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भारत @2025: देश सेहतमंद बने, इसकी शुरुआत कहां से और कैसे हो सकती है?

स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में हमारी चुनौतियों का पैमाना विशाल है. 'स्वस्थ और विकसित भारत' के लिए मुल्क को टेक्नोलॉजी के रचनात्मक उपयोग, प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन, बिग डेटा और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर कहीं ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा

नई प्रतिबद्धता की जरूरत है; इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
नई प्रतिबद्धता की जरूरत है; इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
अपडेटेड 29 जनवरी , 2025

वर्ष 2025 भारत के सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की दिशा में खासा अहम लम्हा है. इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को निर्धारित किए हुए एक दशक बीत चुका है, और हमारी अब तक की प्रगति का सफर दरअसल निरंतर चुनौतियों की दास्तान है. हमने मृत्यु दर को कम करने और स्वास्थ्य सेवा का विस्तार करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. लेकिन गैर-संचारी रोगों से होने वाली असामयिक मौतों में कमी लाने और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पक्का करने जैसे एसडीजी-3 के मुख्य लक्ष्यों को पूरा करने के लिए नवाचारी समाधानों और नई प्रतिबद्धता की जरूरत है.

हम 2025 में स्वास्थ्य सेवा के जिस परिदृश्य का सामना करेंगे वह पहले से कहीं ज्यादा जटिल है और यह बीमारियों के बढ़ते बोझ का संकेत देता है जो 2047 में 'विकसित भारत' की हमारी स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को आकार देगा. हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं—आजादी के बाद से बच्चा और जच्चा मृत्यु दर में तीन से चार गुना सुधार हुआ है, 90 फीसद से ज्यादा आबादी सामान्य बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण करा चुकी है और जीवन प्रत्याशा दोगुनी होकर 70 वर्ष हो गई है. हालांकि, हम रोगों के बढ़ते बोझ का सामना कर रहे हैं जिस पर फौरन ध्यान देने और नए ढंग से उसके समाधान ढूंढ़ने की जरूरत है.

कुल मौतों में से 66 फीसद एनसीडी (गैर-संचारी रोगों) से होती हैं. यह दर 2000 में 45 फीसद थी, जिसमें सर्कुलेटरी सिस्टम की बीमारियां चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मौतों का 32 फीसद हिस्सा हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों का द्वंद्व समझने में मदद करते हैं. ये कुपोषण से परे बढ़ते मोटापे और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी के रूप में बच्चों तक में दिखाई दे रही हैं. यह रुझान खासकर शहरी क्षेत्रों में साफ दिखता है, जहां बदलती जीवनशैली और आहार पैटर्न ने 30 और 40 वर्ष आयुवर्ग के लोगों में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी बीमारियों और यहां तक कि कुछ कैंसर के समय से पहले होने का अंदेशा बढ़ा दिया है.

जलवायु परिवर्तन देश भर में रोगों के पैटर्न को मौलिक रूप से बदल रहा है. रोगवाहक ठंडे हिमालयी क्षेत्र समेत अब पहले से अप्रभावित क्षेत्रों में जीवित रहते हैं, जो मलेरिया, डेंगू और जापानी इन्सेफेलाइटिस को नए समुदायों में ला रहे हैं. इसका प्रभाव मौसमी पैटर्न में बदलाव में साफ है—डेंगू के मामले, जो परंपरागत रूप से सितंबर में चरम पर होते थे, अब नवंबर में चरम पर हैं क्योंकि देश के ज्यादातर इलाके लंबी अवधि के लिए इन मच्छरों के ब्रीडिंग ग्राउंड बन गए हैं. रोग पैटर्न में यह बदलाव जानवरों से मनुष्यों में वायरस संचरण के बदलते पैटर्न के साथ मिलकर रोग निगरानी और नियंत्रण के लिए नई चुनौतियां पैदा करता है और साथ ही भविष्य की महामारियों के खतरे को बढ़ाता है. भारत की बुजुर्ग आबादी 2047 तक (तब तक 21 फीसद हो जाएगी) के साथ मिलकर महामारियों की ट्रैजेक्टरी हमारे समग्र रोग बोझ को काफी हद तक बढ़ा देगी.

हमारी स्वास्थ्य सेवा चुनौतियों का पैमाना बहुत बड़ा है. भारत को 2047 तक 34 लाख फिजीशियन की जरूरत होगी, जो कि फिलहाल प्रति 10,000 लोगों पर 0.7 फिजीशियन से बहुत ज्यादा है. इस बदलाव को नर्सों और आशा कार्यकर्ताओं समेत देखभाल करने वालों की एक बड़ी सेना के जरिए मदद की जरूरत होगी, ताकि स्वास्थ्य सेवा अंतिम छोर तक पहुंच सके. बुनियादी ढांचे की मांग भी उतनी ही चुनौतीपूर्ण है—फिलहाल प्रति 1,000 आबादी पर 1.3 बेड से दोगुना यानी 3 करने के लिए 24 लाख अतिरिक्त अस्पताल बिस्तरों की जरूरत है.

भारत को 'स्वस्थ और विकसित भारत' का अपना विजन साकार करने के लिए इन कमियों के समाधान खोजने, निरंतर कौशल विकास की मांग पूरी करने और उपचारात्मक से निवारक स्वास्थ्य सेवा दृष्टिकोणों में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए रचनात्मक होना होगा. इसमें टेक्नोलॉजी का इनोवेटिव उपयोग, पूर्वानुमानित सटीक चिकित्सा या प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन, बिग डेटा एनालिटिक्स और सार्वजनिक-निजी भागीदारी वगैरह उत्प्रेरक का काम करेंगे.

पहुंच बढ़ाने की जरूरत

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बदलाव के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करता है. यह प्रदाताओं को इंटरऑपरेटिबिलिटी, यूनीक हेल्थ आइडी, मानकीकृत रजिस्ट्री और यूनिफाइड इंटरफेस के जरिए समाधान तैयार करने में सक्षम बनाता है. इस आधार पर आरोग्य सेतु और कोविन जैसे रोग निगरानी ऐप को आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से जोखिम वाली आबादी में गैर-संचारी रोग का खतरा भांपने के लिए तैनात किया जा सकता है. यह डिजिटल ढांचा रोकथाम को बढ़ावा देने के लिए बिग डेटा एनालिटिक्स को सक्षम कर सकता है, जो भारत के बढ़ते रोग बोझ के प्रबंधन के लिए जरूरी है. जुटाए गए आंकड़े भारत से जुड़े जोखिम वाले पहलुओं की पहचान करने के लिए एआइ टूल्स को ज्यादा ताकतवर बना सकते हैं, आबादी विशेष के इलाज के लिए अनुसंधान को बढ़ावा दे सकते हैं. साथ ही संसाधन तैनात करने और केयर नेटवर्क के विस्तार का मार्गदर्शन कर सकते हैं.

इस सेट-अप का भरपूर इस्तेमाल करने को स्वास्थ्य सेवा प्रदाता ई-आइसीयू और डिजिटल ऑपरेशन थिएटर जैसे उपायों को आखिरी छोर तक पहुंचाने में उपयोग कर सकते हैं. यह ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, जहां 65 फीसद आबादी रहती है, लेकिन वहां देश के 40 फीसदी ही अस्पताल हैं. ग्रामीण इलाकों में परस्पर जुड़े प्लेटफॉर्म वर्चुअल हेल्थकेयर डिलिवरी को मजबूत कर सकते हैं. ऐसे डिजिटल उपाय खासकर टियर 2 और 3 शहरों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को दूर करने में मदद करने के साथ पहुंच को लोकतांत्रिक बनाते हैं. टियर 1 शहरों के 1.5 की तुलना में टियर 2 और 3 शहरों में बेड अनुपात प्रति 1,000 आबादी पर 0.5 है. इसका असर पहले से ही टीबी स्क्रीनिंग जैसे कार्यक्रमों में दिखाई दे रहा है, जहां एआइ-संचालित इमेजिंग उपकरण दूरदराज के क्षेत्रों में रेडियोलॉजिस्ट की कमी को दूर कर रहे हैं, निदान और उपचार की शुरुआत में तेजी ला रहे हैं. एआइ के साथ सटीक चिकित्सा का यह मेल प्रीवेंटिव हेल्थकेयर में अगले लक्ष्य की ओर इशारा करता है, जो भारत की बढ़ती गैर-संचारी रोग चुनौती के प्रबंधन के लिए अहम है.

प्रिसीजन मेडिसिन

आनुवंशिक परीक्षण, फेनोमिक्स (जीव के जीनोम में उसके फेनोटाइप या लक्षणों का अध्ययन) और एआइ के मेल से प्रिसीजन मेडिसिन के जरिए व्यापक स्वास्थ्य पत्रियां बनाई जा सकती हैं—हर व्यक्ति की सेहत की कुंडली, जो डॉक्टरों और रोगियों की फैमिली हेल्थ हिस्ट्री को बीमारी की रोकथाम के सक्रिय टूल में बदल दे. आनुवंशिक प्रवृत्तियां और आबोहवा के जरिए उनमें होने वाले बदलाव, इसे समझने से स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को समझ में आ जाता है कि जीवनशैली में बदलाव, एहतियाती दवाओं और स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल वगैरह के जरिए रोगियों को लंबे समय तक कैसे रोगमुक्त रखा जाए.

दिल के रोगों कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के मामले में इस नजरिए का अहम रोल है. पहले ही रोगों की पहचान करके, प्रिसीजन मेडिसिन वक्त रहते इलाज को मुमकिन बनाती है, जिससे हार्ट अटैक जैसी गंभीर घटनाओं को रोका जा सकता है और कैंसर का पता लगाया जा सकता है. कैंसर के मामले बढ़ने के अनुमान के साथ पूर्वानुमानित प्रिसीजन मेडिसिन बेहतर नतीजा और ज्यादा मैनेजेबल हेल्थकेयर दोनों में मदद कर सकती है. एडवांस्ड एनालिटिक्स इस मायने में भी मदद कर सकता है कि किसी आबादी विशेष के लिए किस तरह के उपायों की दरकार है.

स्वास्थ्य सेवा क्षमता का निर्माण

एक ओर जहां टेक्नोलॉजी और प्रिसीजन मेडिसिन स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के कायापलट के लिए शक्तिशाली टूल प्रदान करते हैं, वहीं उनका प्रभाव कुशल पेशेवरों पर निर्भर करता है जो इन नवाचारों का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं. भारत अपने मेडिकल कॉलेजों और अनुसंधान केंद्रों के नेटवर्क का विस्तार करने के साथ ही देश के विकसित होते रोग पैटर्न के साथ तालमेल बिठाकर भविष्य के कार्यबल को तैयार कर रहा है. ऐसे में वैश्विक मानकों के अनुरूप स्वास्थ्य देखभाल करने वालों की संख्या बढ़ाना महत्वपूर्ण है.

क्वालिटी हेल्थकेयर का आकलन करने के लिए उसका मानकीकरण जरूरी है. भारत के ज्यादातर अस्पताल छोटे या मध्यम दर्जे के हैं और उनमें से केवल 10 फीसद ही नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स ऐंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एनएबीएच) से मान्यता प्राप्त हैं. छोटे अस्पतालों का डिजिटल स्वास्थ्य मानकों को अपनाना एनएबीएच-ग्रेड देखभाल की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. जब सुविधाएं मानकीकृत डिजिटल प्रोटोकॉल और सिस्टम को एकीकृत करती हैं, तो वे बेहतर गुणवत्ता बेंचमार्क की ओर व्यवस्थित कदम उठाती हैं, जिससे रोगी देखभाल में सुधार करते हुए मान्यता प्राप्त करने का रास्ता खुलता है.

बड़े स्वास्थ्य सेवा प्रदाता कौशल वृद्धि कार्यशालाओं, प्रोटोकॉल शेयरिंग और गुणवत्ता सुधार पहलकदमियों के जरिए छोटे और मध्यम आकार के अस्पतालों के साथ सहयोग करके बदलाव ला सकते हैं. हालांकि इससे छोटे अस्पतालों को तुरंत एनएबीएच मान्यता नहीं मिल सकती, लेकिन इससे भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिए मानकीकृत देखभाल डिलिवरी का आधार तैयार हो जाएगा.

आगे की राह

एक ओर सरकार-स्वास्थ्य सेवा इनोवेटर पार्टनरशिप से व्यवस्थागत बदलाव को बढ़ावा मिलता है, वहीं एहतियाती उपायों में नागरिकों की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. वे भारत के लोग डिजिटल स्वास्थ्य टूल्स और प्रीवेंटिव केयर को अपनाने के साथ ही एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय भागीदार बन रहे हैं. स्वास्थ्य सेवा में निष्क्रिय रूप से सेवा हासिल करने वाले से सक्रिय प्रतिभागियों की ओर यह बदलाव सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और 'विकसित भारत' के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अहम होगा. इसके मद्देनजर 2025 स्वास्थ्य सेवा उत्कृष्टता की ओर भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण साल बन जाएगा. 

डॉ. नरेश त्रेहन

नरेश त्रेहन

डॉ. नरेश त्रेहन मेदांता के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं

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