अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के 467 हेक्टेयर में फैले विशाल कैंपस में हरे-भरे पेड़ों के बीच ब्रिटिश-मुगल स्थापत्य पर इतराते कैनेडी हॉल में छह अप्रैल को एक वाकया पेश आया. इसका अंदेशा विवि प्रशासन को था, लेकिन कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जमीरुद्दीन शाह को भरोसा था कि सेना के अपने तजुर्बे की बदौलत वे हालात से निबट लेंगे. उनका साथ देने के लिए दो पुराने फौजी प्रो वाइस चांसलर ब्रिगेडियर (सेवा निवृत्त) अमजद अली और रजिस्ट्रार ग्रुप कैप्टन (सेवानिवृत्त) शाहरुख शमशाद भी मौजूद थे.
लेकिन सेना का तजुर्बा छात्रों को अनुशासन में रखने में काम नहीं आया और छात्रों ने छात्रसंघ अध्यक्ष शहजाद आलम के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के खिलाफ नारेबाजी कर डाली. सारा बवाल यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मुद्दे के समर्थन में हुआ. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका छात्र औैर विश्वविद्यालय प्रशासन दोनों ही समर्थन करते हैं, इसके बावजूद विवाद को टाला नहीं जा सका.
कुलपति ने अगले दिन छात्रसंघ अध्यक्ष आलम को यूनिवर्सिटी से निलंबित कर दिया. यानी विवाद को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने छात्रों को एक औैर मसाला दे दिया. दरअसल सात अप्रैल को जो घटना सामने आई, वह यूनिवर्सिटी में लंबे समय से चल रही प्रशासन बनाम छात्रों की लड़ाई का एक नया अध्याय भर है. कुलपति के पदभार संभालने के बाद से ही शाह ने एएमयू को अनुशासन में ढालने के लिए कई कदम उठाए हैं. उनकी दलील है, ‘‘मैं इस यूनिवर्सिटी को मुल्क की सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी बनाकर रहूंगा. इसके लिए जो भी अनुशासनात्मक कदम उठाने पड़ेंगे, उठाए जाएंगे. मैं दावे से कहता हूं कि अपने मिशन में फेल नहीं होऊंगा.’’ कुलपति यहां तक कह चुके हैं कि वे ‘कट्टा कल्चर’ खत्म कर देंगे. दरअसल इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि यूनिवर्सिटी में छात्रों के पास अवैध असलहे भी रहते हैं और इसी को ‘कट्टा कल्चर’ कहा जाता है.
उधर छात्र चाहते हैं कि 93 साल पुरानी एएमयू में पढ़ाई-लिखाई तो बेहतर हो लेकिन उन्हें कोई डंडे के जोर से नहीं हांक सकता. इसीलिए जब वीसी ने परीक्षाओं से पहले 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य कर दी तो बखेड़ा खड़ा हो गया. बाद में उपस्थिति की सीमा घटाकर 65 फीसदी कर दी गई, लेकिन इसके बावजूद 2,000 से ज्यादा छात्रों की उपस्थिति कम निकली. लिहाजा छात्र आंदोलन पर उतारू हो गए और उन्होंने 23 मार्च को वाइस चांसलर की कार पर पथराव कर दिया.
जवाब में यूनिवर्सिटी के सुरक्षाकर्मियों ने भी लाठियां भांजीं, जिससे कई छात्र घायल हो गए. इस मामले में बात करने पर दोनों पक्ष खुद को सही बताते हैं. बकौल आलम, ‘‘छात्र संघ एक तरह का प्रेशर ग्रुप है. छात्र अगर कोई मांग लेकर मेरे पास आएंगे तो उसे उठाना मेरी जिम्मेदारी है. यह प्रशासन पर है कि वह सही मांगों को माने. लेकिन लोकतंत्र में कोई फौजी हुकूमत चलाए, यह बर्दाश्त नहीं.’’ छात्रों के उग्र तेवर उस दिन भी सामने आए, जब संसद पर आतंकवादी हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दी गई. छात्रों ने इसके खिलाफ शहर में बड़ा जुलूस निकाला और जमकर नारेबाजी की.
यानी ज्यों-ज्यों दवा की जा रही है, मर्ज बढ़ता जा रहा है. एएमयू रस्साकशी में एएमयू के संस्थापक सर सैय्यद अहमद का वह ख्वाब कहीं पीछे छूटता जा रहा है, जिसमें उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज की तर्ज का एक ऐसा विश्वविद्यालय बनाना चाहा था, जो नई तालीम की मिसाल साबित हो. लेकिन यह तो राजनीति की नई पाठशाला साबित हो रहा है.

