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झारखंड: बाकी है ड्रामे का आखिरी सीन

झारखंड में राजनैतिक अनिश्चितता की स्थिति तो बिहार में खुद को मजबूत करने में लगे हैं लालू प्रसाद.

अपडेटेड 14 जनवरी , 2013

अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार पर अनिश्चय का साया नए साल से पहले ही मंडराने लगा था. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के मुखिया शिबू सोरेन का कहना है कि बीजेपी को 28 माह पूरा हो जाने के बाद मुख्यमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए और इसे जेएमएम को दे देना चाहिए.

सोरेन अपने इस दावे के समर्थन में दोनों पार्टियों के बीच हुए करार की याद दिलाते हैं जिसमें बारी-बारी से मुख्यमंत्री बदलने की बात शामिल थी. बीजेपी ने ऐसे किसी भी समझौते के होने से ही इनकार किया है. इसकी वजह से दोनों गठबंधन सहयोगियों के बीच का मतभेद सतह पर आ गया है और ऐसा लगता है कि 2013 में मुंडा सरकार का बने रहना आसान नहीं होगा.Bihar Jharkhand

शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत की मौजूदा सियासी स्थिति ग्रीक मिथकीय पात्र नारसिसस जैसी है जो इतना आत्ममुग्ध रहता था कि उसे अपने अलावा कुछ दिखता ही नहीं था. झारखंड में हालांकि राजनैतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं है. यह राज्य 15 नवंबर, 2000 को अपने गठन  के बाद से अब तक आठ मुख्यमंत्रियों का गवाह रह चुका है. ऐसा लगता है कि यह साल एक बार फिर उठापटक को सामने लाएगा.

वहीं, अगले साल लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बिहार में राजनैतिक परिदृश्य सभी के लिए समान रूप से स्पष्ट नजर आ रहा है. नीतीश कुमार का कद भले ही अब भी सबसे ऊंचा हो, लेकिन उनका प्रशासन लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं के अनुरूप एक सुचारू आपूर्ति प्रणाली को लागू करने में असमर्थ रहा है, जिसका फायदा बैठे-बिठाए उनके विरोधी लालू प्रसाद को मिल रहा है. नीतीश सरकार की चमक 2012 में कुछ फीकी पड़ी.Bihar Jharkhand

आज की तारीख में लालू की जनसभाओं में भीड़ पहले से ज्यादा दिख रही है जबकि नीतीश कुमार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं. अप्रभावी कानून व्यवस्था और बिजली की कमी के अलावा 2013 में नीतीश कुमार को अपनी गठबंधन सहयोगी बीजेपी से भी कड़ी टक्कर मिलने की आशंका है जिसमें नरेंद्र मोदी अचानक सबसे बड़े नेता बन कर उभर चुके हैं.

माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के एनडीए का मुखिया बनने की स्थिति में अपना विरोध नीतीश ने पहले ही दर्ज करवा दिया है. अगर मोदी 2014 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उभरते हैं, तो सियासी इबारत को पढऩा इसी साल आसान हो जाएगा. ऐसी आकस्मिक स्थिति में नीतीश अपना गठजोड़ तोडऩे के लिए मजबूर हो सकते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए 2013 से ही बीजेपी और जेडी (यू) राज्य की सभी 40 लोकसभा सीटों पर अपनी चुनावी तैयारी शुरू कर देंगे.

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