छब्बीस सितंबर को बेंगलूरू में आयोजित इंडिया टुडे के 'राज्य की दशा-दिशा' कॉन्क्लेव में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने कहा, ''कर्नाटक लंबे समय से तकनीक को अपनाने और शासन का कायाकल्प करने में अग्रणी रहा है.'' वे राज्य की दशा और दिशा पर इंडिया टुडे और नील्सन के गहन अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट का हवाला देते हुए अपनी बात कह रहे थे. इस रिपोर्ट में राज्य के 30 जिलों में पिछले एक दशक में बुनियादी ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योग के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का आकलन किया गया है. भारतीय राज्यों की सामाजिक और आर्थिक सेहत का मूल्यांकन करने के मामले में पिछले 14 वर्षों से इंडिया टुडे की 'राज्य की दशा-दिशा' रिपोर्ट को एक भरोसेमंद मानक की पहचान मिल चुकी है. अगले वर्ष यहां विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुख्यमंत्री की ओर से आंकड़ों को राजनैतिक रंग देना स्वाभाविक ही है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने विस्तार से बताया कि उनकी नीतियां किस तरह महात्मा गांधी और बी.आर. आंबेडकर के आदर्शों से संचालित रही हैं.
उन्होंने आंकड़े पेश करके अपने बयान को तथ्यपूर्ण बनाने की कोशिश की. मिसाल के तौर पर उन्होंने बताया कि कर्नाटक में विकास के सभी संसाधनों का 24.1 प्रतिशत अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटित किया गया है. निवेश (पिछले 18 महीनों में 1,540 करोड़ रु. के प्रस्ताव आए हैं) को आकर्षित करने और रोजगार पैदा करने (कर्नाटक की 2 फीसदी की रोजगार दर राष्ट्रीय औसत 3.7 फीसदी से कम है) में राज्य के रिकॉर्ड का संकेत देते हुए सिद्धरामैया ने कहा कि उनकी विकास नीति का मुख्य जोर बुनियादी ढांचे में निवेश के साथ मानव पूंजी में निवेश से संतुलन बनाने पर था. उन्होंने कहा, ''सच पूछिए तो विकास का असली अर्थ सशक्तीकरण है.''
दिन भर चले कार्यक्रम में 28 वक्ताओं ने कर्नाटक के विकास और प्रगति पर चर्चा की. इनमें मंत्री आर.वी. देशपांडे, के.एल. जॉर्ज और प्रियांक खडग़े, राजनैतिक क्षेत्र के बड़े नेता राजीव गौड़ा और दिनेश गुंडू राव, उद्योगपति विक्रम किर्लोस्कर, व्यवसायी अनंत नारायणन, शरद शर्मा और जीवराजका, शिक्षाविद् मोहनदास पै और नितिन पै के अलावा सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गज गिरीश कारनाड, प्रकाश बेलावाडी, लेखिका प्रतिभा नंदकुमार और कलाकार श्रद्धा श्रीनाथ, श्रुति हरिहरन और प्रणीता सुभाष शामिल थे.
राज्य की औद्योगिक प्रगति के बारे में बोलते हुए देशपांडे का कहना था कि बुनियादी ढांचे की चुनौतियां विशेष रूप से बेंगलूरू जैसी जगहों में रहीं. उन्होंने स्वीकार किया कि ''बुनियादी ढांचे के निर्माण की गति औद्योगिक विकास की गति के मुकाबले धीमी रही. लेकिन हमारी सरकार इस क्षेत्र में काफी पैसा लगा रही है.'' हालांकि उन्होंने रोजगार के आंकड़ों को लेकर चिंताओं को खारिज कर दिया. उन्होंने बताया कि पिछले साढ़े तीन साल में राज्य में 14 लाख नौकरियां पैदा की गई हैं. उनके शब्द थे, ''कर्नाटक 7.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की गति से कहीं ज्यादा है. और निवेश आकर्षित करने के मामले में सभी राज्यों में यह चौथे स्थान पर है. जहां देश का निर्यात घटा है, वहीं कर्नाटक का निर्यात पिछले तीन वर्ष में बढ़ा है.'' उन्होंने बेंगलूरू में आइटी सेक्टर में हो रही छंटनी और मंदी को टालने की कोशिश की. उनका कहना था कि आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हैं.
इस मामले में मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन के अध्यक्ष मोहनदास पै ने उनका समर्थन किया. पै का कहना था कि ''नैस्कॉम कहता है कि आइटी सेक्टर 6-9 फीसदी की दर से बढ़ेगा. इस तरह की वृद्धि लोगों के बिना संभव नहीं है.'' उन्होंने यह भी कहा कि आइटी सेक्टर में वैश्विक निवेश निश्चित रूप से बढ़ेगा, जिससे नौकरियों के अवसर बढ़ेंगे. लेकिन पै ने कृषि के आंकड़ों पर जरूर चिंता जाहिर की. उनका कहना था कि वे चिंताजनक हैं क्योंकि ''50 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान मात्र 9 प्रतिशत है और यह केवल 3 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है.'' न उन्होंने कहा कि इसका हल उत्तरी कर्नाटक में त्वरित औद्योगिकीकरण में निहित है. कर्नाटक के कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव महेश्वर राव का दावा था कि राज्य सरकार की ओर से बाजारों का नेटवर्क तैयार करने की कोशिशों से पिछले तीन वर्षों में किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिली है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव डॉ. अशोक दलवई ने लागत घटाते हुए फसलों की उपज को बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ''हमें कम जमीन का इस्तेमाल करके उतना ही अनाज उगाने की कुव्वत पैदा करनी होगी जितना अभी हम पैदा कर रहे हैं, और अतिरिक्त जमीन को गैर-खाद्यान्न उत्पादन के लिए छोड़ देना चाहिए. इससे किसानों की आय में इजाफा होगा.'' यह बताते हुए कि पानी के अभाव के मामले में राजस्थान के बाद कर्नाटक दूसरे स्थान पर है, दलवई ने राज्य में खेती के तरीके को बदलने की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ''कर्नाटक के सूखे इलाकों में हमें गन्ना या कपास नहीं बल्कि बाजरा, अनार या आम पैदा करना चाहिए.''
कॉन्क्लेव में बेंगलूरू में बुनियादी ढांचे के संकट पर भी गर्मागर्म बहस देखने को मिली. मोटर ट्रैफिक पर अपने विचार व्यक्त करते हुए रंगमंच से जुड़े प्रकाश बेलावाडी का कहना था कि 'वाकिंग सिटी' में पैदल चलने की कोई जगह नहीं रह गई है. तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के सह-संस्थापक नितिन पै के साथ उनका भी सुझाव था कि सरकार को युद्ध स्तर पर मेट्रो और उपनगरीय ट्रेनों का काम पूरा करके और पार्किंग पर भारी शुल्क लगाकर इस समस्या को हल करना चाहिए. वरिष्ठ आर्किटेक्ट नरेश वी. नरसिम्हा ने शहर की श्झागदार झील्य की समस्या को कोई बड़ा संकट नहीं बताया. उनका कहना था कि नालियों में डिटरजेंट बहाने के कारण ही यह समस्या पैदा हुई है. ''समस्या यह है कि नाले पानी को ले जाकर झील में छोड़ते हैं. नालों का निर्माण बारिश के पानी के लिए था, लेकिन उनका दुरुपयोग हो रहा है.''
वक्ताओं ने कुछ रोचक आंकड़े भी पेश किए—कावेरी से भेजे गए 13.50 करोड़ लीटर पानी का 47 प्रतिशत हिस्सा रिसाव के कारण बर्बाद हो जाता है, मलिन बस्तियों की संख्या चार से बढ़कर 500 से ज्यादा हो गई है. उन्होंने कुछ हल भी सुझाए, जैसे कि लाइसेंसों पर रोक लगाना और पानी की सब्सिडी को खत्म करना. पै ने कहा, ''राजनेताओं को समझदारी भरे आर्थिक फैसले लेने चाहिए और उन्हें चुनावी रूप से आकर्षक भाषा में पेश करना चाहिए.''
एक अन्य चर्चा में अभिनेता और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित गिरीश कारनाड ने इस बात को खारिज किया कि कर्नाटक की संस्कृति खतरे में है. उन्होंने कहा, ''संस्कृति हमेशा खतरे में होती है और तभी वह विकास भी करती है.'' कन्नड़ भाषा को अनिवार्य बनाए जाने की मांग पर उन्होंने कहा कि समस्या को केवल एक भाषा के विकल्प तक सीमित नहीं कर देना चाहिए. उन्होंने कहा, ''कोई बच्चा कई भाषाएं सीख सकता है. कन्नड़ पढ़ाने का माध्यम हो सकती है लेकिन वह अंग्रेजी भी सीख सकता है. कर्नाटक सिनेमा के नए युग पर चर्चा करते हुए निर्देशक हेमंत एम. राव ने कहा कि कोई भी फिल्म जो पैसा कमाती है, वह 'कॉमर्शियल' होती है, चाहे वह मसाला फिल्म हो या कलात्मक फिल्म. उन्होंने कहा, ''मैं कहानी पेश करता हूं. मेरी फिल्म 100 करोड़ रु. की हो सकती है या एक करोड़ रु. की. लेकिन मैं अगर अच्छी कहानी पेश नहीं करता तो फिर संतुष्टि नहीं मिलती है.'' हालांकि राव का मानना था कि नए जमाने का सिनेमा इसलिए सफल है कि वह समाज का आईना पेश करता है लेकिन प्रणीता सुभाष ने कहा कि यह शहरी कन्नड़ आबादी के कारण सफल है, जिनकी पसंद को पहले कभी पूरा नहीं किया गया था. निर्देशक पवन कुमार ने कहा, ''हम शहरी फिल्में नहीं बनाना चाहते थे. एक खास दर्शक वर्ग को दिमाग में रखकर लंबे समय तक नहीं चला जा सकता.''
स्टार्ट-अप विषय पर आधारित सत्र में कर्नाटक के पर्यटन, सूचना प्रौद्योगिकी और बायो-तकनीकी मंत्री प्रियांक खडग़े ने कहा कि सरकार कभी-कभी स्टार्ट-अप के सामने शासन से संबंधित चुनौतियां रखती है. उन्होंने कहा, ''हमारी नीतियां लोगों से मिलने वाली जानकारियों पर आधारित होती हैं.'' इस बात पर पूरा भरोसा रखते हुए कि प्रतिभाओं, पर्यावरण और बाजार के कारण स्टार्ट-अप की संभावनाएं बढ़ेंगी, मिंत्रा-जबांग के सीईओ अनंत नारायणन ने मांग की कि सरकार को स्टार्ट-अप और इनोवेशन का अलग से एक मंत्रालय बनाना चाहिए.
ओला के संस्थापक पार्टनर प्रणय जीवराजका ने इस पहलू पर सहमति जताते हुए अपनी भी बात जोड़ी, ''जब स्टार्ट-अप की बात आती है तो भारत में हम नए निर्माण की एक ऊंची कक्षा में हैं.'' इंडियन सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट इंडस्ट्री राउंड टेबल के सह-संस्थापक शरद शर्मा ने कहा कि जीएसटी-संबंधित परेशानी असंगठित क्षेत्र को संगठित क्षेत्र में लाने की कीमत थी. उन्होंने कहा कि भारत को आर्थिक क्षेत्र में उसी गतिशीलता की जरूरत है जो शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में है. ''देश का भविष्य उसकी संगठित अर्थव्यवस्था में निहित है.''
कॉन्क्लेव में खुद को दूसरों से बड़ा दिखाने के क्षण भी देखने को मिले. कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव, भाजपा नेता मधु सूदन और जेडी-एस नेता रमेश बाबू ने राज्य की समस्याओं को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगाए. लेकिन राव ने उस वक्त एक नए राजनैतिक समीकरण की झलक पेश की जब उन्होंने कहा कि कांग्रेस जेडी-एस के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार है. राव ने कहा, ''अगर चुनावों के बाद गठबंधन की जरूरत हुई तो हम संभावनाओं को तलाशेंगे. हालांकि हम जेडी-एस पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि वे किसी भी दिशा में जा सकते हैं.''
किर्लोस्कर सिस्टम्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक विक्रम किर्लोस्कर ने उद्योगों को सहयोग देने, नीतियों में स्थायित्व और मददगार नौकरशाही के लिए सरकार की तारीफ की. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मंजूरी मिलने में जरूरत से ज्यादा समय लगता है. उनका कहना था, ''बुनियादी ढांचे से संबंधित कुछ समस्याएं हैं लेकिन शहर की हर समस्या के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है. सभी लोगों को मिलकर सहयोग करना चाहिए.'' उन्होंने कहा कि बेंगलूरू में बौद्धिक पूंजी और बुनियादी ढांचे ने टोयोटा के शहर में लाने में उनकी मदद की थी. उन्होंने कहा, ''हमें उस दिशा में गंभीर काम करने की जरूरत है.''

