आजादी की आवाज, नीचे थोड़ा और नीचे

तकरीबन आधे उत्तरदाताओं को लगता है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है, लेकिन बहुत सारे लोग यह नहीं सोचते कि उनकी आवाज को दबाया जा रहा है. हालांकि उनकी खुशी पर मार पड़ी है

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सोनाली आचार्जी

साल 2019 में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के सालाना लोकतंत्र सूचकांक में 27वें स्थान पर था. अब यह 46वें स्थान पर है. अन्य वैश्विक सूचकांक जैसे कि फ्रीडम हाउस और वी-डेम इंस्टीट्यूट ने भी भारत में लोकतंत्र पर सवाल उठाए हैं. इंडिया टुडे के देश का मिज़ाज सर्वेक्षण में भी उत्तरदाताओं ने पहले की तुलना में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर कहीं ज्यादा चिंता व्यक्त की है—लगभग आधे उत्तरदाताओं को लगता है कि आज लोकतंत्र खतरे में है. वहीं, केवल 37 फीसद को लगता है कि यह खतरे में नहीं है और ऐसा भरोसा जताने वालों की बीते 18 महीनों में यह सबसे कम संख्या है.

नागरिकों की आवाज का दमन लोकतंत्र के लिए खतरा है, और भारतीय लोकतंत्र के बारे में ज्यादातर चिंता सत्तारूढ़ दल के खिलाफ बोलने वालों पर कथित आपराधिक मामले लादे जाने की बढ़ती संख्या से उपजी है. इस साल, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चला है कि साल 2015 और 2020 के बीच आइपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) के तहत राजद्रोह के 356 मामले दर्ज किए गए और इनमें 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसने सुप्रीम कोर्ट को एक सख्त संदेश देने के लिए प्रेरित किया और उसने केंद्र और राज्य सरकारों से राजद्रोह के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने तथा कार्यवाही करने पर रोक लगाने को कहा.

लोकतंत्र को लेकर बढ़ती चिंता के बावजूद, केवल 9 फीसद उत्तरदाताओं को ऐसा लगता है कि उन्हें धार्मिक और राजनैतिक, दोनों मामलों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित किया गया है. लगभग आधे उत्तरदाताओं का कहना है कि वे धर्म और राजनीति दोनों पर स्वतंत्र रूप से अपनी राय जाहिर कर सकते हैं, जबकि 23 फीसद का कहना है कि राजनीति के मामले में तो वे ऐसा कर सकते हैं, लेकिन धर्म को लेकर नहीं. वहीं, केवल 23.1 फीसद ही सोशल मीडिया को अपनी बात रखने के लिए एक अच्छे मंच के रूप में देखते हैं, शायद इसलिए कि हाल के वर्षों मंक कई लोगों को सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट की वजह से गिरफ्तार किया गया है.

संसद के हालिया मॉनसून सत्र में, 24 विपक्षी सांसदों—राज्यसभा से 20 और लोकसभा के चार सांसदों—को अनुशासनहीन व्यवहार के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. राज्यसभा के सूत्रों के मुताबिक, इस तरह के व्यवधानों पर 133 करोड़ रुपए खर्च हुए और 89 घंटे की बर्बादी हुई. देश का मिज़ाज सर्वे के 37.7 फीसद उत्तरदाताओं ने इसके लिए विपक्ष को दोषी ठहराया, जबकि 33.3 फीसद का मानना है कि इसमें सत्ताधारी दल दोषी है जो बिना चर्चा के कानून बनाने की कोशिश कर रहा है. केवल 17 फीसद ने दोनों पक्षों को बार-बार होने वाले व्यवधानों के लिए जिम्मेदार ठहराया, जिसकी वजह से सत्र निर्धारित समय से चार दिन पहले खत्म हो गया और इसमें केवल पांच विधेयक पारित हुए.

सामाजिक-राजनैतिक कानूनों के मामलों में उदार और पारंपरिक विचार के लोगों के बीच संघर्ष होता नजर आता है. आधे से अधिक (63 फीसद) उत्तरदाताओं का मानना है कि अर्ध-नग्न या नग्न दिखने वाली हस्तियां 'अश्लील' हैं. समान नागरिक संहिता के लिए समर्थन जनवरी 2022 में 72.7 फीसद से गिरकर अब 65.8 फीसद हो गया है. वहीं, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने तथा जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के लगभग तीन साल बाद भी इस इलाके में अशांति और अनिश्चितताएं बरकरार हैं. देश का मिज़ाज सर्वे के 28 फीसद उत्तरदाताओं का मानना है कि अनुच्छेद 370 को बहाल किया जाना चाहिए, जबकि 39.4 फीसद इसके खिलाफ हैं. बहुमत (67 फीसद) की राय है कि इस इलाके में सामान्य स्थिति लाने के लिए इसका पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना होगा.

महिलाओं की सुरक्षा के मामले में देश का मिज़ाज सर्वे अब तक की सबसे बेहतर स्थिति को दर्शाता है—तकरीबन आधे उत्तरदाताओं का मानना है कि भारत महिलाओं के लिए सुरक्षित हो गया है, जबकि 34 फीसद का मानना है कि यह पहले की तुलना में कम सुरक्षित है और महज 9 फीसद का कहना है कि अभी भी कुछ नहीं बदला है. यह पिछले एक साल में केंद्र और राज्य सरकारों के किए गए कई उपायों का नतीजा हो सकता है. महिलाओं तक उनकी सहायता के लिए तेज और अधिक सुलभ तरीकों से पहुंचने में प्रौद्योगिकी ने पुलिस-प्रशासन की काफी मदद की है. केंद्र का 112 ऐप ऑडियो या विजुअल सबूत के साथ ऐसे नोटिफिकेशन भी भेजता है. अन्य उपलब्धियों में महिलाओं के मनो-सामाजिक कल्याण के लिए 700 से अधिक वन-स्टॉप सेंटर, महिलाओं के लिए एक विशेष रेलवे सुरक्षा बल और एक अखिल भारतीय आपातकालीन रिस्पॉन्स टेलीफोन लाइन शामिल हैं.

देश को पिछले एक साल में कई  चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. साल 2021 के लैंसेट अध्ययन से पता चला है कि भारत में एक साल में अवसाद, और चिंता के मामलों में 35 फीसद की वृद्धि हुई है. न केवल बढ़ती आर्थिक अनिश्चितताएं, बल्कि युद्ध की तस्वीरों और कहानियों ने भी परेशान किया है, और महामारी ने भी खत्म होने का कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखाया है. ऐसे में लगता है कि इन सभी ने काफी नुक्सान पहुंचाया है. केवल 51 फीसद उत्तरदाताओं ने कहा कि वे बहुत खुश हैं या कुछ हद तक खुश हैं, जो जनवरी 2022 में 75 फीसद से काफी कम है.

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