नई दिल्ली. 1 जनवरी, 2016
यह खबर पहुंचते ही पाकिस्तान में खुशी की लहर दौड़ गई कि भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (जिसे रॉ के नाम से ज्यादा जाना जाता है) ने अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर स्थित उस गुप्त ठिकाने पर कब्जा कर लिया है जहां पाकिस्तानी तालिबान ने प्रधानमंत्री सहित उनकी पूरी कैबिनेट को बंधक बना रखा था.
पाकिस्तान के पूरे मंत्रिमंडल का उस समय अपहरण कर लिया गया था, जब वे इस्लामाबाद के बाहरी इलाके रावल लेक पर पिकनिक मनाने जा रहे थे. उसके बाद आम जनता को कुछ पता नहीं चल पाया कि उन्हें कहां रखा गया है. उन्हें सिर्फ हाफिज सईद के इस गुप्त बयान के बारे में मालूम है कि उन्हें तभी रिहा किया जाएगा जब वे शरीयत कानून को पूरी तरह से लागू करने की घोषणा करेंगे जिसके मुताबिक सभी व्यभिचारिणी (बदकार बीवी) की पत्थर से मार-मारकर मौत, किसी औरत से बलात्कार करने वाला अगर उससे शादी करने से इनकार करता है तो उसे चाबुक मारने की सजा, सभी पाकिस्तानी औरतें परदे में रहेंगी और भारत और सभी पाकिस्तानी काफिरों के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया जाएगा.
आइएसआइ के कुछ लोगों ने भारतीय खुफिया एजेंसी से संपर्क कर पाकिस्तान को बचाने का अनुरोध किया था. रॉ ने तत्काल कार्रवाई की और अफगान सरकार की रजामंदी से जलालाबाद से आगे पहाड़ों की ओर जाने की हिम्मत दिखाई. उन्होंने तोरा बोरा गुफाओं से आगे बढ़ते हुए तालिबान पर अचानक हमला बोल दिया. दिलचस्प है कि भारतीय खुफिया एजेंसी के लोगों ने उसी रास्ते को चुना जिसकी खोज करीब एक दशक पहले ओसामा बिन लादेन ने बुश के घातक बमों से बचने के लिए की थी. बताया जाता है कि अल कायदा के लोगों ने भी इस अभियान में रॉ की मदद की है.
इस घटना से एहसान के बोझ् तले दबे आइएसआइ ने 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमले में अपनी भूमिका को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है और आगे अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए आइएसआइ और रॉ की संयुक्त कमान बनाने की पेशकश की है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार गांधी जी के जुलाई, 1947 के उस प्रस्ताव पर नए सिरे से और सक्रियता से विचार कर रही है कि दोनों देशों की एक संयुक्त सेना होनी चाहिए.
भारतीय प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने अपने बधाई संदेश में पाकिस्तानी पीएम के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि दोनों देशों को अपने लंबित मसले सुलझाने के लिए तत्काल वाघा-अटारी बॉर्डर पर एक ऐसी वार्ता शुरू करनी चाहिए जो बिना रोक-टोक हो और जिसमें कोई अड़चन न डाली जा सके. पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेगम गरिमा भुट्टो ने इसके जवाब में कहा है कि ऐसी वार्ता की अब कोई जरूरत नहीं है क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई अनसुलझा मसला बचा ही नहीं है और दोनों देशों के नेताओं को तत्काल मिलकर श्रीनगर को भारत-पाकिस्तान महासंघ की राजधानी बनाने के लिए एक समझौते पर दस्तखत करना चाहिए.
(राजनयिक से कांग्रेस के नेता बने मणिशंकर अय्यर राज्यसभा सांसद हैं)
यह खबर पहुंचते ही पाकिस्तान में खुशी की लहर दौड़ गई कि भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (जिसे रॉ के नाम से ज्यादा जाना जाता है) ने अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर स्थित उस गुप्त ठिकाने पर कब्जा कर लिया है जहां पाकिस्तानी तालिबान ने प्रधानमंत्री सहित उनकी पूरी कैबिनेट को बंधक बना रखा था.
पाकिस्तान के पूरे मंत्रिमंडल का उस समय अपहरण कर लिया गया था, जब वे इस्लामाबाद के बाहरी इलाके रावल लेक पर पिकनिक मनाने जा रहे थे. उसके बाद आम जनता को कुछ पता नहीं चल पाया कि उन्हें कहां रखा गया है. उन्हें सिर्फ हाफिज सईद के इस गुप्त बयान के बारे में मालूम है कि उन्हें तभी रिहा किया जाएगा जब वे शरीयत कानून को पूरी तरह से लागू करने की घोषणा करेंगे जिसके मुताबिक सभी व्यभिचारिणी (बदकार बीवी) की पत्थर से मार-मारकर मौत, किसी औरत से बलात्कार करने वाला अगर उससे शादी करने से इनकार करता है तो उसे चाबुक मारने की सजा, सभी पाकिस्तानी औरतें परदे में रहेंगी और भारत और सभी पाकिस्तानी काफिरों के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया जाएगा.
आइएसआइ के कुछ लोगों ने भारतीय खुफिया एजेंसी से संपर्क कर पाकिस्तान को बचाने का अनुरोध किया था. रॉ ने तत्काल कार्रवाई की और अफगान सरकार की रजामंदी से जलालाबाद से आगे पहाड़ों की ओर जाने की हिम्मत दिखाई. उन्होंने तोरा बोरा गुफाओं से आगे बढ़ते हुए तालिबान पर अचानक हमला बोल दिया. दिलचस्प है कि भारतीय खुफिया एजेंसी के लोगों ने उसी रास्ते को चुना जिसकी खोज करीब एक दशक पहले ओसामा बिन लादेन ने बुश के घातक बमों से बचने के लिए की थी. बताया जाता है कि अल कायदा के लोगों ने भी इस अभियान में रॉ की मदद की है.
इस घटना से एहसान के बोझ् तले दबे आइएसआइ ने 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमले में अपनी भूमिका को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है और आगे अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए आइएसआइ और रॉ की संयुक्त कमान बनाने की पेशकश की है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने संकेत दिया है कि उनकी सरकार गांधी जी के जुलाई, 1947 के उस प्रस्ताव पर नए सिरे से और सक्रियता से विचार कर रही है कि दोनों देशों की एक संयुक्त सेना होनी चाहिए.
भारतीय प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने अपने बधाई संदेश में पाकिस्तानी पीएम के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि दोनों देशों को अपने लंबित मसले सुलझाने के लिए तत्काल वाघा-अटारी बॉर्डर पर एक ऐसी वार्ता शुरू करनी चाहिए जो बिना रोक-टोक हो और जिसमें कोई अड़चन न डाली जा सके. पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेगम गरिमा भुट्टो ने इसके जवाब में कहा है कि ऐसी वार्ता की अब कोई जरूरत नहीं है क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई अनसुलझा मसला बचा ही नहीं है और दोनों देशों के नेताओं को तत्काल मिलकर श्रीनगर को भारत-पाकिस्तान महासंघ की राजधानी बनाने के लिए एक समझौते पर दस्तखत करना चाहिए.
(राजनयिक से कांग्रेस के नेता बने मणिशंकर अय्यर राज्यसभा सांसद हैं)