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बलात्कार निरोधक कानून: पुरुष दे रहे हैं अग्निपरीक्षा

महिलाओं की आवाज सुनने के लिए बने बलात्कार निरोधक कानून का जमकर हो रहा है दुरुपयोग. झूठे मामलों में फंसाने के कई मामले सामने आए.

अपडेटेड 9 अप्रैल , 2013

बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए देश में कड़े कानून तो बन गए लेकिन इनका दुरुपयोग भी शुरू हो गया है. मध्य प्रदेश में हाल ही में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें महिलाओं ने पुरुषों को बलात्कार के झूठे मामलों में फंसा दिया. एक मामले में इंदौर के एक निर्दोष व्यक्ति ने आत्महत्या तक कर ली.

हाल का मामला है, बुरहानपुर जिले के परेठा गांव का. यहां के 38 वर्षीय जनशिक्षक रामलाल अखंडे पर गांव की एक महिला ने बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करवाया था. आरोप लगने के बाद रामलाल के लिए सब कुछ बदल गया. उन्हें  जो लोग सम्मान से देखा करते थे, उनकी ही नजरों में अब उनके लिए घृणा टपक रही थी.

अखबारों में ‘बलात्कारी जनशिक्षक’ हेडिंग से खूब खबरें छपीं और गांववाले ही नहीं उनके अपनों ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया. रामलाल बताते हैं, ‘‘कई दिनों तक घर से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हुई, आत्महत्या का विचार भी आया लेकिन परिजन साथ थे इसलिए हिम्मत बनी रही.’’ इस मामले में पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए डीएनए जांच करवा ली, जिसमें साबित हो गया कि उन पर लगा आरोप झूठा है. उनके माथे पर लगा कलंक धुल गया और सबकुछ सामान्य हो गया.

दूध के जले रामलाल अब छांछ को भी फूंक-फूंककर पीते हैं. उन पर महिलाओं का ऐसा खौफ हावी हो गया है कि मोबाइल पर भी महिला की आवाज सुनाई दे जाए तो वे घबरा जाते हैं. यहां तक कि बस में किसी महिला के बगल की सीट पर भी नहीं बैठते.

बुरहानपुर के पुलिस अधीक्षक अविनाश शर्मा बताते हैं, ‘‘19 जनवरी को परेठा गांव की वैजयंती मनोज यदुवंशी ने शिकायत दर्ज करवाई थी कि रामलाल अखंडे ने बीती रात उसके साथ बलात्कार किया है.’’ लेकिन शर्मा को घटनाक्रम संदेहास्पद लगा. इसकी वजह यह थी कि वैजयंती का पति मनोज यदुवंशी गांव की ही एक लड़की से बलात्कार के आरोप में पिछले दिसंबर से जेल में था. रामलाल उस बलात्कार पीड़ित लड़की के काका हैं.

पुलिस को शुरुआत में ही लग गया था कि दूसरे पक्ष पर दबाव बनाने की नीयत से यह आरोप लगाया गया है. इसीलिए आरोप लगाने वाली महिला का मेडिकल परीक्षण करवाने के साथ-साथ रामलाल का भी डीएनए टेस्ट करवाया गया. महिला के शरीर या कपड़ों पर वीर्य का कोई अंश नहीं पाया गया. यह रिपोर्ट रामलाल की बेगुनाही के लिए पर्याप्त थी. खकनार थाना प्रभारी संजीव नयन शर्मा बताते हैं, ‘‘इस रिपोर्ट के बाद रामलाल के खिलाफ बलात्कार के झूठे मामले का खात्मा कर दिया गया. झूठी रिपोर्ट दर्ज करने के आरोप में वैजयंती यदुवंशी, उसके जेठ आनंद सिंह यदुवंशी और भाई रामस्वरूप के खिलाफ आइपीसी और एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया.’’

लेकिन इंदौर के 50 वर्षीय रूपकिशोर अग्रवाल की किस्मत रामलाल जितनी अच्छी नहीं थी. उनकी किराएदार 33 वर्षीया चंचल और सुनील राठौर ने पिछली 26 दिसंबर को पलासिया थाने में उन पर बलात्कार का मामला दर्ज करवाया था. इस मामले में पुलिस ने अग्रवाल का पक्ष जाने बगैर ही उन्हें गिरफ्तार लिया और जेल भेज दिया. अग्रवाल की पत्नी मंजुला बताती हैं, ‘‘वे चीख-चीखकर कहते रहे कि वे बेगुनाह हैं, उनका डीएनए टेस्ट करवाया जाए लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी. वे ढाई महीने तक जेल में रहे. इसका उनकी सेहत पर बहुत खराब असर पड़ा. वे डिप्रेशन के शिकार हो गए. 8 मार्च को जमानत तो मिली लेकिन वे टूट चुके थे. रो-रोकर कहते थे कि इतने सालों में जो प्रतिष्ठा हासिल की थी वह मिट्टी में मिल गई.’’

इस बीच 13 मार्च को कोर्ट में सुनवाई के दौरान चंचल ने माना कि उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ है बल्कि अग्रवाल और उनके बीच पैसों के लेन-देन का विवाद है. बलात्कार की झूठी शिकायत पर अपर सत्र न्यायाधीश सविता दुबे बेहद नाराज हुईं और उन्होंने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘दिल्ली गैंग रेप के बाद कुछ लोग गलत फायदा उठा रहे हैं. इससे असल पीड़ित की भावना को ठेस पहुंच सकती है.’’

न्यायाधीश ने झूठा आरोप लगाने वाली चंचल के खिलाफ मुकदमा चलाने का भी आदेश दिया. लेकिन अदालत से मिली क्लीन चिट भी अग्रवाल को सदमे से बाहर नहीं निकाल पाई और उन्होंने 17 मार्च को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में भी उन्होंने अपनी मौत का जिम्मेदार चंचल और सुनील राठौर को ठहराया.

मंजुला के मुताबिक, चंचल और सुनील उनके किराएदार थे. उन्होंने गाड़ी खरीदने के लिए अग्रवाल से कर्ज लिया था लेकिन वे न तो मकान का किराया चुका रहे थे और न ही कर्ज अदा कर रहे थे. जब अग्रवाल ने पैसों के लिए दबाव बनाया और मकान खाली करने को कहा तो राठौर दंपती ने यह षड्यंत्र रचा. मंजुला आरोप लगाती हैं कि राठौर दंपती ने बयान बदलने के एवज में उनसे 20 लाख रु. देने या मकान उनके नाम करने और कर्ज खत्म करने की मांग रखी थी.

मंजुला के शब्दों में, ‘‘मेरे पति बहुत घबरा गए थे. इसलिए उन्होंने 3 लाख रु. का कर्ज माफ कर दिया और 12 मार्च को मकान की पॉवर ऑफ एटॉर्नी भी चंचल के नाम कर दी. तब जाकर चंचल ने 13 मार्च को बयान बदला. लेकिन राठौर की पैसों की मांग जारी रही, जिससे मेरे पति बेहद तनाव में आ गए थे.’’ अग्रवाल की 21 वर्षीया बेटी शिवानी कहती हैं, ‘‘महिलाओं की रक्षा के लिए बने कानूनों का किस कदर दुरुपयोग हो सकता है, यह घटना उसी की मिसाल है. महिलाओं के मामलों में पुलिस अति-उत्साह में आकर सच्चाई को अनदेखा कर रही है. फास्ट ट्रैक कोर्ट में मची जल्दबाजी भी निर्दोषों के लिए घातक साबित हो सकती है.’’

बलात्कार के झूठे मामले पुलिस के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. खंडवा के पुलिस अधीक्षक मनोज शर्मा ऐसे ही एक मामले के बारे में बताते हैं, ‘‘खिरकिया की उषाबाई ने 26 सितंबर, 2012  को सक्तापुर गांव के द्वारका और कैलाश के खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज करवाई थी. दोनों आरोपियों को तुरंत जेल भेज दिया गया. चूंकि फरियादी महिला अनुसूचित जनजाति की थी इसलिए दुष्कर्म के साथ एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं भी लगाई गईं. अदालत में चालान पेश करते ही आदिमजाति कल्याण विभाग से उषाबाई को 50,000 रु. की आर्थिक सहायता भी स्वीकृत हो गई. लेकिन इसी बीच महिला अपने बयान से मुकर गई और कहने लगी कि उसके साथ दुष्कर्म नहीं हुआ है. उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने से भी इनकार कर दिया.’’ शर्मा पूछते हैं, ‘‘अब ऐसी स्थिति में पुलिस क्या करे?’’

झूठे आरोप की यातना से गुजर चुके अखंडे पूछते हैं, ‘‘इज्जत क्या सिर्फ महिलाओं की होती है, पुरुषों की नहीं?’’ मौत को गले लगाने के कुछ दिन पहले रूपकिशोर ने भी मीडिया से कहा था, ‘‘ऊपरवाला सब देख रहा है.’’ बलात्कार के झूठे मामलों में फंसे पुरुषों को लगता है कि अब ऊपरवाले का ही सहारा है क्योंकि कानून ने तो उनकी ओर से आंखें बंद कर ही ली हैं.

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