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फीफा 2014: क्या मेस्सी का जादू इस बार रंग दिखाएगा?

लोग भले ही उन्हें नया डिएगो माराडोना कहते हों पर लियोनेल मेस्सी को उनके देशवासी तब तक महान नहीं मानेंगे, जब तक वे अर्जेंटीना को जीत नहीं दिला देंगे.

अपडेटेड 16 जून , 2014
वाकई लियोनेल मेस्सी एक पहेली हैं. इसलिए नहीं कि वे मैदान में क्या कहते हैं और क्या करते हैं, बल्कि इसलिए कि हमें नहीं मालूम कि मैदान के बाहर वे क्या कहते हैं और क्या करते हैं. इंग्लैंड के स्ट्राइकर वायन रूनी ने कई इंटरव्यू दिए हैं, जिनमें बताया है कि गोल करते समय दिमाग की सोच क्या होती है. स्वीडन के पावरहाउस जलाटान इब्राहिमोविच हमें बताते हैं कि वे खुद के सबसे बड़े फैन हैं.

पुर्तगाल के जादुई खिलाड़ी क्रिस्टियानो रोनाल्डो भी कुछ ऐसी ही बात साबित कर चुके हैं. इन खिलाडिय़ों पर हमें शायद ही शक होता है. वे सबका ध्यान खींचते हैं. अर्जेंटीना के मेस्सी ऐसे खेलते हैं मानो उन्होंने ही इस खेल का ईजाद किया हो. उनकी प्रतिभा पुश्तैनी लगती है, पर ये बातें इतने पर ही जाकर खत्म हो जाती हैं कि वे डिएगो माराडोना के बाद सबसे उम्दा खिलाड़ी हैं.
  
माराडोना अर्जेंटीना के आखिरी वर्ल्ड कप सुपर स्टार थे, जिन्होंने मेक्सिको 1986 में कप जीता था. सबसे गरीब समुदाय से आए माराडोना को देश में हीरो माना जाता है. उन्हें लोग प्यार करते हैं, पर मेस्सी को नहीं. वे अपनी विलक्षण क्षमता और संतुलन के मामले में कई तरह से माराडोना से मिलते-जुलते हैं, लेकिन वे अर्जेंटीना से भावनात्मक और भौतिक रूप से बहुत दूर हैं. फिर भी, अगर वे यह वर्ल्ड कप दिला देते हैं तो सारे गिले-शिकवे शर्तिया दूर हो जाएंगे.

अर्जेंटीना को इस टूर्नामेंट में कुछ हद तक आसान शुरुआत मिली है. क्वालीफाइंग ग्रुप के ड्रॉ में किस्मत ने उनका साथ दिया है. ग्रुप एफ में ईरान, बोस्निया- हर्जेगोविना और नाइजीरिया के साथ मौजूद अर्जेंटीना की टीम में आक्रामक खिलाडिय़ों की कमी नहीं है. ये काम सर्जियो एक्यूरो, एजकील लावेजी, एंजेल डी मारिया और गोन्जालो हिगुयेन बखूबी कर लेंगे पर टीम की डिफेंस कमजोर है. अर्जेंटीना अपनी रक्षापंक्ति के किसी भी खिलाड़ी की क्षमता को वर्ल्ड कप में आजमा सकता है, लेकिन मेस्सी और उनके हमला बोलने वाले साथी शायद हार को टालने में कामयाब न हों.

गोलकीपर सर्जियो रोमेरो को पिछले सीजन में मोनैको को दे दिया गया था. वे शायद ही कभी टीम के लिए खेलें और डिफेंडर मार्टिन डेमिकलिस मजाक बन गए हैं, क्योंकि वे मजाक का पात्र ही लगते हैं. एजकील गारे को छोड़कर डिफेंस है ही नहीं. फिर भी लोगों को उम्मीद है कि टीम अपने ग्रुप में टॉप पर रहेगी. अगर उसकी रक्षापंक्ति ने बेहतरीन टीमों का सामना कर लिया, तो सबको हैरानी होगी.

इस सब के बावजूद वर्षों तक अच्छा प्रदर्शन न करने और प्रमुख पोजिशन पर प्रतिभा की कमी से जूझ रहे अर्जेंटना के लिए पिछले कुछ वर्षों में कामयाब होने का यह सबसे अच्छा मौका हो सकता है. मेस्सी पर इन सब बातों का दबाव बहुत है. मेस्सी 13 साल की उम्र में बार्सिलोना चले गए थे. बचपन में उनका शारीरिक विकास रुक गया था और इस क्लब ने उनके लिए आवश्यक ह्युमन ग्रोथ हार्मोन के इलाज का खर्चा उठाने का प्रस्ताव रखा था.

मेस्सी की बोलचाल का लहजा आज भी अपने शहर रोजारियो जैसा है. उन्हें अर्जेंटीना का खाना अच्छा लगता है और वे स्पेन की संस्कृति में घुल-मिल नहीं पाए. उन्होंने ला लिगा और चैंपियंस लीग की कामयाबी से स्पेन में खूब नाम कमाया है. फिर भी उन्हें काटालान या स्पेनिश नहीं माना जाता. अर्जेंटीना में भी लोग उन्हें बाहरी समझते हैं.

उनकी फुटबॉल खेलने की पहचान जग-जाहिर है और शायद इसीलिए वे अपने देश के साथी खिलाडिय़ों से अलग लगते हैं. उन्होंने बार्सिलोना के मशहूर ट्रेनिंग ग्राउंड ला मासिया में खेलना सीखा है, जहां खिलाडिय़ों को छोटे-छोटे पास देकर और तकनीकी महारत के साथ खेलना सिखाया जाता है. वे पूरी तरह बार्सिलोना के खिलाड़ी हैं. मेस्सी की कामयाबी के सबसे शानदार दौर के गवाह पेप गुआर्दीओला ने खुद को नए जमाने का सबसे असरदार कोच साबित किया.

उन्होंने जब पहले पहल टीम की कमान संभाली, तो पहले ही सीजन में चैंपियंस लीग और ला लिगा जीत लिया. उसके बाद बहुत कुछ हुआ. उनकी तरकीब यह थी कि ला मासिया में सीखे ऐसे खिलाडिय़ों का कोर बनाया जाए, जो टिकि टाका का नियम मानते हों. इसमें खिलाड़ी छोटे-छोटे पास देकर बॉल को लगातार अपने कब्जे में रखते हैं.

यह तरीका दिमागी और शारीरिक तौर पर भी सबसे थकाने वाला है. इनमें मेस्सी के अलावा जावी हर्नान्देज, आंद्रेज इनियेस्ता, पेट्रो रोड्रीगेज और सर्जियो बसकेट्स शामिल हैं. ये सब बेहतरीन खिलाड़ी हैं, लेकिन मेस्सी बेशक सबसे महान हैं. उन्होंने हर तरह के गोल किए हैं. स्पेन ने इन बारका खिलाडिय़ों को लिया और इनके तरीके का इस्तेमाल करके वर्ल्ड कप ही नहीं, यूरोपीय चैंपियनशिप भी जीती.
फ्री-किक लगाते मेस्सी
यह अर्जेंटीना का खेल नहीं
अर्जेंटीना में बात अलग है. वहां अपने ढंग से खेला जाता है. उनका खेल ज्यादा सीधा और कम नफीस है. दूसरे खिलाड़ी इस स्टाइल के ज्यादा अभ्यस्त हो सकते हैं, लेकिन मेस्सी का असर तब कम हो जाता है, जब वे उन खिलाडिय़ों के साथ नहीं खेलते, जो बेहतरीन खेल दिखाते हैं. बार्सिलोना में जब वे पहली टीम में उतरे तो उन्हें ब्राजील के गुरुओं ने अपना लिया, जो समझ गए कि वे कितने खास हैं.

अर्जेंटीना में ऐसी कोई ठोस कोशिश नहीं हुई कि उन्हें अपना लिया जाए और न ही ऐसा कोई संकेत मिला कि वे इस परिवार का हिस्सा बनना चाहते हैं. उन्होंने अब तक देश की टीम के लिए अपनी भावनाएं सिर्फ एक बार जाहिर की हैं, जब उन्हें पहली बार में ही निकाल दिया गया और उनके आंसू निकल आए, लेकिन हो सकता है कि ये आंसू देशभक्ति की बजाए अपनी निराशा के हों.

यह कुछ अलग भी है, क्योंकि मेस्सी ने बार्सिलोना के लिए जो 365 गोल किए हैं, उनमें से अधिकांश का एक मतलब है. वे ऐसे सीजन में हुए, जब टीम को कामयाबी मिली. अर्जेंटीना के लिए मेस्सी ने 83 मुकाबलों में 37 गोल किए हैं और ये सब ऐसे गोल हैं जो ट्रॉफी नहीं जिता पाए. कुछ लोग कहेंगे कि उन्होंने 2008 में ओलंपिक जीता था, लेकिन इसे खिलाड़ी या प्रशंसक प्यार भरी नजरों से नहीं देखते.

साफ बात यह है कि जब तक वे अर्जेंटीना को कोई जीत नहीं दिलाते, अर्जेंटीना के लिए उनका कोई मतलब नहीं है. उनके अपने शहर में भी इस गर्व का कोई सबूत नहीं मिलता कि वे वहां पैदा हुए. शायद इसकी वजह यह एहसास है कि बार्सिलोना में अनुभव लेने के बाद वे उस शहर के नहीं रहे.

अर्जेंटीना के लोग अपने खिलाडिय़ों की पूजा करते हैं, लेकिन मेस्सी को ऐसा सम्मान नहीं मिला. यह देश उन खिलाडिय़ों पर जान देता है, जो राष्ट्रीय परंपरा की पोजिशन -एनगांचे या हुक पर खेलते हैं. एनगांचे वह खिलाड़ी है, जो हमले शुरू करता है और अगर उसे जैसा खेलना चाहिए, वैसे खेलता है, तो वह नफीस और शान वाला लगता है. उसे तेजी की जरूरत नहीं होती और वह अनगिनत गोल भी नहीं करता.

पिछले कुछ दिनों में इस तरह के खिलाडिय़ों में एक नाम युआन रोमान रिक्वेल्म का है, जो मेस्सी के पांव जमने से पहले बार्सिलोना छोड़ गए थे और वहां नाकामयाब ही रहे थे. दूसरा नाम युआन सेबेस्टियन वेरॉन का है, जो इस सीजन में दूसरी बार एस्ट्युडेएन्स से रिटायर हुए. उन्होंने इसी क्लब से खेलना शुरू किया था.

ये दोनों खिलाड़ी ऐसे थे, जैसा मेस्सी नहीं है. सब जानते हैं कि मेस्सी अर्जेंटीना के बेहतरीन खिलाड़ी हैं और माराडोना के बाद सबसे अच्छे हैं. फिर भी कोई आदमी जोश के साथ मेस्सी के साथ खड़ा नहीं होता, क्योंकि ऐसा कोई नहीं है, जो सोच-समझ कर उनके खिलाफ खड़ा हो सके. वे पिछले कुछ वर्षों में लगातार यूरोप में बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं और इसलिए दुनिया में सर्वोत्तम हैं. इसके बजाए रिक्वेल्म और वेरॉन फील्ड में एकदम अजनबी से लगते हैं.

उन्होंने इतना धीमा खेल खेला कि पुराने पड़ गए. उस पोजिशन का इस्तेमाल करने में कुछ खास बात है. हालांकि बाकी दुनिया ने उन्हें भुलाने की कोशिश की, पर कभी-कभी घातक पास और खूबसूरत खेल से उन्होंने दुनिया के घुटने टिकवा दिए. उनकी यदा-कदा जाहिर होने वाली प्रतिभा मेस्सी की हर मैच में शानदार खेल दिखाने की क्षमता के मुकाबले ज्यादा रोमांटिक लगती है. वे जिस तरह से खेलते हैं, असली अर्जेंटीना वाले लगते हैं, जबकि मेस्सी असली मेस्सी हैं.

मेस्सी असल में आधुनिक फुटबॉल की देन हैं और उनकी प्रतिभा उन्हें तुरंत इसे परिभाषित करने और इससे ऊपर उठ जाने की सामर्थ्य देती है. वे ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन का उपयोग करते हैं, यह चोटों के नए तकनीकी उपचार और उस फिटनेस के विकास का अंग है, जिसने इंसानों से बड़े फुटबॉलर तैयार किए हैं. अब खिलाड़ी पूरे जोश के साथ एक सीजन में 70 गेम खेल सकते हैं. वे घुटने की गंभीर चोटों से छह महीने में उबर सकते हैं, जबकि 1990 के दशक तक ये चोटें करियर खत्म कर देती थीं.

ये खिलाड़ी गजब की तेजी से दौड़ते हैं और दूसरे खिलाडिय़ों से घिरने के बाद भी सीधे रहते हैं. मेस्सी अपने संतुलन और ऐसी चुनौतियों से हार न मानने की अपनी दुर्लभ क्षमता के लिए मशहूर हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी क्रिस्टियानो रोनाल्डो को छोड़कर बाकी सब के लिए इस ताकत की बेहतरीन मिसाल हैं. रोनाल्डो की उपस्थिति और ढिठाई में वह बात है, जो मेस्सी में नहीं. हम अकसर मेस्सी को समझने की कोशिश में पुर्तगाली खिलाडिय़ों से तुलना करते हैं और उनसे फर्क करके यह जानने की कोशिश करते हैं कि मेस्सी कितने महान हैं.
बार्सिलोना के साथियों के साथ मेस्सी
दुनिया में दूसरे बेहतरीन खिलाड़ी
दुनिया में आज दूसरे बेहतरीन खिलाड़ी रोनाल्डो घमंडी हैं. चैंपियंस लीग फाइनल में गोल दागने के बाद उन्होंने कमर तक कपड़े फाड़ लिए ताकि कैमरे उनके डीलडौल को कैद कर लें. अनगिनत अटकलें लगती रही हैं कि वे मेस्सी के मुकाबले बेहतरीन खिलाड़ी बनने को बेताब थे.

रोनाल्डो वैसे बेहतरीन खिलाड़ी नहीं बनना चाहते, जैसा बन सकते हैं, बल्कि बाकी सभी खिलाडिय़ों से बेहतर होना चाहते हैं. इसकी तुलना में अपने शांत स्वभाव की वजह से मेस्सी अकसर विनम्र और साधारण नजर आते हैं. हाल ही में सबसे ज्यादा पैसे लेने वाले खिलाड़ी बनने के लिए करार पर मोलभाव और टैक्स चोरी के आरोप बताते हैं कि यह महज बाहरी दिखावा हो सकता है.

एक और खिलाड़ी से मेस्सी की तुलना करें, तो साबित होता है कि अपने देश में अब तक उन्हें सराहना क्यों नहीं मिली. बार्सिलोना टीम में उनके नए साथी नेमार की उम्र सिर्फ 22 साल है और ब्राजील से उनका गहरा रिश्ता है. शुरुआती वर्षों में वे ब्राजील में रहे. इसलिए कम उम्र में ही देश का चहेता बनने लगे. घरेलू लीग में कामयाबी हर हफ्ते देश भर से लोगों को आकर्षित करने लगी और ब्राजील में खेल का स्तर कमजोर होने के कारण नेमार की प्रतिभा और बेहतर लगने लगी.

नेमार ने भड़कीला हेयर कट अपनाया और कारोबारी कामयाबी ने उन्हें ब्राजील में इतनी प्रसिद्धि दिला दी, जितनी मेस्सी को अर्जेंटीना में नहीं मिली. मेस्सी रात को क्लबों में नहीं जाते, लेकिन नेमार को मौज-मस्ती करते देखा गया है. एक तरह से कहा जा सकता है कि अर्जेंटीना मेस्सी का दीवाना नहीं हो सकता, क्योंकि मेस्सी ने उसे दीवाना करने के लिए कुछ नहीं दिया.

एक निराश सीजन के बाद यह वर्ल्ड कप मेस्सी के लिए आखिरी मौका है. उसके बाद तो उन्हें बार्सिलोना के लिए पसीना बहाना होगा. इस साल उन्होंने 41 गोल किए, जो 2008-09 के बाद से सबसे कम हैं. वर्ल्ड कप इस पीड़ा को भुला सकता है, लेकिन इसका अर्थ उससे कहीं ज्यादा होगा. वर्ल्ड कप में जीत से मेस्सी को अपने देश में पहचान मिलेगी.

इसका अर्थ यह भी है कि गुआर्दिओला के राज में बार्सिलोना के दबदबे से मुक्ति मिलेगी. गुआर्दिओला 2012 में बार्सिलोना छोड़ गए थे. इस जीत से शायद यह बहस भी खत्म हो जाएगी कि सबसे अच्छा खिलाड़ी कौन है, रोनाल्डो या मेस्सी. लेकिन अटकलें लगाने वाले हम सब लोगों से ज्यादा मेस्सी के लिए इस वर्ल्ड कप का क्या मतलब होगा यह बता पाना नामुमकिन है.


अलेक्जेंडर नेथर्टन लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो ईएसपीएन, हफिंगटन पोस्ट और ब्लीचर रिपोर्ट के लिए काम कर चुके हैं.
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