इंदौर से करीब 49 किमी दूर आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसा ग्राम रामपुरिया यूं तो किसी भी आम गांव जैसा ही लगता है लेकिन यहां के लोगों ने पांच माह पहले एक ऐसा निर्णय लिया जिसने उनके गांव को एक अनोखी पहचान दी है. अक्तूबर 2012 में ग्राम पंचायत के चुनाव में यहां सर्वसम्मति से शत-प्रतिशत महिला ग्राम पंचायत का गठन हुआ है.
पंचायत की बागडोर महिलाओं को सौंपने का सकारात्मक परिणाम दिखाई भी देने लगा है. विज्ञान स्नातक सरपंच 32 वर्षीया मिनी बाई ने 12वीं तक शिक्षित अपनी साथी पंच, 24 वर्षीया अंजलि पटेल के साथ मिलकर गांव की महिलाओं को साक्षर बनाने का बीड़ा उठाया है. मिनी कहती हैं, ‘‘हमने महिलाओं को रोज दो घंटे पढ़ाने का फैसला किया है. सबसे पहले निरक्षर पंच महिलाओं को साक्षर बनाया जाएगा.’’
सर्व महिला पंचायत बनाने की राह आसान नहीं थी. वैसे तो पंचायती राज ऐक्ट में 50 फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान है लेकिन जब यहां सरपंच सहित पंचों के सभी पद महिलाओं को दिए जाने का प्रस्ताव किया गया तो खासा विरोध हुआ क्योंकि सरपंच का पद महिला के लिए आरक्षित नहीं था.
पिछले साल जब यहां ग्राम रामपुरिया खुर्द और रामपुरिया बुजुर्ग को मिलाकर बनाई गई ग्राम पंचायत के चुनाव होने थे तो बीजेपी के जिला महामंत्री अशोक सोमानी ने पूर्व सरपंच और कांग्रेस के जिला महामंत्री नंदकिशोर पटेल को सर्व महिला पंचायत का प्रस्ताव दिया. पटेल कहते हैं, ‘‘चुनाव के दौरान होने वाली दुश्मनी को खत्म करने के लिहाज से यह प्रस्ताव ठीक लगा.’’
पहल आगे बढ़ी और सभी पुरुष उम्मीदवारों ने आपसी सहमति से अपने पर्चे वापस लेकर पूरी पंचायत महिलाओं को सौंपने का निर्णय लिया. सोमानी कहते हैं, ‘‘आरक्षण के जरिए जो महिलाएं सत्ता में भागीदारी करती हैं, उनमें अधिकांश पुरुष प्रधान पंचायत में निष्क्रिय ही रहती हैं.’’ लेकिन सर्व महिला पंचायत में ऐसा होने की आशंका बिलकुल नहीं थी.
रामपुरिया पंचायत के लिए लिया गया यह निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आदिवासी बहुल गांव है. यहां 1,210 की कुल आबादी में से 79 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जनजाति का है और पंचों के 10 पदों में से छह इसी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. दो पद अनुसूचित जाति के लिए, एक पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जबकि एक पद सामान्य वर्ग के लिए है. लेकिन आम सहमति से सात पद अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को दिए गए.
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सरपंच पद की जिम्मेदारी मिनी को देने का निर्णय लिया गया. मिनी को सरपंच चुनने के पीछे की वजह भी उनका पढ़ा-लिखा होना था. सरपंच बनते ही मिनी ने शिक्षा की ज्योति जगाने का फैसला किया. चूंकि गांव के प्राथमिक विद्यालय में सिर्फ एक नियमित शिक्षिका और एक अतिथि शिक्षिका हैं जो पांच कक्षाओं को संभालने के लिए अपर्याप्त है, इसलिए मिनी ने खुद भी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. उनका अगला कदम था निरक्षर पंच महिलाओं को साक्षर बनाना.
गांव की महिलाओं का जीवन सुधारने की दिशा में पंचायत ने एक और पहल करते हुए शराबबंदी का प्रस्ताव पारित करने के साथ पर्यावरण सुधार की दिशा में पहल करते हुए पेड़ों की कटाई पर भी रोक लगाई.
हालांकि गांव की इस पहल से प्रदेश का प्रशासनिक तबका अब भी अनजान है. निर्विरोध चुनी गई पंचायतों को मध्य प्रदेश सहित देशभर में प्रोत्साहन राशि दी जाती है. लेकिन निर्विरोध पूर्ण महिला पंचायत के लिए अलग से प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था नहीं है. प्रदेश के सामाजिक न्याय, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं, ‘‘पूर्ण महिला पंचायत चुना जाना अच्छी पहल है. इसके लिए प्रोत्साहन राशि पर विचार किया जाएगा. अधिकारियों को संपूर्ण डाटाबेस बनाने के निर्देश दिए गए हैं.’’

