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आतंकवाद: दिल्ली ने किया उमर को नाराज

अफजल गुरु की फांसी के कारण केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार में आई खटास, समर्पण कर चुके आतंकवादी लियाकत शाह की संदेहास्पद आधार पर गिरफ्तारी से और भी बढ़ गई है.

अपडेटेड 9 अप्रैल , 2013

अतीत कभी पीछा नहीं छोड़ता. सैयद लियाकत शाह ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के मुजफ्फराबाद से इस उम्मीद के साथ 1,000 किमी लंबा सफर शुरू किया था कि आखिरकार वह इस रास्ते से जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में अपने गांव तक पहुंच जाएगा. 20 मार्च की शाम अभी गहराई ही थी कि हिज्बुल मुजाहिदीन का यह पूर्व आतंकी अपनी बीवी अख्तरुन निसा और सौतेली बेटी जबीना के साथ भारत-नेपाल सीमा की सोनौली चेक पोस्ट पर पहुंचा. 45 वर्षीय शाह एक भगोड़े की जिंदगी से आजिज आ चुका था. समर्पण कर अपने गांव लौटने के अलावा उसकी कोई तमन्ना नहीं थी. लेकिन उसे क्या पता था कि खुशी-खुशी घर वापसी उसके लिए तब भी दूर की कौड़ी थी.

भारत की सीमा में प्रवेश करने के कुछ ही देर बाद वहां इंतजार कर रही दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उसके बाद पुलिस ने एक आधिकारिक बयान जारी करके दावा किया कि उसने दिल्ली में एक बड़े आतंकवादी हमले को नाकाम कर दिया है. पुलिस ने शाह को हिज्बुल का कुख्यात आतंकवादी बताया और कहा कि उसकी होली के आसपास सिलसिलेवार फिदायीन हमले की साजिश थी. पुलिस ने यह भी दावा किया कि शाह से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके के हाजी अराफात गेस्ट हाउस पर मारे गए छापे में एक एके-56 राइफल और तीन ग्रेनेड बरामद हुए.

संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु को 9 फरवरी को फांसी पर चढ़ाने के कारण केंद्र और जम्मू-कश्मीर की सरकारों के बीच पैदा हुए तनाव को शाह की गिरफ्तारी ने और बढ़ा दिया है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला मानते हैं कि दिल्ली पुलिस ने यह पूरी कहानी गढ़ी है और वे इस पर व्यंग्य भी करते हैं, “मैं पहली बार सुन रहा हूं कि हमला करने आए किसी आतंकवादी के एक हाथ में उसकी बीवी का हाथ और दूसरे में हथियार थे, मानो वह पिकनिक के लिए जा रहा हो.”

उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी से सुधरने को इच्छुक आतंकियों के लिए पुनर्वास योजना चलाई जा रही है और शाह ने उसी योजना के तहत माफी मांगी थी. वे आगाह भी करते हैं कि शाह की गिरफ्तारी से हथियार डालने की इच्छा रखने वाले आतंकवादी सशंकित होकर अपना इरादा बदल सकते हैं.

आतंकवादियों के लिए यह पुनर्वास योजना नवंबर 2010 से चलाई जा रही है और तब से 300 से ज्यादा ऐसे आतंकवादी वापस घर लौट चुके हैं, जो सीमा पार कर पीओके में भाग गए थे. इसके बदले उन्हें न तो लंबित आपराधिक मामलों की वापसी की गारंटी मिलती है और न ही कोई आर्थिक मुआवजा.

कुपवाड़ा की खूबसूरत लोलाब घाटी में चेरी के बगीचों से घिरे गांव दर्दपोरा के जाने-माने सूफी मौलाना के बेटे शाह ने 1995 में जब पहली बार नियंत्रण रेखा पार की तब वह महज 27 साल का था. जम्मू-कश्मीर पुलिस भी मानती है कि शाह हिज्बुल से जुड़ा था और उसने पीओके में आतंकवादी शिविर में प्रशिक्षण भी लिया था लेकिन उस पर कभी किसी आतंकवादी वारदात में शामिल होने का आरोप नहीं लगा. सुनने में आया है कि शाह 1996 में लौट आया था, लेकिन एक साल बाद जब पुलिस को इस बात की भनक लगी तो वापस पीओके भाग गया. उसकी पहली बीवी अमीना शाह ने 2011 में उसके आत्मसमर्पण का आवेदन कुपवाड़ा पुलिस को दिया था, लेकिन उसने शाह के साथ जम्मू-कश्मीर लौटने से इनकार कर दिया.

शाह का पाकिस्तान से तब मोहभंग हो गया जब उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया और वह आजीविका चलाने के लिए मुजफ्फराबाद में छोटे-मोटे काम करने को मजबूर हो गया. घर से दूर जिंदगी को कुछ आसान बनाने के लिए शाह ने 1997 में पीओके जाने के कुछ ही समय बाद अपने से 10 साल बड़ी एक बेवा नसीमा बीबी से निकाह कर लिया. 2006 में उसने हिज्बुल के एक आतंकवादी हसन गिलानी की बेवा अख्तरुन निसा से तीसरी शादी की. हसन भारतीय सेना के हाथों 1995 में मारा गया था. शाह की यह बीवी अपनी बेटी के साथ भारतीय पासपोर्ट पर मुजफ्फराबाद गईं. सात साल बाद, अख्तरुन निसा ने अपने शौहर शाह को समझाया-बुझाया कि उसे भारत सरकार की माफी योजना का फायदा उठाना चाहिए.

हालांकि पुनर्वास नीति के तहत आधिकारिक तौर पर पुंछ-रावलाकोट, उड़ी-मुजफ्फराबाद, वाघा और दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाइअड्डे को ही प्रवेश का रास्ता माना गया है, लेकिन 2011 से वापस लौटे 300 से अधिक आतंकवादियों में से कई ने सफलतापूर्वक आजमाए जाते रहे नेपाल मार्ग को अपनाया. शाह और उसके परिवार ने भी इसे रास्ते को चुना.

अब क्रालपोरा (कुपवाड़ा) में अपने पिता के घर रह रहीं अख्तरुन निसा उन हालात को बयान करती हैं कि शाह ने कैसे पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद में चिकेन शॉप चलाकर बड़ी मुश्किल से खरीदे गए जमीन के टुकड़े को बेचकर भारत लौटने के खर्चे का बंदोबस्त किया था. वे कहती हैं, “हमने जो दो लाख पाकिस्तानी रुपए जोड़े थे, वह पाई-पाई यात्रा के दस्तावेज बनवाने और एयर टिकट पर खर्च हो गए.”

कश्मीर घाटी में शांति बहाली के लिहाज से जरूरी मुद्दों को तो छोड़ ही दें, पिछली दो गर्मियों से वहां का माहौल जो भी थोड़ा-बहुत सुधरता दिख रहा है, उसे बनाए रखने में भी केंद्र सरकार की ओर से दिखाई गई उदासीनता ने मुख्यमंत्री उमर को राज्य से जुड़े अधिकतर मुद्दों पर सख्त रुख अख्तियार करने पर मजबूर कर दिया है. 25 मार्च को जम्मू में विधानसभा को संबोधित करने के दरम्यान उमर ने बड़े ही तल्ख अंदाज में भारत सरकार पर कश्मीरियों के साथ पक्षपात करने का आरोप लगाया.

उन्होंने अफजल गुरु को ‘आनन-फानन’ दी गई फांसी पर सवाल उठाए. साथ ही, सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) को हटाने के मुद्दे पर केंद्र सरकार के अडिय़ल रुख पर भी नाराजगी जताई. एएफएसपीए कश्मीर से भी ज्यादा हिंसा वाले नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी लागू नहीं है. उन्होंने कहा, “आपके पास जम्मू-कश्मीर के लिए अलग पैमाना है... कश्मीर में तो कोई हेलिकॉप्टर नहीं गिराया गया.” 18 जनवरी को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्वारा भारतीय वायु सेना के एमआइ-17 हेलिकाप्टर को गिराने का भी उन्होंने हवाला दिया.

इस युवा और नाराज मुख्यमंत्री को अप्रत्याशित तौर पर अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों का भी साथ मिलता है. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीपीपी) की मुखिया महबूबा मुफ्ती कहती हैं, “कश्मीरियों को बिना किसी सबूत गिरफ्तार किया जाता है. उन्हें पुरस्कार और मेडल के लिए चारे की तरह इस्तेमाल किया जाता है.”

वैसे, सैयद अली शाह गिलानी जैसे कट्टर अलगाववादी को छोड़ दें, अपेक्षाकृत नरमपंथी मीरवायज उमर फारूक ने भी अब तक इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘लियाकत की गिरफ्तारी से वे तो काफी खुश होंगे. हथियार थाम चुके कश्मीरियों को मुख्यधारा में लाने के लिए शुरू की गई सरकार की पुनर्वास नीति की कोई भी सफलता घाटी में अलगाववादियों के मंसूबों पर पानी फेर देगी.”

हालांकि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के जांचकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि शाह का लौटना सुनहरी यादों के साथ घर वापसी की दास्तान नहीं जैसा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जम्मू-कश्मीर पुलिस और इस पूर्व आतंकवादी के घरवाले प्रचारित कर रहे हैं. स्पेशल सेल के एक अधिकारी ने कहा, “यकीनन वह इसमें शामिल था. यही वह व्यक्ति था जिससे मिली जानकारी के आधार पर जामा मसजिद इलाके से हथियार बरामद हुए.” इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि दिल्ली पुलिस का इरादा केवल उसके खिलाफ पुख्ता मामला तैयार करना रहता तो सोनौली में ही उसके पास हथियार मिलना दिखा दिया गया होता.

केंद्रीय गृह सचिव आर.के. सिंह कहते हैं कि उमर के पुरजोर विरोध के बाद गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) से कराने के आदेश दे दिए हैं जांच एनआइए को सौंप दी गई है. लेकिन क्या इससे सब कुछ साफ हो जाएगा?

—साथ में भावना विज अरोड़ा

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