनय चौबे की पत्नी स्वप्ना संचिता से पूछताछ के लिए उनके घर पहुंची ACB
अपडेटेड 9 दिसंबर , 2025

बीते रविवार यानी 7 दिसंबर को झारखंड सीएम हाउस से लगती गली में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की अचानक तैनाती बढ़ा दी गई. मीडियाकर्मियों तक भी सूचना पहुंची. तमाम कैमरे भी वहां लग गए. एक घंटे, दो घंटे...नहीं, पूरे दस घंटे तक यह भीड़ घटने-बढ़ने के साथ जमी रही. क्योंकि राज्य में पहली बार था जब भारतीय प्रशासनिक सेवा के किसी वरिष्ठ अधिकारी की पत्नी से भ्रष्टाचार निरोधक इकाई यानी ACB के अधिकारी पूछताछ करने पहुंचे थे. 

शराब और जमीन घोटाले मामले में राज्य के निलंबित आईएएस अधिकारी विनय चौबे की पत्नी स्वप्ना संचिता से राज्य सरकार की अपनी जांच एजेंसी एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने 7 दिसंबर को पूछताछ की. ACB के अधिकारी रविवार सुबह उनके आवास पहुंचे और देर रात तक पूछताछ जारी थी. इस मामले में विनय चौबे की पत्नी के अलावा स्वप्ना संचिता के भाई, उसकी पत्नी, ससुर सहित कई दोस्त भी जांच के दायरे में हैं. इन सब पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी कर खुद के जेब भरने का आरोप है.  

झारखंड में हुए कथित शराब और जमीन घोटाले में इस वक्त विनय चौबे के अलावा जमशेदपुर के जिलाधिकारी कर्ण सत्यार्थी, रामगढ़ जिलाधिकारी फैज अक अहमद, आईएएस अधिकारी अमित कुमार और मुकेश कुमार संदेह के घेरे में हैं. इनसे पूछताछ चल रही है. इसके अलावा रांची के पूर्व जिलाधिकारी राय महिमापत रे पर भी आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में ACB ने मामला दर्ज किया है. वे इस वक्त केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं और विश्व बैंक में कार्यरत हैं. 

भ्रष्टाचार से जुड़े अन्य मामलों में आईएएस अधिकारी छवि रंजन और पूजा सिंघल इस वक्त जमानत पर बाहर चल रहे हैं. छवि रंजन को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दो बड़े भूमि घोटालों के आरोप में गिरफ्तार किया, जो सरकारी रिकॉर्ड में हेरफेर और अवैध भूमि अधिग्रहण से जुड़े थे. पूजा सिंघल को भी ED ने मनरेगा घोटाले के मामले में हिरासत में लिया था, जिसमें ग्रामीण विकास फंड की बड़ी बंदरबांट का आरोप है.  

हालात ये हैं कि कथित भ्रष्टाचार की आशंका के मद्देनजर साल 2005-06 के दौरान भूमि संरक्षण विभाग की जमीन पर बने 600 से अधिक तालाबों को अब जाकर खोजने का काम ACB को दिया गया है. अब तक ACB की कार्रवाई मुख्य रूप से निचले स्तर के सरकारी कर्मचारियों जैसे कांस्टेबल, सर्किल ऑफिसर, राजस्व अधिकारी और प्रखंड विकास पदाधिकारी तक सीमित थी. लेकिन हालिया गिरफ्तारियां दिखाती हैं कि एजेंसी अब व्यापक और अधिक सख्त तरीके से काम कर रही है. जिसमें प्रधान सचिव और संयुक्त सचिव स्तर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को भी जांच के दायरे में लाया जा रहा है. 

इधर बीते 26 नवंबर को नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने धनबाद एसएसपी प्रभात कुमार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा, ‘’धनबाद एसएसपी ने वसूली का एक सेंट्रलाइज्ड सिस्टम बना रखा है. जिले के थानेदार, डीएसपी, सीओ से लेकर माइनिंग ऑफिसर तक, सबका हिस्सा तय है. इस वसूली सिंडिकेट के राइट हैंड़ हैं बाघमारा डीएसपी पुरुषोत्तम सिंह और लेफ्ट हैंड़ है इंस्पेक्टर अजीत भारती. ये दोनों मिलकर मलाईदार थानों की बोली लगाते हैं और जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है, उसे ही थानेदारी मिलती है.’’ 

उन्होंने आगे कहा, ‘’डीएसपी पुरुषोत्तम सिंह, जो पूर्व में मुख्यमंत्री की सुरक्षा में रहे हैं, अपनी उस पहुंच का धौंस जमाकर वसूली करते हैं. इनका खौफ इतना है कि सभी माइनिंग साइट्स में इन्होंने 50 फीसदी की पार्टनरशिप जबरन ले रखी है. इसमें पूर्व डीजीपी अनुराग गुप्ता की भूमिका 'संरक्षक' की रही है. जब वे सीआईडी और डीजीपी दोनों प्रभार में थे, तो दोनों पदों की अलग-अलग फीस वसूलते थे. यह पैसा बाघमारा डीएसपी उन तक पहुंचाते थे. गंभीर बात यह है कि उनके हटने के बाद आज भी 'डीजीपी' के नाम पर वसूली जारी है. अब यह पैसा किस डीजीपी को जा रहा है, यह एक बड़ी जांच का विषय है.’’ हालांकि इन अधिकारियों, पुलिसकर्मियों पर फिलहाल कोई जांच नहीं चल रही है. 

बता दें, झारखंड में जेल जाने वाले पहले आईएएस अधिकारी सजल चक्रवर्ती थे, जिन्हें चारा घोटाले के सिलसिले में CBI ने गिरफ्तार किया था. इसके अलावा इसी साल डॉ. प्रदीप कुमार और सियाराम प्रसाद सिन्हा को स्वास्थ्य विभाग में दवा खरीद से जुड़े एक घोटाले में अनियमितताओं के मामले में CBI ने गिरफ्तार किया था. 

झारखंड बाबूओं के लिए ऐशगाह क्यों है 

राज्य बनने के कुछ सालों से बाद से हर दिन यह चर्चा होती रही है कि क्या झारखंड को ब्यूरोक्रेट ऐशगाह समझते हैं. चारा घोटाले को उजागर करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले JDU के विधायक सरयू राय कहते हैं, "मुट्ठी भर ब्यूरोक्रेट हैं जो सरकार के नजदीक रहते हैं, वही इन सब चीजों में अधिक लिप्त होते हैं. विनय चौबे भी इसी सरकार के आंखों के तारा थे, अब लग रहा है सबसे बड़े गुनहगार हैं.” 

राय आरोप लगाते हुए कहते हैं, "जिस तरीके से खास मकसद के लिए ईडी या CBI का इस्तेमाल होता रहा है, हेमंत सरकार भी ACB का उसी तरीके से इस्तेमाल कर रही है. शराब घोटाला मामले में दो आईएएस को गवाह के तौर पर बुलाया गया, बाद में उन्हें भी आरोपी बना दिया गया. साफ है, ACB हवा में तीर मार रही है.” 

अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाने वाले सीपीआई-एमएल के पूर्व विधायक विनोद सिंह सरयू राय की बात को आगे बढ़ाते हैं, "अधिकारियों के वेतन और उनके रहन-सहन में बड़ा गैप है. नियम के तहत ये हर साल अपनी संपत्ति की घोषणा करते हैं, उस दौरान भी कई बार उसमें भारी वृद्धि देखने को मिलती है. जबकि यह घोषित संपत्ति होती है. सरकारों को यहीं से जांच शुरू कर देनी चाहिए. लेकिन जब सरकारों के चयन की प्रक्रिया ही भ्रष्ट हो, तो भला किसकी जांच होगी.” 

दूसरी बात कि झारखंड जैसे राज्यों में ED या CBI अपने हिसाब से ऐसे मामलों का चयन करती रही है. ऐसे में राज्य सरकार को अपने मशीनरी का इस्तेमाल विस्तृत रूप से करना चाहिए, जो कि ना के बराबर होती है. अब हेमंत सरकार ने ACB के दायरे को बढ़ाया है, तो परिणाम दिख रहे हैं. हालांकि इन कार्रवाइयों से भी आम लोगों को किसी तरह की राहत नहीं मिलने वाली. निचले स्तर पर भ्रष्टाचार उसी रफ्तार से जारी है, जैसा पहले रहा है. 

हाल ही में उजागर हुए डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रेस्ट (DMFT) घोटाले में पंकज यादव ने हाईकोर्ट में पीआईएल दायर की है. वे कहते हैं, "यहां के राजनेताओं के पास प्रशासनिक अनुभव बहुत कम है. ऐसे में वे इन अफसरों पर निर्भर होकर ही कोई काम करते हैं. धीरे-धीरे ये अफसर नेताओं को खुद पर निर्भर कराते हैं, फिर यहां से मनचाही पोस्टिंग और काम करते हैं. घोटाले की शुरूआत यहीं से होती है. नेता खुद भी गलती करते हैं, जिसमें अफसर भी इनके साथ होते हैं. पहले नेता फंसते थे, अफसर बच निकलते हैं. लेकिन अब दोनों ही फंस जा रहे हैं.”

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