भारत में मोबाइल फोन के घरेलू बाजार में हैंडसेट बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोमैक्स ने 2006-07 में 16 करोड़ रु. का कारोबार किया. इस सफलता के बाद कंपनी के मालिक राहुल शर्मा और उनके तीन साथी संस्थापकों ने सोचा कि कुछ सालों में वे कंपनी के कारोबार को 1,000 करोड़ रु. तक ले जाएंगे. तब उनके दिमाग में कोई ठीक-ठीक हिसाब नहीं था.
लेकिन महज सात साल में ही माइक्रोमैक्स का कारोबार 500 गुना बढ़कर 2013-14 में 7,500 करोड़ रु. का हो गया. उनका फॉर्मूला बहुत सीधा था—ग्राहकों को वह हैंडसेट मुहैया करो, जिसकी उन्हें चाहत है. मसलन 2009 में क्वेर्टी 'क्यू’ सीरीज, 2010 में महिलाओं के लिए स्वारोव्स्की जड़ी ब्लिंग सीरीज और हाल ही में एंड्रॉयड टच फोन. ये सभी फोन बाजार में सबसे कम कीमत पर उतारे गए.

माइक्रोमैक्स के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भी पिछले सात साल में काफी बदल गए हैं. फीचर फोन के दौर में उसका मुकाबला नोकिया से था. जब क्वेर्टी का जलवा कायम हुआ तो उसकी होड़ ब्लैकबेरी से थी. और अब स्मार्टफ फोन के दौर में सैमसंग और एप्पल से होड़ है. ऐसे समय में जब नोकिया और ब्लैकबेरी बाजार में अपनी साख कायम रखने के लिए लगातार संघर्षरत हैं, माइक्रोमैक्स और मजबूत होती जा रही है.
बेंटले कांटिनेंटल जीटी (ब्रिटिश ब्रांड की कार) की सवारी करने वाले राहुल शर्मा अब बड़ा सपना देख रहे हैं. आने वाले पांच साल में वे दुनिया की आला पांच कंपनियों में शुमार होना चाहते हैं.
यह यात्रा शुरू हो चुकी है. जनवरी में शर्मा माइक्रोमैक्स ब्रांड को रूसी बाजार में लॉन्च करने के लिए मॉस्को गए थे. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के बाजार में पहले से ही कंपनी की मौजूदगी है, लेकिन ये देश सांस्कृतिक रूप से और उपभोक्ताओं की मांग के मामले में भारत जैसे ही हैं. इन देशों में माइक्रोमैक्स हैंडसेट बेचने वाली तीन आला कंपनियों में शुमार है.
रूस अलग देश है, इसलिए वहां चुनौती भी अलग तरह की है. रूस में स्मार्टफोन का बाजार काफी बड़ा है. वहां करीब 40 फीसदी लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि भारत में यह सिर्फ 19 फीसदी है. माइक्रोमैक्स के कारोबार में स्मार्टफोन की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है और यह बढ़ती ही जा रही है. इसलिए स्मार्टफोन के बड़े बाजार में कंपनी की मौजूदगी का अपना अर्थ है.
शर्मा रूस को पूर्वी यूरोप के प्रवेश द्वार के रूप में भी देखते हैं, जहां भारत की तरह बड़ा खुदरा बाजार है. अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों की तरह वह ऑपरेटरों से संचालित होने वाला बाजार नहीं है.
शर्मा ने हाल ही आयोजित इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा कि उनका अगला मुकाम रोमानिया है. उन्होंने बताया कि माइक्रोमैक्स की नजर चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया जैसे उस क्षेत्र के दूसरे देशों पर भी है. उनका कहना था, ''अगर हम रूस में कामयाब हो गए तो इन देशों में फौरन पैठ बन जाएगी.”
शर्मा को रूस में अपना ब्रांड लॉन्च करने में साल भर लग गया. माइक्रोमैक्स इसे अवसर के रूप में देख रहा है क्योंकि रूस के बाजार में अगुआ होने के बावजूद नोकिया अब पूरी दुनिया में सिमट रही है. शर्मा ने कोशिश की कि उनके उत्पाद सबसे अलग दिखने चाहिए. कैनवस और बोल्ट जैसे सफल उत्पादों में रूस की जरूरतों के हिसाब से डिजाइन और ऐप्स में बदलाव किए गए हैं.
जीमेल की जगह मेल.आरयू डिजाइन किया गया है, जो रूस की सबसे बड़ी ईमेल सर्विस है. इन फोन में फेसबुक के अलावा ओडनोक्लासनिकी है, जो फेसबुक की ही तरह एक सोशल नेटवर्किंग ऐप है. गूगल सर्च की जगह इसमें यांडेक्स है. 60 फीसदी रूसी लोग यांडेक्स में ही सर्च करते हैं.
माइक्रोमैक्स की अंतरराष्ट्रीय कमाई अब भी बहुत कम है. अभी यह 10 फीसदी से भी कम है, लेकिन शर्मा को यकीन है कि पांच साल में यह कमाई कुल कारोबार की आधी हो जाएगी. वे कहते हैं, ''हम कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए करोड़ों डॉलर का निवेश कर रहे हैं.” वे बताते हैं कि रूस में कंपनी के विस्तार के लिए 100 करोड़ रु. का निवेश करने की योजना है.
दुनिया भर में पैर पसारने की माइक्रोमैक्स की यह कोई पहली कोशिश नहीं है बल्कि इसके पहले भी कंपनी ने कई बार योजनाएं बनाईं, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. अप्रैल और मई, 2010 में कंपनी ने नाइजीरिया और ब्राजील में अपने प्रसार की योजना बनाई थी, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई.
संयुक्त अरब अमीरात में उसकी मौजूदगी थी, लेकिन अमीरात बुनियादी रूप से स्मार्टफोन का बाजार था और उस वक्त माइक्रोमैक्स के पास स्मार्टफोन का कारोबार ही नहीं था (कंपनी अब भी पश्चिम एशिया में केअरफोर, एक्सियन और लुलु जैसी कुछ रिटेल सीरीज के जरिए बिक्री करती है, लेकिन छोटी दुकानों में उसकी मौजूदगी नहीं है).
इसलिए माइक्रोमैक्स ने 2010 में अपने अंतरराष्ट्रीय विस्तार की योजना को स्थगित कर दिया. इधर भारत में बाजार तेजी से बढ़ रहा था और स्मार्टफोन लोकप्रिय हो रहे थे. माइक्रोमैक्स के दूसरे सह-संस्थापक विकास जैन कहते हैं, ''हमने नए सिरे से विचार किया और इस बार पहले भारत पर फोकस करने की योजना बनाई.”
2011-12 में एक बार फिर कंपनी उभरी. कंपनी अब पूरी तरह ऑटोमेटेड या स्वचालित हो गई थी. माइक्रोमैक्स ने नए सिरे से रिसोर्स प्लानिंग की और कस्टमर रिलेशन मैनेजमेंट पर अमल किया. उसने स्मार्टफोन और फीचर फोन की इकाइयां बनाईं. कमाई 34 फीसदी घटकर 1,600 करोड़ रु. पर आ गई, लेकिन अगले ही साल यह दोगुनी से ज्यादा हो गई.
अब आर्थिक रूप से कंपनी काफी बेहतर और मजबूत स्थिति में है और बड़े जोखिम उठाने की हिम्मत कर सकती है. शर्मा के मुताबिक, माइक्रोमैक्स की बैलेंस शीट में कोई कर्ज नहीं है. वे बताते हैं कि किसी भी देश में नए सिरे से कारोबार शुरू करने से पहले कंपनी वहां निवेश करेगी, लेकिन उसके बाद वहां से होने वाले मुनाफे का ही उस क्षेत्र में निवेश किया जाएगा.
काम का सही-सही आकलन करके लक्ष्य पूरी तरह तय कर लिया गया है. शर्मा कहते हैं, ''हम इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उस क्षेत्र से दूसरे साल में कमाई होने लगेगी. वे यह भी कहते हैं कि वे कंपनी का विस्तार करने के लिए वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेने में यकीन नहीं रखते. कंपनी ने अभी तक सिर्फ टीए एसोसिएट्स और सेकोइया कैपिटल से पैसा लिया है. इन दोनों का माइक्रोमैक्स में 20 प्रतिशत शेयर है.
बाकी सभी शेयर चारों संस्थापकों के पास हैं. कंपनी के सह-संस्थापक जैन कहते हैं कि कारोबार को आसान बनाने के लिए हर देश के बाजार में दहाई अंकों की हिस्सेदारी जरूरी है. वे कहते हैं, ''हम उस देश में नहीं बने रहना चाहते, जहां हम अपनी मौजूदगी से कोई बड़ा बदलाव नहीं कर सकते.”
कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय अपील के लिए एक्स-मेंन सीरीज के स्टार ह्यू जैकमैन से करार किया है. जैकमैन से यह करार चौबीस घंटे के भीतर लॉस एंजेलिस में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान पहली ही बैठक में हो गया था. उसके बाद कुछ स्काइप कॉल हुए और जैकमैन विज्ञापन की शूटिंग के लिए तैयार हो गए. शर्मा कहते हैं, ''हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा था.”
माइक्रोमैक्स रूस और रोमानिया के अलावा दो और देशों में जाने की योजना बना रही है. नए बाजारों में उसे भारत की ही तरह नोकिया, एप्पल और सैमसंग से स्पर्धा करनी होगी. लेकिन शर्मा के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. वे कहते हैं, ''भारत में हमने सभी अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को चुनौती दी है. अगर हम यह भारत में कर सकते हैं तो दूसरे देशों में क्यों नहीं?”
बाजार के जानकारों का कहना है कि माइक्रोमैक्स में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल होने का भरपूर माद्दा है. ग्लोबल रिसर्च फर्म गार्टनर से जुड़े टेलीकॉम विश्लेषक अंशुल गुप्ता कहते हैं, ''यह सभी मामलों में पूरी तरह से सक्षम हैंडसेट कंपनी है, जिसके पास विभिन्न देशों के बड़े बाजारों में बिक्री का अनुभव है और उसे उपभोक्ताओं की जरूरतों का एहसास है.”
शर्मा का सपना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय विस्तार का ही नहीं है. वे उस दिन की ओर देख रहे हैं, जब माइक्रोमैक्स का विज्ञापन अमेरिका में फु टबॉल के सबसे बड़े आयोजन 'सुपर बॉल’ में दिखाई दे. फरवरी 2014 के आखिरी 'सुपर बॉल’ आयोजन में 30 सेकेंड के एक विज्ञापन की कीमत करीब 40 लाख डॉलर थी. शर्मा कहते हैं, ''वही मेरी बुलंदी का शिखर होगा.”
लेकिन महज सात साल में ही माइक्रोमैक्स का कारोबार 500 गुना बढ़कर 2013-14 में 7,500 करोड़ रु. का हो गया. उनका फॉर्मूला बहुत सीधा था—ग्राहकों को वह हैंडसेट मुहैया करो, जिसकी उन्हें चाहत है. मसलन 2009 में क्वेर्टी 'क्यू’ सीरीज, 2010 में महिलाओं के लिए स्वारोव्स्की जड़ी ब्लिंग सीरीज और हाल ही में एंड्रॉयड टच फोन. ये सभी फोन बाजार में सबसे कम कीमत पर उतारे गए.

माइक्रोमैक्स के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी भी पिछले सात साल में काफी बदल गए हैं. फीचर फोन के दौर में उसका मुकाबला नोकिया से था. जब क्वेर्टी का जलवा कायम हुआ तो उसकी होड़ ब्लैकबेरी से थी. और अब स्मार्टफ फोन के दौर में सैमसंग और एप्पल से होड़ है. ऐसे समय में जब नोकिया और ब्लैकबेरी बाजार में अपनी साख कायम रखने के लिए लगातार संघर्षरत हैं, माइक्रोमैक्स और मजबूत होती जा रही है.
बेंटले कांटिनेंटल जीटी (ब्रिटिश ब्रांड की कार) की सवारी करने वाले राहुल शर्मा अब बड़ा सपना देख रहे हैं. आने वाले पांच साल में वे दुनिया की आला पांच कंपनियों में शुमार होना चाहते हैं.
यह यात्रा शुरू हो चुकी है. जनवरी में शर्मा माइक्रोमैक्स ब्रांड को रूसी बाजार में लॉन्च करने के लिए मॉस्को गए थे. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के बाजार में पहले से ही कंपनी की मौजूदगी है, लेकिन ये देश सांस्कृतिक रूप से और उपभोक्ताओं की मांग के मामले में भारत जैसे ही हैं. इन देशों में माइक्रोमैक्स हैंडसेट बेचने वाली तीन आला कंपनियों में शुमार है.
रूस अलग देश है, इसलिए वहां चुनौती भी अलग तरह की है. रूस में स्मार्टफोन का बाजार काफी बड़ा है. वहां करीब 40 फीसदी लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, जबकि भारत में यह सिर्फ 19 फीसदी है. माइक्रोमैक्स के कारोबार में स्मार्टफोन की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है और यह बढ़ती ही जा रही है. इसलिए स्मार्टफोन के बड़े बाजार में कंपनी की मौजूदगी का अपना अर्थ है.
शर्मा रूस को पूर्वी यूरोप के प्रवेश द्वार के रूप में भी देखते हैं, जहां भारत की तरह बड़ा खुदरा बाजार है. अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों की तरह वह ऑपरेटरों से संचालित होने वाला बाजार नहीं है.
शर्मा ने हाल ही आयोजित इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा कि उनका अगला मुकाम रोमानिया है. उन्होंने बताया कि माइक्रोमैक्स की नजर चेक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड और स्लोवाकिया जैसे उस क्षेत्र के दूसरे देशों पर भी है. उनका कहना था, ''अगर हम रूस में कामयाब हो गए तो इन देशों में फौरन पैठ बन जाएगी.”
शर्मा को रूस में अपना ब्रांड लॉन्च करने में साल भर लग गया. माइक्रोमैक्स इसे अवसर के रूप में देख रहा है क्योंकि रूस के बाजार में अगुआ होने के बावजूद नोकिया अब पूरी दुनिया में सिमट रही है. शर्मा ने कोशिश की कि उनके उत्पाद सबसे अलग दिखने चाहिए. कैनवस और बोल्ट जैसे सफल उत्पादों में रूस की जरूरतों के हिसाब से डिजाइन और ऐप्स में बदलाव किए गए हैं.
जीमेल की जगह मेल.आरयू डिजाइन किया गया है, जो रूस की सबसे बड़ी ईमेल सर्विस है. इन फोन में फेसबुक के अलावा ओडनोक्लासनिकी है, जो फेसबुक की ही तरह एक सोशल नेटवर्किंग ऐप है. गूगल सर्च की जगह इसमें यांडेक्स है. 60 फीसदी रूसी लोग यांडेक्स में ही सर्च करते हैं.
माइक्रोमैक्स की अंतरराष्ट्रीय कमाई अब भी बहुत कम है. अभी यह 10 फीसदी से भी कम है, लेकिन शर्मा को यकीन है कि पांच साल में यह कमाई कुल कारोबार की आधी हो जाएगी. वे कहते हैं, ''हम कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए करोड़ों डॉलर का निवेश कर रहे हैं.” वे बताते हैं कि रूस में कंपनी के विस्तार के लिए 100 करोड़ रु. का निवेश करने की योजना है.
दुनिया भर में पैर पसारने की माइक्रोमैक्स की यह कोई पहली कोशिश नहीं है बल्कि इसके पहले भी कंपनी ने कई बार योजनाएं बनाईं, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई. अप्रैल और मई, 2010 में कंपनी ने नाइजीरिया और ब्राजील में अपने प्रसार की योजना बनाई थी, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई.
संयुक्त अरब अमीरात में उसकी मौजूदगी थी, लेकिन अमीरात बुनियादी रूप से स्मार्टफोन का बाजार था और उस वक्त माइक्रोमैक्स के पास स्मार्टफोन का कारोबार ही नहीं था (कंपनी अब भी पश्चिम एशिया में केअरफोर, एक्सियन और लुलु जैसी कुछ रिटेल सीरीज के जरिए बिक्री करती है, लेकिन छोटी दुकानों में उसकी मौजूदगी नहीं है).
इसलिए माइक्रोमैक्स ने 2010 में अपने अंतरराष्ट्रीय विस्तार की योजना को स्थगित कर दिया. इधर भारत में बाजार तेजी से बढ़ रहा था और स्मार्टफोन लोकप्रिय हो रहे थे. माइक्रोमैक्स के दूसरे सह-संस्थापक विकास जैन कहते हैं, ''हमने नए सिरे से विचार किया और इस बार पहले भारत पर फोकस करने की योजना बनाई.”
2011-12 में एक बार फिर कंपनी उभरी. कंपनी अब पूरी तरह ऑटोमेटेड या स्वचालित हो गई थी. माइक्रोमैक्स ने नए सिरे से रिसोर्स प्लानिंग की और कस्टमर रिलेशन मैनेजमेंट पर अमल किया. उसने स्मार्टफोन और फीचर फोन की इकाइयां बनाईं. कमाई 34 फीसदी घटकर 1,600 करोड़ रु. पर आ गई, लेकिन अगले ही साल यह दोगुनी से ज्यादा हो गई.
अब आर्थिक रूप से कंपनी काफी बेहतर और मजबूत स्थिति में है और बड़े जोखिम उठाने की हिम्मत कर सकती है. शर्मा के मुताबिक, माइक्रोमैक्स की बैलेंस शीट में कोई कर्ज नहीं है. वे बताते हैं कि किसी भी देश में नए सिरे से कारोबार शुरू करने से पहले कंपनी वहां निवेश करेगी, लेकिन उसके बाद वहां से होने वाले मुनाफे का ही उस क्षेत्र में निवेश किया जाएगा.
काम का सही-सही आकलन करके लक्ष्य पूरी तरह तय कर लिया गया है. शर्मा कहते हैं, ''हम इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उस क्षेत्र से दूसरे साल में कमाई होने लगेगी. वे यह भी कहते हैं कि वे कंपनी का विस्तार करने के लिए वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेने में यकीन नहीं रखते. कंपनी ने अभी तक सिर्फ टीए एसोसिएट्स और सेकोइया कैपिटल से पैसा लिया है. इन दोनों का माइक्रोमैक्स में 20 प्रतिशत शेयर है.
बाकी सभी शेयर चारों संस्थापकों के पास हैं. कंपनी के सह-संस्थापक जैन कहते हैं कि कारोबार को आसान बनाने के लिए हर देश के बाजार में दहाई अंकों की हिस्सेदारी जरूरी है. वे कहते हैं, ''हम उस देश में नहीं बने रहना चाहते, जहां हम अपनी मौजूदगी से कोई बड़ा बदलाव नहीं कर सकते.”
कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय अपील के लिए एक्स-मेंन सीरीज के स्टार ह्यू जैकमैन से करार किया है. जैकमैन से यह करार चौबीस घंटे के भीतर लॉस एंजेलिस में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान पहली ही बैठक में हो गया था. उसके बाद कुछ स्काइप कॉल हुए और जैकमैन विज्ञापन की शूटिंग के लिए तैयार हो गए. शर्मा कहते हैं, ''हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा था.”
माइक्रोमैक्स रूस और रोमानिया के अलावा दो और देशों में जाने की योजना बना रही है. नए बाजारों में उसे भारत की ही तरह नोकिया, एप्पल और सैमसंग से स्पर्धा करनी होगी. लेकिन शर्मा के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. वे कहते हैं, ''भारत में हमने सभी अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को चुनौती दी है. अगर हम यह भारत में कर सकते हैं तो दूसरे देशों में क्यों नहीं?”
बाजार के जानकारों का कहना है कि माइक्रोमैक्स में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल होने का भरपूर माद्दा है. ग्लोबल रिसर्च फर्म गार्टनर से जुड़े टेलीकॉम विश्लेषक अंशुल गुप्ता कहते हैं, ''यह सभी मामलों में पूरी तरह से सक्षम हैंडसेट कंपनी है, जिसके पास विभिन्न देशों के बड़े बाजारों में बिक्री का अनुभव है और उसे उपभोक्ताओं की जरूरतों का एहसास है.”
शर्मा का सपना सिर्फ अंतरराष्ट्रीय विस्तार का ही नहीं है. वे उस दिन की ओर देख रहे हैं, जब माइक्रोमैक्स का विज्ञापन अमेरिका में फु टबॉल के सबसे बड़े आयोजन 'सुपर बॉल’ में दिखाई दे. फरवरी 2014 के आखिरी 'सुपर बॉल’ आयोजन में 30 सेकेंड के एक विज्ञापन की कीमत करीब 40 लाख डॉलर थी. शर्मा कहते हैं, ''वही मेरी बुलंदी का शिखर होगा.”