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राजस्थान: फेसबुक से भड़की हिंसा

फेसबुक पर टिप्पणी से नागौर के मकराना में सांप्रदायिक हिंसा. मुहम्मद साहब पर टिप्पणी करने वाले आरोपी को जेल भेजा गया.

अपडेटेड 22 अप्रैल , 2013

यह बात हमेशा से सच रही है कि किसी चीज का फायदा है तो उससे जुड़े नुकसान भी हैं. बात उसके इस्तेमाल की होती है. हाल में राजस्थान के मकराना में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला. फेसबुक पर समुदाय विशेष पर की गई टिप्पणी के कुछ घंटों बाद मार्बलनगरी मकराना का मंजर ही बदल गया. सड़कों पर नारों की आवाजें गूंजने लगीं. बाजार बंद हो गए. आक्रामक भीड़ थाने पर पत्थर बरसाने लगी.

पुलिस की कई गाडिय़ों को आग के हवाले कर दिया गया. इस पूरे संघर्ष में दर्जनभर पुलिसकर्मी घायल हुए. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और हल्का लाठी चार्ज भी किया. वहीं विरोधियों को शांत करने आए उनके ही समाज के सरदारों पर जूते-चप्पल भी चले. पुलिस ने शांति समिति की बैठक बुलाई. मकराना के कलेक्टर अशोक भंडारी और पुलिस अधीक्षक ओमप्रकाश शर्मा ने आरोपी पर सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया. जैसे-तैसे देर शाम तक मामला शांत हुआ.Facebook

यह सारा हंगामा फेसबुक पर पोस्ट की गई एक टिप्पणी से खड़ा हुआ. हालांकि इस घटनाक्रम से पहले पुलिस नामजद रिपोर्ट के आधार पर मकराना के रहने वाले आरोपी चंद्रशेखर को अपनी गिरफ्त में ले चुकी थी. चंद्रशेखर उर्फ बबलू शर्मा शिवसेना हिंदुस्तान का पदाधिकारी है जिसने फेसबुक पर मुहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. पुलिस ने शर्मा पर अनर्गल टिप्पणी करने, धार्मिक भावनाएं भड़काने, क्षेत्र में अमन-चैन भंग करने को लेकर आइटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था. गौरतलब है कि प्रदेश में फेसबुक पर टिप्पणी से सांप्रदायिक बवाल होने का यह कोई पहला मामला नहीं था. इससे पहले डूंगरपुर में भी ऐसी एक टिप्पणी पर समुदाय विशेष के लोग सड़कों पर उतर आए थे.

इस घटनाक्रम से बाहर आकर देखें तो सोशल साइट फेसबुक पर जहां बड़ी संख्या में लोग जुड़ रहे हैं, वहीं असामाजिक तत्वों ने भी यहां पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) की मानें तो राजस्थान में साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहा है. इससे बड़ी बात क्या होगी कि देश के आइटी हब बंगलुरू के बाद दूसरा नंबर जोधपुर का आता है. अगर 2011 के आंकड़ों पर नजर डालें तो बंगलुरू में 18 और जोधपुर में साइबर अपराध के 15 मामले दर्ज हुए थे.

प्रदेश सरकार की ओर से पिछले बजट में साइबर अपराध रोकने के लिए साइबर थाने की घोषणा हुई थी जो अभी तक सिर्फ कागजों पर ही है, और इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. एसपी एससीआरबी शरत कविराज बताते हैं, ‘‘साइबर थाने के लिए मैनपॉवर और जरूरी संसाधनों की मांग के लिए लिखकर भेजा हुआ है.’’ कविराज की बात की गहराई को समझें तो साइबर थाने में अभी कुछ समय लगेगा. ऐसे में सारे मामले पुलिस को ही निपटाने होंगे.

दूसरी ओर, अगर देखें तो पुलिस थाने में साइबर अपराध दर्ज होने के बाद मामला पुलिस विभाग की गले की फांस बन कर रह जाता है. साइबर अपराधियों को ढूंढऩे के लिए कंसस्टेंसी सर्विस देने वाली जयपुर की कंपनी हाइक्यूब इंफोसेट के मालिक मुकेश चौधरी इसकी वजह कुछ इस तरह बताते हैं, ‘‘पुलिस को पहले तो अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान नहीं, तिस पर आइटी का ज्ञान नहीं, ऊपर से इनके पास संसाधन भी नहीं हैं.’’ चौधरी की बात में दम है. अब भला ऐसी कमजोरी के साथ पुलिस साइबर अपराधियों के पीछे किस तरह दौड़ पाएगी?

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