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माही की जीत थोड़ा करीब से

कप्तान बदल डालने संबंधी आलोचनाओं से पार पाते हुए धोनी ने बदली टीम इंडिया की किस्मत. इस दौरान धोनी ने खुद को भी बदल डाला.

अपडेटेड 9 अप्रैल , 2013

भारतीय क्रिकेट टीम को कोटला टेस्ट जीते अभी कुछेक घंटे ही हुए थे. वह पांच सितारा होटल मौर्या शेरेटन में जश्न मना रही थी. 4-0 की जीत बार-बार तो आती नहीं. ऐसी क्लीन स्वीप भारत के 81 साल के टेस्ट इतिहास में पहली बार मिली है. उस टीम रूम के एक कोने में बैठे कप्तान महेंद्र सिंह धोनी मूंछों पर ताव देते इतना ही बोले, ''जीत से दोस्ती कर लो. अगले दो साल मुश्किल क्रिकेट खेलनी है. हमारा ध्यान अपने को बेहतर बनाने में रहा तो जश्न के बहुत मौके आएंगे.”

वक्त ने भी क्या करवट बदली है. भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े मुकद्दर के सिकंदर पिछले साल जब गर्दिश में गए तो मानो सब कुछ लुट गया हो. विदेश में हार, घर में हार, टेस्ट में हार, वन डे में हार, टी-20 में हार. चारों तरफ बस एक ही नारा—बदल डालो कप्तान. कप्तान तो नहीं बदला पर शायद खुद के अंदाज को बदल धोनी ने अपनी और टीम इंडिया की दशा/दिशा जरूर बदल डाली.

आंकड़ों के लिहाज से धोनी भारत के लिए किसी कोहेनूर से कम नहीं. कोटला में जीत के बाद उनके नाम 47 टेस्ट में अब 24 जीत हैं और वे सौरव गांगुली के 49 टेस्ट में 21 जीत को पीछे छोड़ चुके हैं. एक वर्ल्ड टी-20 और 2011 का विश्व कप तो पहले से ही उनकी झोली में थे. यानी माही नंबर वन. ''कोई भी जीत किसी कप्तान की ही नहीं होती. ये देश की जीत होती है,” धोनी ने दिल्ली टेस्ट से पहले कहा था.

पूर्व दिग्गज कपिल देव जीत का सेहरा कप्तान के सर ही बांधते हैं. ''हारने पर सबसे ज्यादा गाली कप्तान को पड़ती है तो जीत पर तारीफ भी धोनी की ही होनी चाहिए. अगर धोनी चेन्नै में 224 रन की वह पारी न खेलते तो पता नहीं सीरीज में क्या होता. वहीं से धोनी ने गियर बदला. वे कैप्टन कूल से बन गए कैप्टेन हॉट.”

दरअसल, सीरीज में जीत की चाल तीन स्तरों पर चली गई—बीसीसीआइ, सेलेक्टर्स और टीम मैनेजमेंट. बोर्ड प्रमुख एन. श्रीनिवासन ने पिच कमेटी को चारों जगह स्पिनर्स के माकूल पिच बनाने की सख्त हिदायत दी. सेलेक्टर्स ने टीम चुनते वक्त नाम नहीं, काम को तवज्जो दी. सीरीज से पहले गौतम गंभीर और दो टेस्ट के बाद सहवाग को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उधर दबाव के बावजूद जडेजा को टीम में चुनना धोनी के लिए एक मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ. टीम में बैलेंस आ गया.

घरेलू मैदान पर क्लीन स्वीप का सिलसिला दरअसल ’90 के दशक में मो. अजहरुद्दीन की कप्तानी में शुरू हुआ था.  सूखी, टर्निंग पिच, ऊपर से अनिल कुंबले समेत 3 स्पिनर्स. वही फार्मूला धोनी ने यहां अपनाया. अजहर उस फार्मूले से घर पर तो जीतते थे मगर भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर एक भी टेस्ट नहीं जीत पाए. अजहर मानते हैं कि तेज गेंदबाज फिट हो जाएं तो धोनी की टीम विदेश में भी जीत सकती है. उनके शब्दों में, ''अगले 18 महीने भारत को दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड में टेस्ट खेलने हैं. मुश्किल इम्तहान रहेगा. धोनी को अभी से तैयारी करनी चाहिए. नतीजों से ज्यादा उन्हें अब इन प्लेयर्स में से चैंपियन बनाने पर काम करना होगा.”

दो राय नहीं कि धोनी की ताकत श्रीनिवासन के हाथ से है, पर एक सेलेक्टर की मानें तो उनके चेयरमैन संदीप पाटील ने भी धोनी के हाथ मजबूत किए हैं. उनके मुताबिक, ''टीम के हारने पर मीडिया और पिछली चयन समिति धोनी के पीछे पड़ जाते थे. पाटील ने इस सब पर रोक लगा दी. अब ड्रेसिंग रूम में धोनी को खेमे नहीं दिखेंगे.”

सीरीज के आखिरी दिन सबसे सुखद पल जीत से 3 घंटे पहले आया. उंगली में फैक्चर के चलते चेतेश्वर पुजारा फील्डिंग तक नहीं कर पा रहे थे. ऑस्ट्रेलिया को दूसरी पारी में ऑलआउट करने के बाद धोनी जब ड्रेसिंग रूम में लौटे तो उन्हें लगा, पुजारा बल्लेबाजी नहीं कर पाएंगे और 155 के लक्ष्य के लिए शुरुआत शायद अजिंक्य रहाणे से करानी पड़े. मगर पुजारा उंगली पर पट्टी बांध तैयार बैठे थे. धोनी ने उन्हें गले लगा लिया. संयोग ही था कि ऑस्ट्रलियाई कफन में आखिरी कील पुजारा और धोनी ने ही ठोकी.

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