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प्रधान संपादक की कलम से

मरे हुए कुछ नहीं बताते लेकिन लगता है, उनके स्मार्टफोन भेद खोल देते हैं. उस वक्त सुरक्षा बल उमर फारूक का संबंध पुलवामा हमले से नहीं जोड़ पाए थे.

बालाकोट की अंतर्कथा
बालाकोट की अंतर्कथा
अपडेटेड 9 सितंबर , 2020

अरुण पुरी

हम पिछले पांच महीने से महज चार तरह की खबरों से ही घिरे हुए हैं. ये हैं कोरोना महामारी, लद्दाख में एलएसी पर चीन से टकराव, बैठती अर्थव्यवस्था और सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर उठा विवाद. ये सभी बुरी खबरें हैं, और सुर्खियों में बनी हुई हैं क्योंकि इनका कोई हल नहीं निकल पाया है. इस अंक में, हम इन चारों से हटकर आपके सामने ऐसी जोरदार स्टोरी ला रहे हैं, जिसमें काफी प्रगति हुई है.

14 फरवरी 2019 वह तारीख है, जो हमेशा काले अक्षरों में दर्ज होगी. सिर्फ इसलिए नहीं कि एक फिदायीन ने अपनी विस्फोटकों भरी कार पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले में दे मारी और 40 जवान शहीद हो गए, बल्कि इसलिए भी कि इससे भारत और पाकिस्तान जंग की कगार पर पहुंच गए थे.

मौलाना मसूद अजहर के बनाए आतंकी गुट जैश-ए-मुहम्मद ने पुलवामा हमले का दावा किया था, जिससे महज 12 दिन बाद पाकिस्तान के खैबर पख्ततूनख्वा प्रांत के बालाकोट में जैश के एक आतंकी शिविर पर भारतीय जंगी विमानों ने जवाब में बम बरसाए. ऐसी कार्रवाई ऐसे दूसरे आतंकी हमलों के बाद कभी नहीं की गई थी, चाहे दिसंबर 2001 में भारत की संसद में हमला हुआ हो, या 2008 में मुंबई में आतंकी हमला.

यह खास बात थी न्न्योंकि यह पाकिस्तानी शह से होने वाले आतंकी हमलों के बारे में देश की नीति में बदलाव का सूचक था. पहली दफा भारत ने शांतिकाल में सीमा पार करके पाकिस्तान के भीतर हमला बोला था. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2019 के लोकसभा चुनावों की रणभेरी भी बना, जिसे एनडीए ने भारी बहुमत से जीत लिया.

हमले में धुआं बन गया फिदायीन आदिल अहमद डार तो एक प्यादा भर था. वह कार भी चिंदी-चिंदी हो गई. इसलिए जांच में आगे बढऩे के लिए मामूली सबूत ही हासिल थे. पुलवामा हमले के कई महीने बाद भी अनेक सवाल बने हुए थे. आखिर किसने डार को तैयार किया? बम बनाने वाला कौन था? कैसे विस्फोटक देश में लाया गया?

कौन उसके संगी-साथी थे? महीनों बीतते जा रहे थे और आरोप-पत्र कहीं नजर नहीं आ रहा था तो यह मानने की वजह थी कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) की जांच पहले के कई आतंकी हमलों की तरह ही अंधे मोड़ पर पहुंच गई है. आखिरकार 25 अगस्त को जांच एजेंसी ने मामले में 19 आरोपियों के खिलाफ 13,800 पन्नों का भारी-भरकम आरोप-पत्र दाखिल कर दिया. आरोप-पत्र किसी बेहद उलझी पहेली की तरह है जिसे एनआइए ने डीएनए से लेकर साइबर-फोरेंसिक विधा के जरिए एक सूत्र में पिरोया है.

इसके खुलासों में एक, बम बनाने वाले की पहचान मौलाना मसूद अजहर के भतीजे मुहम्मद उमर फारूक के रूप में की गई है. उसका बाप इब्राहिम अतहर, जो अजहर का बड़ा भाई है, काठमांडू से दिल्ली की इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या आइसी-814 को अपहरण करके कंधार ले जाने वाले आतंकियों में एक था.

एनआइए के आरोप-पत्र में इसका ब्यौरा है कि घूमंतू पाकिस्तानी आतंकवादी उमर फारूक ट्रेनिंग के लिए अफगानिस्तान गया और उसे बाद भारत में आकर घाटी में जैश की नींव रखी. वह पुलवामा आतंकी हमले के 43 दिन बाद मार्च 2019 में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारा गया.

मरे हुए कुछ नहीं बताते लेकिन लगता है, उनके स्मार्टफोन भेद खोल देते हैं. उस वक्त सुरक्षा बल उमर फारूक का संबंध पुलवामा हमले से नहीं जोड़ पाए थे. हालांकि छह महीने बाद एनआइए को उसके टूटे-फूटे सेलफोन के डेटा की कीमत पता चली. 

उन्नीस में सात आरोपी पाकिस्तानी हैं. हमारे लिए चिंता की बात यह है कि 12 भारतीय हैं और कई सरेआम काम करने वाले कामगार हैं जिन्होंने आतंकियों को पनाह दी और कार बम असेंबल करने के लिए घातक पदार्थों को खरीदा. यह जैश-ए-मुहम्मद के घाटी में ताकतवर नेटवर्क की डरावनी सचाई है और इसमें भविष्य में और आतंकी हमलों की आशंका छुपी हुई है.

एनआइए का आरोप-पत्र एक अहम नतीजे पर पहुंचता है. वह पाकिस्तानी फौज के तहत बड़े आतंकी नेटवर्क के पुख्ता सबूत मुहैया करता है. पाकिस्तानी फौज जैश-ए-मुहम्मद को 2014 में कबाडख़ाने से निकाल लाई, जब उसके रणनीतिक गुट लश्कर-ए-तैयबा पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया. अमेरिकी विदेश विभाग की आतंकवाद पर कंट्री रिपोर्ट, 2019 में जिक्र है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है.

पाकिस्तान फाइनेंशियल टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की सूची में बना हुआ है क्योंकि वह अपनी धरती से अभियान चलाने वाले आतंकवादियों पर कार्रवाई करने को इच्छुक नहीं है. यह वैश्विक एजेंसी अगले महीने तय करेगी कि पाकिस्तान को काली सूची में डाला जाए या नहीं. काली सूची में डालने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो सकती है, जैसा कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल ही में चेताया. मानो आतंकियों को पालने-पोसने में कोई ऐसा खतरा नहीं है.

हमारी आवरण कथा 'पुलवामा का बमसाज’ का फोकस हमले के मास्टरमाइंड उमर फारूक पर है कि उसने कैसे इसकी योजना बनाई और अंजाम दिया. यह एनआइए के खुलासे पर आधारित है. इसे ग्रुप एडिटोरियल डाइरेक्टर (पब्लिशिंग) राज चेंगप्पा ने लिखा है.

उम्मीद है कि एनआइए ने सीमा पार के आतंक के पैरोकारों के खिलाफ एकदम ठोस मामला तैयार किया है. हालंकि यह देखना होगा कि इससे जैश-ए-मुहम्मद के ताबूत में एक और कील गड़ता है या फिर पाकिस्तान में 26/11 के मास्टरमाइंड के खिलाफ मुकदमे की तरह ही यह भी लटकता रहता है. 

हम जब महामारी से लेकर आर्थिक मंदी और आक्रामक चीन जैसी नई समस्याओं से मुकाबिल हैं, पुलवामा साजिश याद दिला जाती है कि गोपनीय नेटवर्क हमारे देश को पटरी से उतारने की कोशिश में लगातार जुटे हुए हैं.

(अरुण पुरी)
 

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