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हम क्यों न डेंट-पेंट करें?

छेड़छाड़ बलात्कार की तरह ही घृणित, निंदनीय है; औरतों के प्रति असम्मान मर्दानगी का सुबूत कतई नहीं. औरतों को छोटा दिखाकर आप खुद बड़ा महसूस नहीं कर सकते.

अपडेटेड 21 जनवरी , 2013

राजधानी दिल्ली में 23 साल की युवती के साथ बलात्कार के पीछे छुपे दुस्साहस और बेशर्मी ने बता दिया है कि हम कैसी हद दर्जे की क्रूरता के शिकार हो सकते हैं. पर इस घोर अंधेरे से रोशनी की एक किरण भी निकली है. इसने लोगों खासकर महिलाओं की युवा आबादी को झकझौर दिया.

अरसे से हमारी पीढ़ी से कहा जा रहा था, क्या पहनो, क्या करो, कैसे करो. हम सुरक्षित कैसे रह सकते हैं, हमीं जाने. पर अब मांओं को हमें करने-न करने की बात बताने की बजाए बेटों को बताना शुरू करना चाहिए कि वे महिलाओं का सम्मान करें. मर्दों और समाज की मानसिकता बदलनी ही होगी. औरतों को कहा गया देवी लेकिन बर्ताव उनके साथ दूसरे दर्जे के नागरिक से भी बदतर किया गया. कभी-कभी तो उन्होंने पशुवत व्यवहार झेला. कानून बदलें पर उससे ज्यादा सोच में बदलाव की जरूरत है.

न तो लड़की कोई बोझ है और न ही औरत मांस का एक टुकड़ा. हमारी पीढ़ी की महिलाएं यह मानते हुए बड़ी हुई हैं कि स्त्री और पुरुष बराबर हैं. पुरुषों को इसे मानना होगा. जो प्रतीक पुरुष हैं, उनकी बात सुनी जानी चाहिए. पुरुषों को इस मामले में उदाहरण पेश करना होगा. उन्हें अपने दूसरे भाइयों को बताना चाहिए कि औरतों के खिलाफ हिंसा को कतई माफ नहीं किया जा सकता. यह भी कि छेड़छाड़ बलात्कार की तरह ही घृणित,  निंदनीय है; औरतों के प्रति असम्मान मर्दानगी का सुबूत कतई नहीं. औरतों को छोटा दिखाकर आप खुद बड़ा महसूस नहीं कर सकते.

उस लड़के के बारे में सोचिए, जो लड़की के साथ बस में था. वह सचमुच हीरो है. लड़की को बचाने के लिए उसने अपनी तरफ से उस वक्त तक कोशिश की जब तक उसका बस चला. बलात्कार के मुकदमे के दौरान हर दिन उसे फिर-फिर उसी सदमे का अनुभव होगा. उसे बाकी जिंदगी इस संत्रास के साथ जीनी पड़ेगी. जो इस दुविधा में फंसे हैं कि किसे अपनाएं, बाप-दादाओं से सीखे परंपरागत व्यवहार-बर्ताव को या उसे जिसकी आज का समाज उनसे अपेक्षा रखता है, तो ऐसे पुरुषों को समझना होगा कि उन्हें क्या सही लगता है. उन्हें यह समझने की जरूरत है कि वे साथियों के दबाव के सामने उठ खड़े हो सकते हैं, वे अकेले खड़े हो सकते हैं. यही चीजें तो किसी को हीरो बनाती हैं.

भारत की युवतियां परंपरा और आधुनिकता के बीच का एक कारगर रास्ता निकालने की कोशिश कर रही हैं. हम महिलाएं धार्मिक स्थलों पर जाने पर सिर ढंक लेती हैं, किसी बड़े-बुजुर्ग के कमरे में आने पर हम खड़ी हो जाती हैं, बच्चे होते हैं तो उनकी बेहतर देखभाल करती हैं. पर इसका मतलब यह नहीं कि हम रात में अपनी पसंद के कपड़े पहनकर, अपनी पसंदीदा जगह पर, पसंद के लोगों के साथ नहीं जा सकतीं. हमारा मन हो तो हम क्यों न डेंट-पेंट करें? टीवी पर ठुमका क्यों नहीं लगाएं. आधी रात को बाहर क्यों नहीं जा सकतीं? ब्वॉयफ्रेंड क्यों नहीं रख सकतीं? सियासी जमात हमें हमारी सीमा न बताए.

ऐसे में महिलाओं का सड़कों पर आना और गला फाड़कर चिल्लाना कोई हैरत की बात नहीं. वे उन्हीं सड़कों पर अपना हक जता रही हैं जिन पर चलने में उन्हें डर लगता था. हमें हराना या हमारे जोश को ठंडा करना आसान नहीं. हम गांधी की बेटियां हैं. हमें पता है कि नारीवादी और स्त्रियोचित कैसे हुआ जाता है. हमने अपने को वही बनाया है, जो हम होना चाहती हैं. हम अपने को मर्दों की सोच के अनुरूप बनाएं? क्यों भला?

समाज बदलने पर उसके अगुआ लोगों को भी उसके अनुरूप बदलना चाहिए. उन्हें समझना होगा कि हमारे दिलों में उठे गुबार से कैसे निबटा जाए. सभी पार्टियों के लोगों को इसके लिए एक साथ बैठना होगा और इस बदलाव को समझना होगा. यह नया हिंदुस्तान है. ऐसा हिंदुस्तान जिसमें कोई भी, कुछ भी कर सकता है. मैं एक हिंदुस्तानी होने पर कतई शर्मिंदा नहीं हूं पर हां, मुझे उस आबादी का हिस्सा बने रहने में जरूर शर्म आती है जो हिंदुस्तान को शर्म से डुबोए.

हमें सीखना होगा कि हर तरह की लैंगिक हिंसा के बारे में किस तरह से बात की जाए. पुरुषों को सीखना होगा कि वे स्त्री को हर तरह से अपनी बराबरी का हक दें. एक इंटरटेनर होने के नाते हमारी अक्सर आलोचना की जाती है. आरोप लगता है कि हम आइटम सांग करते हैं, कामुकता पेश करते हैं और हिंसा को बढ़ावा देते हैं. पर यह समझना होगा कि फिल्म किसी पार्टी का पैमफ्लेट नहीं, कोई गाना सामाजिक बदलाव का घोषणापत्र नहीं. हम ऐसे लोकतंत्र में रहते हैं जहां हर किसी को अभिव्यक्ति का अधिकार है, जब तक कि वह दूसरे को नुकसान न पहुंचाता हो.

समाज को इससे निबटना सीखना होगा. दहेज और शराब पीकर गाड़ी चलाने जैसी अन्य सामाजिक कुरीतियों का काफी हद तक निवारण किया गया है. मुझे यकीन है कि महिलाओं के प्रति होने वाले सबसे जघन्य अपराधों के मामले में भी ऐसा ही होगा.

लेखिका एक जानी-मानी अभिनेत्री हैं

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