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प्रोफेशनल राफ्टिंग: तेज लहरों पर जीवन की बलि

बिना किसी प्रोफेशनल प्रशिक्षण के राफ्टिंग कोच करवा रहे गंगा में राफ्टिंग. सैलानियों की मौत से उठे सुरक्षा पर कई सवाल.

अपडेटेड 9 अप्रैल , 2013

ऋषिकेश के निकट कौडियाला-मुनि की रेती इको टूरिज्म जोन में 17 मार्च को राफ्ट पलटने से हुई जेट एयरवेज के एयरक्राफ्ट इंजीनियर प्रशांत पांडेय की मौत अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है. मूल रूप से बेतिया, बिहार के रहने वाले प्रशांत की मौत राफ्टिंग करते हुए वॉल रैपिड (चट्टान, जहां तेज रफ्तार में आकर पानी टकराता है) में राफ्ट टकराने के बाद पलटने से हुई. हफ्ते भर में वॉल रैपिड पर एक के बाद तीन हादसे हुए.

15 मार्च को हुए एक अन्य हादसे में अर्जेंटीना के 32 वर्षीय पयर्टक की भी मौत हो गई. क्या ये मौतें राफ्टिंग से जुड़ी सुरक्षा और सावधानियों पर सवाल खड़े करती हैं? जाहिर है, सरकार और राफ्टिंग व्यवसायी इसे एडवेंचर स्पोर्ट्स के जोखिम से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं हैं. अप्रशिक्षित राफ्टिंग गाइड और हेल्पर, राफ्टिंग के लिए आने वाले महानगरों के दुस्साहसी नौजवान, राफ्टिंग कारोबारियों का लालच और सरकार की बेपरवाही इससे जुड़े जोखिम को बढ़ा रहे हैं.

ऋषिकेश को रिवर राफ्टिंग का मक्का कहा जाता है और यहां हर साल हजारों एडवेंचर लवर राफ्टिंग के लिए पहुंचते हैं. लेकिन न तो सरकार अब तक चेती है और न राफ्टिंग कारोबारी सुरक्षा के पूरे उपाय कर पाए हैं. अप्रशिक्षित और युवा गाइडों के साथ कामचलाऊ सुरक्षा उपकरणों के सहारे देसी-विदेशी पर्यटकों की जान को खतरे में डाला जा रहा है. गर्मी का मौसम शुरू होते ही एक बार फिर पर्यटक व्हाइट वॉटर राफ्टिंग के लिए आ रहे हैं और फिर उनकी जान जोखिम में है.

उत्तराखंड राज्य गठन के 12 साल बीत जाने के बाद भी यहां राफ्टिंग के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है. सब कुछ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 25 सितंबर, 1999 को रिवर राफ्टिंग के लिए जारी शासनादेश के आधार पर ही चल रहा है. जबकि एक दशक में रिवर राफ्टिंग का कारोबार कहीं आगे निकल चुका है.

साहसिक पर्यटन राफ्टिंग समिति के सचिव, 29 वर्षीय अनुराग पयाल कहते हैं, ‘‘1984-85 में जब ऋषिकेश में राफ्टिंग का काम शुरू हुआ, तब यहां सिर्फ 2-3 कंपनियां थीं और सिर्फ विदेशी पर्यटक ही राफ्टिंग करने के लिए आते थे. लेकिन आज यहां 140 रजिस्टर्ड राफ्टिंग कंपनियां और करीब 500 राफ्टिंग बुकिंग काउंटर हैं.’’ राफ्टिंग की हरसत इसलिए भी एडवेंचर लवर्स को खींच लाती है क्योंकि यहां आठ महीने का सबसे लंबा राफ्टिंग सीजन होता है.

कौडिय़ाला-ऋषिकेश का 40 किमी लंबा राफ्टिंग एरिया और 4-5 ग्रेड की तेज जलधाराएं इस आकर्षण को बढ़ाती हैं. ऋषिकेश में 1 सितंबर से 30 जून तक राफ्टिंग सीजन होता है. इस दौरान यहां एक लाख से अधिक पर्यटक रिवर राफ्टिंग के लिए पहुंचते हैं. बेगा बोर्ड एडवेंचर के डायरेक्टर 40 वर्षीय नरेंद्र नेगी कहते हैं, ‘‘सीजन शुरू होने के पहले तीन महीने वीकेंड में 8 से 10,000 टूरिस्ट राफ्टिंग के लिए आते हैं.’’

राफ्टिंग के काम में लगी 140 रजिस्टर्ड कंपनियों में से 40 कंपनियां दिल्ली-एनसीआर के बड़े कारोबारियों की हैं. ऋषिकेश में 500 से अधिक राफ्ट चलते हैं. पर्यटन और वन विभाग संयुक्त रूप से राफ्ट चलाने का लाइसेंस देते हैं. लेकिन लाइसेंस देने की सुस्त प्रक्रिया और राफ्टिंग की मॉनिटरिंग का कोई ढांचा न बन पाने के कारण ही पर्यटकों की जान जोखिम में है.

श्रीनगर निवासी और राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. अरुण कुकसाल कहते हैं, ‘‘देवभूमि होने के कारण देवता ही यहां पर्यटकों की जान बचा रहे हैं.’’ ऋषिकेश में राफ्टिंग के नियमों का खुला उल्लंघन हो रहा है. कुकसाल सवाल करते हैं कि जो लड़के राफ्टिंग गाइड हैं, उन्होंने कहां ट्रेनिंग ली है? माउंटेन गाइड बनने के लिए भी पर्वतारोहण का बेसिक, एडवांस, सर्च ऐंड रेस्क्यू कोर्स करना जरूरी होता है. साथ ही माउंटेन गाइड का कोर्स करना भी जरूरी है.

अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक, राफ्टिंग गाइड के लिए भी बेसिक राफ्टिंग और वॉटर सर्च ऐंड रेस्क्यू जैसे कोर्स जरूरी हैं, लेकिन यहां राफ्टिंग गाइड के लिए प्रशिक्षण की कोई पहल अब तक नहीं हुई है. नेगी कहते हैं कि यहां ऐसे लड़के रोजगार के लिए गाइड बन रहे हैं, जिनके पास बुनियादी प्रशिक्षण भी नहीं है. अकुशल श्रमिक होने के कारण उनका पारिश्रमिक भी कम होता है.

राफ्टिंग कंपनियां 16 से 32 किमी राफ्टिंग के लिए प्रति फेरा एक आदमी से 400-1,000 रु. वसूल करती हैं. प्रत्येक राफ्ट में सिर्फ सात लोगों को बिठाने की मंजूरी है, जबकि ओवरलोडिंग कर 10-12 लोग आसानी से बिठाए जाते हैं. एक कंपनी के पास कम-से-कम दो राफ्ट हैं. 15 से ज्यादा ऐसी कंपनियां हैं, जिनके पास औसतन 10 राफ्ट हैं. सीजन में प्रति राफ्ट दो फेरे लगाना सामान्य बात है. ऐसे में इन कंपनियों का अर्थशास्त्र बेहतर समझा जा सकता है. दो राफ्ट वाली छोटी कंपनी भी केवल दो फेरे लगाने पर न्यूनतम 5,000 रु. की कमाई कर लेती है.

कमाई ने कारोबार की होड़ को कई गुना बढ़ा दिया है. इस वक्त जहां 140 कंपनियां राफ्टिंग के कारोबार में लगी हैं, वहीं मई, 2010 के बाद एक भी नई राफ्टिंग कंपनी को सरकार ने अनुमति नहीं दी है. पर्यटन सचिव उमाकांत पंवार कहते हैं, ‘‘सरकार राफ्टिंग को लेकर नई गाइडलाइंस को अंतिम रूप दे रही है. इसके बाद ही नई कंपनियों को इजाजत दी जाएगी.’’ नई कंपनियों पर सरकार की आपत्ति यह है कि उनके पास ट्रेंड गाइड नहीं हैं, जबकि पंवार के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जो कंपनियां अभी काम कर रही हैं, उनके गाइडों ने कहां से प्रशिक्षण लिया है.

एक तरफ माउंटेनियरिंग गाइड बनने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक ने अनेक विश्वस्तरीय संस्थान खोले हैं, वहीं राफ्टिंग गाइड बनने के लिए शॉर्टकर्ट चुना है. जिस हेल्पर के सिर पर राफ्टिंग एसोसिएशन ने हाथ रख दिया, वह गाइड हो गया. वर्तमान नियम के मुताबिक आवेदन करते समय राफ्टिंग कंपनी को अपने उपकरणों के ब्यौरे के साथ ही दो राफ्टिंग गाइडों और हेल्परों का ब्यौरा भी देना होता है. यह ब्यौरा राफ्टिंग एसोसिएशन, वन विभाग और स्थानीय पर्यटन अधिकारियों से प्रमाणित होता है.

सरकार ने तो राफ्टिंग गाइड प्रशिक्षण की कोई पहल नहीं की लेकिन इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल राफ्टिंग आउटफिटर्स (आइप्रो) ने गाइडों को प्रशिक्षित करने का अभियान चलाया है. मार्च, 2013 के तीसरे हफ्ते में दो दिनों का ट्रेनिंग कैंप चलाकर आइप्रो ने गाइडों को गाइड मैनर के साथ ही रिस्क मैनेजमेंट की भी ट्रेनिंग दी. आइप्रो की अध्यक्ष और 1987 से राफ्टिंग कारोबारी किरण भट्ट टोडरिया कहती हैं, ‘‘हम तो अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कारोबार बढ़े और कारोबार तभी बढ़ेगा जब हमारे गाइड अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से होंगे. गाइडों को हम मेडिकल हेल्प और रेस्क्यू ट्रेनिंग भी देने जा रहे हैं.’’

गाइड बनने का अब तक का पैटर्न यह रहा है कि कुछ महीने तक किसी दूसरे गाइड के साथ हेल्पर रहने के बाद कंपनियां उसे अपनी राफ्ट में गाइड रख लेती हैं. नए गाइड पुराने के मुकाबले सस्ते भी होते हैं. साहसिक पर्यटन राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष धर्मेंद्र नेगी इसे बुरा नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि यह गुरु-शिष्य परंपरा जैसा है, जहां सीनियर अपने जूनियर हेल्परों को गाइड का काम सिखाते हैं. लेकिन हकीकत में उन गुरुओं ने भी कभी राफ्टिंग गाइड की ट्रेनिंग नहीं ली है. कई गाइड तो इस बात को स्वीकार भी करते हैं.

ट्रांस हिमालया कंपनी के गाइड 18 वर्षीय प्रमोद ढौंडियाल कहते हैं, ‘‘मैं अकेले ही आठ लोगों को अपनी राफ्ट में ले जाता हूं. मैंने ट्रांस हिमालया कंपनी में ही तीन-चार महीने ट्रेनिंग ली है. कभी कोई प्रोफेशनल राफ्टिंग ट्रेनिंग नहीं ली है.’’ ऐसी ही एक एडवेंचर कंपनी में बतौर राफ्ट हेल्पर काम कर रहा नेपाली युवक 20 वर्षीय प्रकाश हेल्पर बनने से पहले कभी राफ्ट पर बैठा तक नहीं था. और कुछ महीने बतौर हेल्पर काम करने के बाद अब वह गाइड बन जाएगा. इन दोनों युवकों को प्रतिमाह क्रमश: 5,000 रु. और 2,000 रु. वेतन मिलता है. साफ  है कि कंपनियां पैसा बचाने के लिए भी कम अनुभवी युवकों को गाइड रख रही हैं. इस समय ऋषिकेश में तकरीबन 15,000 लोग राफ्टिंग के कारोबार से जुड़े हैं, इसलिए यह जरूरी हो गया है कि इससे जुड़े सुरक्षा उपायों को गंभीरता से लिया जाए. नहीं तो मुमकिन है कि देसी सैलानियों के साथ ही विदेशी पर्यटक भी गंगा की मचलती धाराओं के लुत्फ से तौबा कर लें.

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