ग्वालियर मध्य प्रदेश का इकलौता ऐसा शहर है जहां थल सेना, वायु सेना, रक्षा अनुसंधान, बीएसएफ अकादमी और सीआरपीएफ के प्रतिष्ठान हैं. इस उपलब्धि पर शहर को गर्व है लेकिन इसकी वजह से उसे अपने विकास की बलि भी देनी पड़ रही है. दरअसल शहर का विस्तार होने से ये संस्थान शहर की सीमा में आ गए हैं और अपने आस-पास होने वाले निर्माण कार्यों पर आपत्ति जता कर काम को रुकवा देते हैं. इस वजह से रक्षा संस्थानों और सिविल प्रशासन के बीच बुरी तरह ठन गई है और कई विकास कार्य ठप पड़ गए हैं.
ताजा मामला मुरार सैन्य छावनी से लगे पिंटो पार्क इलाके का है. एक अप्रैल को नगर निगम के कर्मचारी सड़क को चौड़ा कर नई सीवर लाइन डाल रहे थे तभी सेना के अधिकारियों ने वहां पहुंचकर जेसीबी मशीन जब्त कर ली और निगम कर्मचारियों को बंधक बना लिया. उन्होंने निगम अधिकारियों के कहने पर कर्मचारियों और मशीन को तो छोड़ दिया लेकिन निर्माण कार्य को तत्काल रुकवा दिया. सैन्य प्रशासन का दावा है कि उनके इलाके की जमीन पर एनओसी के बिना निर्माण कार्य नहीं हो सकता जबकि निगम के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास हर जरूरी अनुमति है. निगम आयुक्त वेदप्रकाश कहते हैं, ''सेना ने गलत तरीके से काम रोका है. जरूरत पडऩे पर हम अदालत में जा सकते हैं. '' मुरार छावनी के कमांडर ब्रिगेडियर अजीत सिंह कहते हैं, ''निगम आवेदन दे, जिसे परीक्षण करके रक्षा मंत्रालय पहुंचाया जाएगा. वहां से एनओसी मिलने के बाद ही काम शुरू हो सकता है. ''
इससे पहले भी एक विकास कार्य को पूरा करने की खातिर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था. मामला एनएच-3 और एनएच-75 को जोडऩे के लिए 43 किमी लंबे बाइपास के निर्माण का था. सैन्य प्रशासन को निर्माण पर आपत्ति थी क्योंकि सड़क उनकी फायरिंग रेंज के पास थी. आपत्ति जताने के साथ सेना ने कुछ सुझाव भी दिए थे. एनएचएआइ के परियोजना निदेशक एस.के. मिश्र कहते हैं, ''हमने उनके सुझावों को माना और सेना को 18.5 करोड़ रु. के साथ जिला प्रशासन ने सौ हेक्टेयर जमीन भी उपलब्ध कराई लेकिन सेना एनओसी देने के बजाए फाइल दबाकर बैठ गई. '' इसका हल अदालत में जाकर निकला.
ऐसा ही एक विवाद रक्षा अनुसंधान, विकास एवं स्थापना (डीआरडीई) और स्थानीय प्रशासन के बीच चल रहा है. झांसी रोड और तानसेन रोड पर डीआरडीई की लेबोरेटरी है. डीआरडीई के पुराने गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक प्रतिष्ठान के इर्द-गिर्द 50 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य प्रतिबंधित है, लेकिन एक साल पहले इसका दायरा बढ़ाकर 200 मीटर कर दिया गया. डीआरडीई, ग्वालियर के निदेशक डॉ. एम.पी. कौशिक कहते हैं, ''जब लैब बनी थी तब आस-पास ज्यादा आबादी नहीं थी. लेकिन ऊंचे भवन बनने से सुरक्षा संबंधी खतरा महसूस किया गया. इसलिए यह कदम उठाना पड़ा.'' अब दिक्कत यह है कि इस दायरे में नगर निगम मुख्यालय का निर्माणाधीन दफ्तर तक आ गया. डीआरडीई ने दायरे में आने वाले अन्य कई निर्माण कार्य भी रुकवा दिए हैं.
निर्माण कार्यों को लेकर सेना और सिविल प्रशासन के बीच बढ़ती तनातनी को देखते हुए ग्वालियर के कलेक्टर पी. नरहरि ने सभी निर्माण एजेंसियों, थलसेना और वायु सेना के अधिकारियों के साथ एक बैठक भी की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. मुरार सैन्य छावनी के सात वार्ड हैं जिसमें तीन लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. निर्माण कार्यों पर लगातार लग रहे अवरोधों की वजह से ये लोग खराब सड़कों और सीवर की समस्या से जूझने को मजबूर हैं. छावनी बोर्ड के सातों वार्डों को नगर निगम में शामिल करने की कवायद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है.
सालभर पहले काउंटर मैग्नेट सिटी में सिविल एयरपोर्ट बनाने की कवायद शुरू हुई थी लेकिन वहां की 250 हेक्टेयर जमीन को सेना ने अपनी जमीन बताकर आपत्ति लगा दी थी. यह आपत्ति अभी विचाराधीन है. दो साल पहले एनसीसी महिला अफसर प्रशिक्षण अकादमी ने भी सड़क चौड़ीकरण के दौरान निगम की गाड़ियां जब्त कर लीं. लेकिन टाउन ऐंड प्लानिंग विभाग के संयुक्त संचालक वी.के. शर्मा कहते हैं, ''निर्माण कार्य की अनुमति कानूनों का अध्ययन करके ही मिलती है. ऐसे में सैन्य प्रशासन का आपत्ति लगाना गलत है.''

