अयोध्या से लखनऊ की ओर बढ़ते हुए जैसे ही सड़क सोहावल ब्लॉक की सीमा में दाखिल होती है, दाहिनी तरफ रौनाही थाना नजर आता है. यही वह मोड़ है जहां से जैन समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाने वाली जन्मस्थली, भगवान धर्मनाथ दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र की संकरी सड़क आगे जाती है. इसी रास्ते पर कुछ ही दूरी चलने पर धन्नीपुर गांव आता है, जहां एक अलग तरह की खामोशी महसूस होती है.
सड़क के किनारे रखे दो जर्जर बोर्डों पर धुंधली पड़ी मस्जिद की डिजाइन और नीचे छपे “इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन” के नाम से पता चलता है कि यही वह 5 एकड़ जमीन है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुस्लिम पक्ष को नई मस्जिद बनाने के लिए आवंटित किया गया था. लेकिन पांच साल से ज्यादा समय गुजर चुका है और अभी तक यहां मिट्टी का एक ढेला भी नहीं हिला है.
अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले से रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की राह खुली थी उसी में अयोध्या के प्रमुख स्थल पर पांच एकड़ भूमि मस्जिद निर्माण के लिए दिए जाने का प्रावधान भी था. फरवरी 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार ने सोहावल तहसील के धन्नीपुर गांव में यह जमीन आवंटित कर दी.
मस्जिद निर्माण, उससे जुड़े संस्थानों और सामाजिक सुविधाओं के संचालन के लिए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने “इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन” (IICF) नाम का ट्रस्ट बनाया. लेकिन आज हालात यह हैं कि ट्रस्ट के अध्यक्ष ज़फर अहमद फारुकी खुद स्वीकार करते हैं, “अभी जमीन पर कुछ भी नहीं है.” अब तक निर्माण शुरू न होने के पीछे दो मुख्य वजहें सामने आती हैं. पहली, पहले वाली मस्जिद डिजाइन को लेकर समुदाय में असहमति और दान की कमी. दूसरी, अयोध्या विकास प्राधिकरण में जमा किया गया निर्माण नक्शा प्रक्रिया पूरी न होने की वजह से अपने आप ही निरस्त हो गया.
अब दावा है कि नई डिजाइन को अंतिम रूप दिया जा चुका है और 31 दिसंबर तक इसे फिर से विकास प्राधिकरण में जमा किया जाएगा. मंजूरी आने में कम से कम तीन महीने लगेंगे. इसके बाद उम्मीद की जा रही है कि मार्च 2026 से जमीन पर काम दिखाई देना शुरू हो सकता है.
2021 में मस्जिद की जो डिजाइन सार्वजनिक की गई थी, वह आधुनिक और प्रयोगात्मक थी. मस्जिद की दो मीनारें थीं, वे भी बिना मेहराब वाली. गुंबद रोशनदान वाले कांच से बना हुआ था और डिजाइनरों के मुताबिक यह बहुत ही खूबसूरत और अपने वक्त से आगे का आर्किटेक्चर था, लेकिन समुदाय ने इसे अपनाया नहीं. फारुकी बताते हैं कि लोग मस्जिद को मोहम्मद साहब के नाम पर बनने वाली बड़ी मस्जिद के रूप में देखते हैं. ऐसे में आधुनिक ढांचे को स्वीकार करने में हिचकिचाहट स्वाभाविक थी. विरोध का सीधा असर दान पर पड़ा और फाउंडेशन के अनुसार दान आने की गति बेहद धीमी हो गई. नतीजतन ट्रस्ट को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. पहले वाले नक्शे को वापस लिया गया और पारंपरिक शैली में नया डिजाइन तैयार किया गया.
नए प्रस्तावित मस्जिद परिसर को “मोहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद” नाम दिया गया है. इसका ढांचा पूरी तरह पारंपरिक शैली पर आधारित है, ताकि समुदाय का भरोसा बढ़े और दान में बढ़ोतरी हो सके. मस्जिद की नई डिजाइन में कई सारे बदलाव किए गए हैं. मस्जिद में पांच मीनारें होंगी. एक केंद्रीय गुंबद होगा, करीब पांच हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकेंगे, मस्जिद 1400 वर्ग मीटर में बनेगी और पूरा परिसर पांच एकड़ में विकसित होगा. परिसर में सिर्फ मस्जिद ही नहीं, बल्कि उससे जुड़े कई सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्र भी बनेंगे.
इसमें एक 200 बेड वाला कैंसर अस्पताल, इंडो-इस्लामिक सांस्कृतिक व शोध केंद्र, म्यूजियम, लाइब्रेरी, कम्युनिटी किचन और अन्य शैक्षिक सुविधाएं शामिल हैं. फाउंडेशन इसे एक “मल्टी-फंक्शनल” परिसर की तरह देख रहा है, जो सिर्फ धार्मिक स्थल न होकर समाजहित के कई काम भी करेगा.
मस्जिद और उससे जुड़ी संरचनाओं के निर्माण पर लगभग 65 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है. लेकिन ट्रस्ट के पास अभी मुश्किल से तीन करोड़ रुपये जमा हैं. कई बैठकें, अपीलें और सोशल मीडिया कैंपेन के बावजूद दान का प्रवाह धीमा है. फारुकी के अनुसार, “फंड आ रहे हैं, लेकिन धीरे आ रहे हैं.” इस अंतर को दूर करने के लिए ट्रस्ट ने अपनी वेबसाइट पर अपील लिखी है कि यह सिर्फ एक मस्जिद नहीं, बल्कि दया, एकता और सेवा का केंद्र बनेगा. अपील में अस्पताल, शोध केंद्र और सामुदायिक सुविधाओं को विशेष रूप से हाईलाइट किया गया है.
धन्नीपुर की जमीन पर सॉयल टेस्टिंग पहले ही पूरी की जा चुकी है. प्रशासन के साथ मस्जिद तक पहुंचने वाली सड़क के चौड़ीकरण को लेकर भी वार्ता हुई है और ट्रस्ट इसे “संतोषजनक” बताता है. लेकिन वास्तविक निर्माण तभी संभव होगा जब नक्शे को मंजूरी मिले, और सबसे जरूरी बात, जब परियोजना के लिए पर्याप्त पैसा इकठ्ठा हो सके. फाउंडेशन का कहना है कि अब प्रक्रिया पटरी पर है. नया डिजाइन समुदाय की अपेक्षाओं से मेल खाता है. संरचनात्मक नक्शा इस महीने विकास प्राधिकरण को भेजा जाएगा. अगर मंजूरी समय पर मिल जाती है और दान की गति में तेजी आती है, तो मार्च 2026 के बाद धन्नीपुर में मस्जिद निर्माण शुरू हो सकता है. हालांकि अभी भी यह एक लंबी यात्रा है. ट्रस्ट को 65 करोड़ रुपये जुटाने हैं. मस्जिद परिसर में अस्पताल, शोध केंद्र और अन्य सुविधाओं का निर्माण होगा, जिसमें समय और संसाधन दोनों ज्यादा लगने वाले हैं.
धन्नीपुर की यह कहानी सिर्फ एक मस्जिद की कहानी नहीं, बल्कि उस वादे की कहानी भी है जो 2019 के फैसले के बाद किया गया था. उस वादे को पूरा होने में अभी कुछ दूरी बाकी है, लेकिन जमीन पर पहली ईंट रखे जाने से पहले की यह थकाऊ यात्रा बताती है कि अयोध्या जैसे संवेदनशील इलाके में कोई भी निर्माण केवल ईंट और पत्थर का काम नहीं, बल्कि समाज की भावनाओं, भरोसे और समर्थन से जुड़ा एक धीमा और जिम्मेदार कदम है. धन्नीपुर में मस्जिद के लिए प्रस्तावित जमीन के ठीक सामने रहने वाले मो. इस्लाम का धैर्य भी जवाब दे रहा है. इनकी आस थी कि मस्जिद बनने के बाद इलाके की तरक्की होती जिसका लाभ सभी को मिलता. पांच साल से मस्जिद निर्माण की आस लगाए मो. इस्लाम निर्माण प्रक्रिया से जुड़े लोगों पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं- “कुछ गुड़ गीला तो कुछ बनिया ढीला.” जाहिर है ट्रस्ट को अब पूरी तेजी दिखानी ही होगी.

