किशोरी अमोणकर: मां के स्वर में स्वर
सरस्वती विदुषी किशोरी अमोणकर भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया की विराट शख्सियत हैं.

किशोरी अमोणकर
शब्द तो साहित्य है, संगीत स्वर है और स्वर ही मेरी भाषा है. आप शब्दों और लय का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन आपको याद रखना होगा कि संगीत स्वरों की भाषा है. ज्यादा स्वर लगाने से मिलावट हो जाती है. स्वर विभिन्न एहसासों को दर्शाते हैं. मैं स्वरों की दुनिया से आती हूं." ये गान सरस्वती विदुषी किशोरी अमोणकर के शब्द हैं. ताई भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया की विराट शख्सियत हैं.
एक ऐसे समय में जब एसएमएस से लेकर ट्विटर और फोन तक शब्दों को बहुत ज्यादा खर्च किया जा रहा हो, उनका कहा एक-एक शब्द प्रासंगिक जान पड़ता है. दिल्ली में अरसे बाद, 26 मार्च को वे कमानी सभागार में गाने जा रही हैं. संगीत की दुनिया के लोगों में इसे लेकर खासा रोमांच है. वे दो दिवसीय भीलवाड़ा सुर संगम (25-26 मार्च) में दूसरी शाम मंच पर होंगी. इसी संदर्भ में यह समारोह आपको एक ठहराव देगा—एक ऐसा पल जब हम ठहर कर खुद के भीतर देख सकते हैं. अपने चारों ओर मौजूद आवाजों के बीच हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो हमें शास्त्रीय संगीत की याद दिला सकें. इस लिहाज से उनका यह गायन मील का पत्थर होगा.
उनके गले में जैसे जयपुर-अतरौली घराने की खूबसूरती का वास है. बरसों की साधना और रियाज से उन्होंने अपनी यह विशिष्ट शैली विकसित की है. मुंबई के प्रभादेवी में रहती आ रहीं ताई अपने गायन में अमूमन एक लंबा हिस्सा आलाप को समर्पित करती हैं. और अक्सर उनसे यह कहा भी गया है कि वे गायन का लंबा अंश आलापचारी को समर्पित करें. उनके शब्दों में ''...लोग कहते हैं कि मैंने आलापी से जयपुर-अतरौली घराने में योगदान दिया है.
आलापी के बगैर आप सूक्ष्म भावों को कैसे अभिव्यक्त करेंगे? केवल तान से? आलापी भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण पक्ष है. ताल स्वर नहीं होता. ताल तो स्वरों की शरण लेता है. बिना स्वरों के लय का कोई वजूद नहीं है. लय बिना स्वर नहीं है और स्वर बिना लय नहीं है. लोग जब मेरे चरणों पर गिरते हैं, तो वे किशोरी को प्रणाम नहीं कर रहे होते बल्कि स्वर के चरणों में झुके होते हैं. आलापी भावों से परिपूर्ण है."
उनकी संगीत संध्या से हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? ध्यान में डूबते-उतराते कुछ लम्हे, सुर में डूबी झनझनाती तानें और सदियों पुराना संतों का संगीत. उनके संगीत के एक रसिक का कहना है, ''मंदिर जाकर प्रसाद लेने से यह ज्यादा बड़ी चीज है." इस बारे में ताई अपना पक्ष रखती हैं, ''मैं विशुद्ध रूप से आत्मा के लिए गाती हूं. इसीलिए मेरी आंखें बंद हो जाती हैं. मैं आपको उस सूक्ष्म भाव तक ले जाना चाहती हूं. उस बोध को जगाने के लिए मुझे अपने अस्तित्व को समाप्त करना पड़ता है. मेरे लिए श्रोता देह नहीं, आत्माएं हैं.
मेरा गायन मेरी आत्मा और आपकी आत्मा के बीच एक संवाद है." एक बार उन्होंने कहा था कि किसी राग में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की राह में यहां तक कि लय भी आड़े आती है.
इसमें दो राय नहीं कि किशोरी अमोणकर का राजधानी में गायन दुर्लभ घटना है. इसलिए भूलें नहीं, चूकें नहीं और उन आत्मीय क्षणों को महसूस करें. संगीत यदि प्रेम की खुराक है, तो इसे जारी रहना चाहिए. वे कहती हैं, ''हर स्वर मेरी मां की तरह है और उसमें ईश्वर का वास है. इसी तरह से हर राग में एक उदात्त भाव है. मैं रागों में कोई प्राथमिकता तय नहीं करती."
एक ऐसे समय में जब एसएमएस से लेकर ट्विटर और फोन तक शब्दों को बहुत ज्यादा खर्च किया जा रहा हो, उनका कहा एक-एक शब्द प्रासंगिक जान पड़ता है. दिल्ली में अरसे बाद, 26 मार्च को वे कमानी सभागार में गाने जा रही हैं. संगीत की दुनिया के लोगों में इसे लेकर खासा रोमांच है. वे दो दिवसीय भीलवाड़ा सुर संगम (25-26 मार्च) में दूसरी शाम मंच पर होंगी. इसी संदर्भ में यह समारोह आपको एक ठहराव देगा—एक ऐसा पल जब हम ठहर कर खुद के भीतर देख सकते हैं. अपने चारों ओर मौजूद आवाजों के बीच हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो हमें शास्त्रीय संगीत की याद दिला सकें. इस लिहाज से उनका यह गायन मील का पत्थर होगा.
उनके गले में जैसे जयपुर-अतरौली घराने की खूबसूरती का वास है. बरसों की साधना और रियाज से उन्होंने अपनी यह विशिष्ट शैली विकसित की है. मुंबई के प्रभादेवी में रहती आ रहीं ताई अपने गायन में अमूमन एक लंबा हिस्सा आलाप को समर्पित करती हैं. और अक्सर उनसे यह कहा भी गया है कि वे गायन का लंबा अंश आलापचारी को समर्पित करें. उनके शब्दों में ''...लोग कहते हैं कि मैंने आलापी से जयपुर-अतरौली घराने में योगदान दिया है.
आलापी के बगैर आप सूक्ष्म भावों को कैसे अभिव्यक्त करेंगे? केवल तान से? आलापी भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण पक्ष है. ताल स्वर नहीं होता. ताल तो स्वरों की शरण लेता है. बिना स्वरों के लय का कोई वजूद नहीं है. लय बिना स्वर नहीं है और स्वर बिना लय नहीं है. लोग जब मेरे चरणों पर गिरते हैं, तो वे किशोरी को प्रणाम नहीं कर रहे होते बल्कि स्वर के चरणों में झुके होते हैं. आलापी भावों से परिपूर्ण है."
उनकी संगीत संध्या से हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? ध्यान में डूबते-उतराते कुछ लम्हे, सुर में डूबी झनझनाती तानें और सदियों पुराना संतों का संगीत. उनके संगीत के एक रसिक का कहना है, ''मंदिर जाकर प्रसाद लेने से यह ज्यादा बड़ी चीज है." इस बारे में ताई अपना पक्ष रखती हैं, ''मैं विशुद्ध रूप से आत्मा के लिए गाती हूं. इसीलिए मेरी आंखें बंद हो जाती हैं. मैं आपको उस सूक्ष्म भाव तक ले जाना चाहती हूं. उस बोध को जगाने के लिए मुझे अपने अस्तित्व को समाप्त करना पड़ता है. मेरे लिए श्रोता देह नहीं, आत्माएं हैं.
मेरा गायन मेरी आत्मा और आपकी आत्मा के बीच एक संवाद है." एक बार उन्होंने कहा था कि किसी राग में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की राह में यहां तक कि लय भी आड़े आती है.
इसमें दो राय नहीं कि किशोरी अमोणकर का राजधानी में गायन दुर्लभ घटना है. इसलिए भूलें नहीं, चूकें नहीं और उन आत्मीय क्षणों को महसूस करें. संगीत यदि प्रेम की खुराक है, तो इसे जारी रहना चाहिए. वे कहती हैं, ''हर स्वर मेरी मां की तरह है और उसमें ईश्वर का वास है. इसी तरह से हर राग में एक उदात्त भाव है. मैं रागों में कोई प्राथमिकता तय नहीं करती."